हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में पावर प्रोजेक्ट्स का विरोध तेज

उत्तराखंड की घटना के बाद हिमाचल के लाहौल स्पीति के लोग एकजुट हुए और प्रस्तावित 56 पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया

By Rohit Prashar

On: Monday 08 February 2021
 
लाहौल स्पीति का तांदी स्थान जहां पर 104 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। फोटो: रोहित पाराशर

उत्तराखंड में कुदरत का तबाही का मंजर सामने आने के बाद हिमाचल के जनजातीय जिले लाहौल स्पीति में प्रस्तावित 56 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के खिलाफ लोगों ने मोर्चा खोल दिया है।

8 फरवरी को लाहौल स्पीति जिले के सबसे बड़े गांव गोशाल और तांदी के लोगों ने बैठक की और इस बैठक में लोगों ने सरकार को उत्तराखंड की घटना से सबक सीखकर चंद्रभागा नदी पर प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों को रद्द करने की मांग की।

छह माह तक बर्फ की चपेट में घिरे रहने और प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील यह जिला सिस्मिक जोन 4 में आता है। वहीं जिले में स्वास्थ्य सुविधांओं की कमी के चलते इस जिले में प्राकृतिक आपदांए आने पर भयंकर जान माल का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए जिले के लोगों ने बिजली की परियोजनाओं के खिलाफ पूरे जिले में जागरूकता अभियान शुरू कर दिया है। साथ ही गोशाल और तांदी गांव के लोगों ने पावर प्रोजेक्ट के लिए एनओसी न देने को लेकर पंचायत से प्रस्ताव भी पारित कर दिया है।

लाहौल स्पीति जिले में प्रस्तावित हाइड्रो पावर प्रोजेक्टों का विरोध कर रही सेव लाहौल-स्पीति सोसायटी पूरे लाहौल स्पीति जिला में प्रोजेक्टों से होने वाले नुकसान के प्रति घाटी के लोगों को जागरूक कर रही है। 

सोसायटी के उपाध्यक्ष विक्रम कटोच ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि अलकनंदा में जो हुआ उससे हम बहुत आहत हैं। इसलिए हम अपने जिले में इस तरह की घटना न घटे इसके लिए पहले से ही तैयारियों में जुट गए हैं।

पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ बैठक  करते तांदी और गोशाल पंचायत के पंचायत प्रतिनिधि और लोग। फोटो: रोहित पराशर

उन्होंने कहा कि लाहौल स्पीति जिला प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील है। इसलिए जब यहां पर बड़े-बड़े पावर प्रोजेक्ट और बांध बनेंगे तो इसका यहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर विपरित असर पड़ेगा। जिसका खामियाजा यहां के लोगों को उठाना पड़ेगा। वे लोग वर्ष 2005 से जिले में पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ आंदोलनरत हैं और भविष्य में ये प्रोजेक्ट न बनें, इसके लिए हम हरेक गांव के लोगों को इस अभियान में जोड़ेंगे। इन पावर प्रोजेक्ट को रद्द करने को लेकर सोसायटी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा गया है।

गौशाल पंचायत की प्रधान सुशीला राणा ने कहा कि किसी भी सूरत में एसजेवीएनएल द्वारा बनाई जा रही 104 मेगावाट की तांदी परियोजना को अनापत्ति पत्र नहीं दिया जाएगा। लाहौल स्पीति के लोग  खेती पर निर्भर हैं और इन पावर प्रोजेक्ट से हमारी खेती की जमीन जलमग्न हो जाएगी। जिससे लोगों को रोजी-रोटी के लिए घाटी से बाहर पलायन करना पड़ेगा।

तांदी पंचायत के उपप्रधान विरेंद्र कुमार का कहना है कि हम जिले में बन रहे प्रावर प्रोजेक्ट को विरोध कर रहे हैं और इनके निर्माण के लिए पंचायतों की अेार से किसी प्रकार का अनापति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाएगा।

महिला मंडल गौशाल के सदस्य देकिड का कहना है कि लाहौल के लोग पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। इसलिए हम अपने वनों में पूजा के लिए धूप तक ले जाने तक की रोक लगा रखी है। जिसकी वजह से वनों में आग की घटनांए नहीं होती है। ऐसे में हम अपने पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर बुरे असर डालने वाले इन भारी पावर प्रोजेक्टों को किसी भी सूरत मे शुरू नहीं होने देंगे।

ग्राम पंचायत त्रिलोकनाथ के उप प्रधान बुधी चंद का कहना है कि हमारी और शकोली पंचायत के अधिन 12 बड़े गांव आते हैं और सर्दियों में भारी बर्फबारी के बाद इन इलाकों में हिमखंड गिरने का डर बना रहता है। इसलिए 126 मेगावाट का बरदंग प्रोजेक्ट के बनने से क्षेत्र में बुरा असर पड़ेगा। इनसे करीब एक दर्जन पंचायतों के हजारों लोग प्रभावित होंगे।

उन्होंने कहा कि चिनाब बेसिन में मौजूद पहाड़ और चट्टानें काफी कमजोर हैं। विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के समय होने वाली ब्लास्टिंग तथा अन्य कार्य पर्यावरण के लिए काफी घातक साबित होंगे। क्षेत्र की हरित पट्टी के जलमग्न होने के साथ-साथ यहां परंपरागत जलस्रोत भी खत्म हो जाएंगे। सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर फैले चरागाह तबाह हो जाएंगे। इसलिए हम इसका विरोध कर रहे हैं और इसके लिए हमने राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा है।

इन पावर प्रोजेक्ट की सरकार ने दी है अनुमति

सरकार ने चिनाब नदी से 2500 मेगावाट बिजली उत्पादन करने की योजना बनाई है। लंबे समय से प्रस्तावित पावर प्रोजेक्टों को लेकर हाल ही में हिमाचल सरकार ने सतलुज जल विद्युत निगम (एसजेवीएन), नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कारपोरेशन (एनएचपीसी), हिंदुस्तान पावर कारपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की नामी बिजली कंपनियों को लगभग 1600 मेगावाट क्षमता के आधा दर्जन से अधिक के प्रोजेक्ट आवंटित किए हैं। इनमें 104 मेगावाट के तांदी, 130 मेगावाट के राशिल और 126 मेगावाट के बरदंग विद्युत प्रोजेक्ट एसजेवीएन को आवंटित किया गया है। 400 मेगावाट का शैली और 120 का मयाड़ प्रोजेक्ट एनटीपीसी, 300 मेगावाट का जिस्पा प्रोजेक्ट एचपीसीएल को आवंटित किया है।

हिमाचल में कभी भी कहर ढा सकती हैं झीलें

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुसंधान के लिए विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण राज्य परिषद और जलवायु परिवर्तन केंद्र की अेार से पिछले साल तीन रिवर बेसिन सतलुज, चिनाब और ब्यास को लेकर की गई स्टडी में चैंकाने और चेताने वाले आंकड़े सामने आ चुके हैं। जलवायु परिवर्तन केंद्र के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के तीन रिवर बेसिन में 897 झीलें पाए गई हैं।

इनके दायरे में वर्ष 2018 के मुकाबले में वृद्धि दर्ज की गई है। शोधकर्ताओं ने चिंता जाहिर की है कि यदि ग्लेशियरों के पिघलने का क्रम ऐसा ही जारी रहा तो इन झीलों के आकार में और वृद्धि होना तय है, जिससे भविष्य में भयानक बाढ़ की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

जलवायु परिवर्तन राज्य केंद्र द्वारा 2019 में किए गए शोध के आधार पर वर्ष 2019 में सतलुज बेसिन में 562 झीलों की उपस्थिति दर्ज की गई है, जिनमें से लगभग 81 प्रतिशत (458) झीलें 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल की है, 9 प्रतिशत (53) झीलें 5 से 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 9 प्रतिशत (51) झीलें 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की हैं।

इसके अलावा चिनाब घाटी जिसमें चंद्रा, भागा और मियार सब बेसिन है, इनमें लगभग 242 झीलें हैं। चंद्रा में 52, भागा में 84 और मियार सब बेसिन में 139 झीलें हैं। वहीं, ब्यास घाटी जिसमें ऊपरी ब्यास, जीवा, पार्वती घाटियां सम्मिलत हैं, में 93 झीलें हैं। ऊपरी ब्यास में 12, जीवा में 41 और पार्वती सब बेसिन में 37 झीलें हैं। केंद्र द्वारा कहा गया है कि वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में लगभग 43 प्रतिशत वृद्धि के संकेत दर्ज किए गए हैं। 

मौसम मे देखे जा रहे हैं बदलाव

मौसम विभाग के डाटा के अनुसार जनवरी माह में पिछले 13 वर्शाें में तीसरी बार षिमला और मनाली में बिल्कुल भी बर्फबारी नहीं देखी गई है। वहीं जनवरी माह में वर्शा के क्रम में 58 फीसदी और दिसंबर में 43.8 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। मौसम विभाग के निदेशक डाॅ मनमोहन सिंह का कहना है कि पिछले कुछ सालों में बर्फबारी के ट्रेंड में थोडा बदलाव देखा गया है। जहां पहले ऊपरी क्षेत्रों में अक्टूबर माह में बर्फबारी देखी जाती थी वहीं अब यह दिसंबर में देखने को मिल रही है।

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