दुनिया के आधे से ज्यादा सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेवार हैं महज 20 पेट्रोकेमिकल कंपनियां

वहीं यदि 100 प्रमुख कंपनियों की बात करें तो वो इतने प्लास्टिक पॉलीमर का उत्पादन करती हैं जो करीब 90 फीसदी सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा के लिए जिम्मेवार होता है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 19 May 2021
 

दुनिया के करीब 55 फीसदी सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के लिए महज 20 पेट्रोकेमिकल कंपनियां जिम्मेवार हैं। वहीं यदि 100 प्रमुख कंपनियों की बात करें तो वो इतने प्लास्टिक पॉलीमर का उत्पादन करती हैं, जो करीब 90 फीसदी सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा के लिए जिम्मेवार होता है। यह जानकारी मिंडेरू फाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट द प्लास्टिक वेस्ट मेकर इंडेक्स में सामने आई है जिसमें सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के स्रोतों को उजागर किया है। इस रिपोर्ट को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टीट्यूट, वुड मैकेंज़ी और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों की मदद से तैयार किया गया है।

इसमें कोई शक नहीं की प्लास्टिक ने हमारी कई तरीकों से मदद की है। एक बार प्रयोग होने वाला प्लास्टिक एक सस्ता विकल्प है यही वजह है कि इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। दुनिया भर में चाहे प्लास्टिक बैग या बोतल की बात हो या चेहरे पर लगाने वाले फेस मास्क की उन सभी में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है।

पर इस प्लास्टिक के साथ समस्याएं भी कम नहीं हैं, एक बार उपयोग होने के बाद इसे फेंक दिया जाता है। आज जिस तेजी से इस प्लास्टिक के कारण उत्पन्न हुआ कचरा बढ़ता जा रहा है, वो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जिसने न केवल धरती बल्कि समुद्रों को भी अपने आगोश में ले लिया है। जिसके कारण जैवविविधता और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है।

यदि इससे जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल बनाए जाने वाले प्लास्टिक का करीब एक तिहाई हिस्सा सिंगल यूज प्लास्टिक होता है। जिसका ज्यादातर हिस्सा कचरे में फेंक दिया जाता है। यदि इसकी मात्रा की बात करें तो यह करीब 13 करोड़ टन प्रतिवर्ष होता है। इसका लगभग 98 फीसदी जीवाश्म ईंधन से बना होता है, जिसमें किसी तरह का रीसायकल मैटेरियल प्रयोग नहीं किया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक केवल 9 फीसदी प्लास्टिक को ही रीसायकल किया जाता है बाकि को या तो फेंक दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है।

आज आप इस सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे को अपने आस-पास हर जगह देख सकते हैं। यह समुद्रों की गहराई से लेकर जानवरों और हमारे शरीर में, बारिश में यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं वहां भी मिल जाएगा।

इनमें से करीब 1.3 करोड़ टन सिंगल यूज प्लास्टिक समुद्रों में पहुंच जाता है। जब यह छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता है तो यह पर्यावरण और समुद्री जीवों के लिए बड़ा खतरा बन जाता है। इसकी वजह से समुद्र ज्यादा मात्रा में कार्बन संग्रहित नहीं कर पाते हैं। यही नहीं इसमें मौजूद केमिकल मानव स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। अनुमान है कि यदि इसी दर से सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन होता रहा तो वो 2050 तक 5 से 10 फीसदी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार होगा।

हालांकि इसके लिए ज्यादातर उन कंपनियों को दोषी माना जाता है जो अपने उत्पादों के लिए इनका उपयोग करती हैं। लेकिन हम इसका उत्पादन करने वाली कंपनियों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। इसके लिए वो कंपनियां भी जिम्मेवार हैं जो इनके प्लास्टिक पॉलिमर का उत्पादन करती हैं और इसके निर्माण के लिए पैसा जुटाती हैं।

प्रति व्यक्ति हर साल 4 किलोग्राम सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है भारत

यदि सिंगल यूज प्लास्टिक से उत्पन्न होने वाले कचरे की बात करें तो इस मामले में भारत तीसरे स्थान पर हैं जहां 2019 में 55.8 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ था, जबकि प्रति व्यक्ति के हिसाब से देश में हर साल 4 किलोग्राम सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हो रहा है। इस मामले में चीन पहले स्थान पर हैं जहां 2019 में 2.5 करोड़ टन कचरा पैदा हुआ था, जहां प्रति व्यक्ति के हिसाब से हर साल 18 किलोग्राम सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। वहीं इस लिस्ट में अमेरिका दूसरे स्थान पर है जहां 1.7 करोड़ टन सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ था जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से 52 किलोग्राम प्रतिवर्ष है।

यह एक जटिल समस्या है क्योंकि इससे उत्पन्न हुआ कचरा सारी दुनिया में फेंका जाता है पर कुछ मुट्ठीभर कंपनियां ही प्लास्टिक पॉलिमर का उत्पादन करती हैं। जिनकी मदद से यह सिंगल यूज प्लास्टिक बनाया जाता है और इस्तेमाल के बाद कचरे में फेंका जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका की दो दिग्गज पेट्रोकेमिकल कंपनियां एक्सन मोबिल और डॉव इनके उत्पादन में शीर्ष पर हैं, जबकि चीन की कंपनी सिनोपेक तीसरे स्थान पर है। यह तीनों मिलकर प्लास्टिक पॉलीमर का करीब 16 फीसदी हिस्सा उत्पादित करती हैं, जो बाद में प्लास्टिक कचरा बनता है। इनमें एक्सन मोबिल की हिस्सेदारी 5.53 फीसदी, डॉव की 4.92 फीसदी और सिनोपेक की 5.57 फीसदी है। जबकि 100 शीर्ष उत्पादक करीब 90 फीसदी प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेवार हैं।

ऐसे में यदि इन मुट्ठीभर कंपनियों को नियमों के दायरे में लाया जाए तो इससे सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है। इसके लिए जरुरी है कि यह कंपनियां जीवाश्म ईंधन के स्थान पर पॉलीमर के निर्माण के लिए पर्यावरण के अनुकूल मैटेरियल का प्रयोग करें।

हालांकि अब तक ऐसा करने में यह उद्योग पूरी तरह विफल रहा है। इसका उदाहरण है कि 2019 में बनाया गया कुल सिंगल यूज प्लास्टिक का केवल 2 फीसदी हिस्सा ही रीसायकल प्लास्टिक और जैव-आधारित फीडस्टॉक्स से बनाया गया था। यही नहीं इनमें से ज्यादातर कंपनियां अपनी प्लास्टिक उत्पादन क्षमता को  बढ़ाने पर जोर दे रही हैं।

यदि इनके लिए किए जा रहे वित्त पोषण की बात करें तो दुनिया के 20 प्रमुख बैंक जिनमें बार्कलेज, एचएसबीसी और बैंक ऑफ अमेरिका आदि ने 2011 से अब तक सिंगल यूज प्लास्टिक पॉलीमर के उत्पादन के लिए करीब 219,731 करोड़ रुपए (3,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर) का ऋण दिया है।

इसका नतीजा है कि अनुमान लगाया जा रहा है कि अगले 5 वर्षों में जीवाश्म ईंधन की मदद से बनाया जा रहा सिंगल यूज प्लास्टिक पॉलीमर का उत्पादन करीब 30 फीसदी बढ़ जाएगा। जिसका ज्यादातर हिस्सा विकासशील देशों में पहुंच जाएगा जहां कचरे का उचित प्रबंधन पहले ही एक बड़ी समस्या है। जो स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है।

ऐसे में यदि हमें इस समस्या को सही में दूर करना है तो हमें इसके निर्माण में लगी कंपनियों और इनको वित्त प्रदान कर रही कंपनियों को नियमों के दायरे में लाना होगा। यह काम आसान नहीं है इसके लिए गजब की राजनैतिक इच्छाशक्ति और सरकारों और नीति निर्माताओं को कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता होगी।

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