कचरे के पहाड़ में दब रहे हैं महानगर, जानें सभी राज्यों का हाल

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण अधिकांश कचरा बिना ट्रीट हुए लैंडफिल साइटों तक पहुंचता है

By DTE Staff

On: Monday 13 July 2020
 
विकास चौधरी / सीएसई

भारत में शहरीकरण के साथ ही अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही है। देश के 7,935 नगरों और शहरों में 37.7 लगभग करोड़ लोग रहते हैं और यहां से हर साल 62 मिलियन टन (एमटी) अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसमें से 43 मिलियन टन अपशिष्ट ही संग्रहित किया जाता है, 11.9 मिलियन टन अपशिष्ट ट्रीट किया जाता है और 31 मिलियन टन लैंडफिल साइट्स में फेंक दिया जाता है। शहर की नगरपालिकाओं का मुख्य दायित्व है कि वे शहरों को साफ रखने के लिए अपशिष्ट का प्रबंधन करें। लेकिन लगभग सभी नगरपालिकाएं लैंडफिल साइट में अपशिष्ट पहुंचाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। जानकारों का मानना है कि भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की दोषपूर्ण व्यवस्था के कारण ऐसा होता है।

अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सबसे जरूरी है कि स्रोत से ही उसे ठीक से अलग-थलग कर लिया जाए ताकि उसकी उचित रिसाइक्लिंग और पुन: उपयोग हो सके लेकिन भारत के केवल तीन राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों- केरल, छत्तीसगढ़ व दमन व दीव में 100 प्रतिशत अपशिष्ट स्रोत से अलग-थलग किया जाता है।

प्लास्टिक के पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव को देखते हुए इसका प्रबंधन बहुत जरूरी हो गया है। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की वार्षिक खपत 11 किलो है। हालांकि यह वैश्विक औसत खपत से बहुत कम है, फिर भी भारत विश्व से सबसे बड़े प्लास्टिक प्रदूषकों में शामिल है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2015 में अनुमान लगाया था कि भारत के प्रमुख शहरों में 26,000 टन प्लास्टिक प्रतिदिन उत्पन्न होता है। इसमें से केवल 15,600 टन यानी 60 प्रतिशत प्लास्टिक ही रिसाइकल हो पाता है। शेष करीब 1,000 टन प्लास्टिक नालियों और नदियों में बहा दिया जाता है। दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, बेंगलुरु, अहमदाबाद और हैदराबाद सबसे ज्यादा प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करने वाले शहरों में शामिल हैं। भारत में प्लास्टिक का उत्पादन अगले 20 सालों में दोगुना हो जाएगा, इसलिए इसके उचित प्रबंधन की सख्त जरूरत है।

प्लास्टइंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्लास्टिक की उपभोग दर विश्व में सर्वाधिक 16 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। चीन में यह दर 10 प्रतिशत और ब्रिटेन में 2.5 प्रतिशत है। भारत में प्लास्टिक की सबसे अधिक खपत पैकेजिंग उद्योग में होती है। यहां इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक 43 प्रतिशत सिंगल यूज होती है, जबकि वैश्विक औसत 35 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी लगाने की बात की है लेकिन भारत में अब सिंगल यूज प्लास्टिक को परिभाषित ही नहीं किया गया है।
स्रोत: एसबीएम- अर्बन डैशबोर्ड

 

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