शिमला में सड़क निर्माण के कचरे के अवैध निपटान की जांच के लिए एनजीटी ने गठित की समिति

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 31 October 2022
 

शिमला में सड़क निर्माण के दौरान पैदा हो रहे कचरे के अवैध निपटान का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष विचार के लिए आया है जिसपर एनजीटी ने 31 अक्टूबर, 2022 को सुनवाई की है। मामला हिमाचल प्रदेश में शिमला का है, जहां साई इटरनल फाउंडेशन द्वारा एक डबल लेन का निर्माण किया जा रहा है।

कोर्ट को जानकारी दी गई है कि इस निर्माण प्रक्रिया में जो कचरा पैदा हो रहा है उसका अवैध रूप से निपटान घाटी के नीचे ढल्ली सुरंग परियोजना में किया जा रहा है। ऐसे में कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। संयुक्त समिति को इस साइट का दौरा करने और अपनी रिपोर्ट एनजीटी में जमा करने का निर्देश दिया गया है।

इस मामले में कोर्ट का कहना है कि चूंकि यह मामला एनजीटी अधिनियम, 2010 के तहत आने वाले पर्यावरण सम्बंधित मामले से जुड़ा है ऐसे में इसपर विचार करने की जरूरत है।

एसपीसीबी ने पलवल नगर परिषद पर लगाया 4.2 करोड़ रुपए का जुर्माना

हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पलवल नगर परिषद के खिलाफ पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 4.2 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जानकारी एसपीसीबी ने 31 अक्टूबर 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में सबमिट अपनी रिपोर्ट में दी है।

मामला म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट नियमों के साथ-साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट और उसके जैव-खनन संबंधी उपचारात्मक कार्रवाई से जुड़ा है।

10 क्यूबिक मीटर से ज्यादा भूजल का दोहन करने वाली इकाइयों को लेने होगा अनापत्ति प्रमाण पत्र

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी में दायर अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि हर दिन 10 क्यूबिक मीटर से ज्यादा भूजल का दोहन करने वाली इकाइयों को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' प्राप्त लेना होगा।

इस मामले में संबंधित स्थानीय निकाय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 10 क्यूबिक मीटर प्रति दिन से जयदा भूजल दोहन कर रही इकाइयों ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया है और साथ ही उन्हें यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि उन इकाइयों ने भारतीय खाद्य, सुरक्षा और मानक प्राधिकरण से खाद्य, सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत लाइसेंस अथवा पंजीकरण किया हुआ है। मामला पानी बचने में लगी इकाइयों द्वारा भूजल के अवैध दोहन से जुड़ा है।

एसपीसीबी ने 27 अक्टूबर को सबमिट अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने 2020 में 433 नगर निगमों/ जिला परिषदों/ नगर परिषदों/ नगर पंचायतों/ छावनी बोर्डों को निर्देश जारी किए थे और उन्हें ठंडे पानी की कैन, जार से जुड़ी इकाइयों की अवैध गतिविधियों की पहचान करने का निर्देश दिया था।

क्या तेलंगाना में वनस्पति और जीवों को नुकसान पहुंचा रहा है स्टोन क्रशर

शिकायत मिली है कि तेलंगाना के खम्मम में स्टोन क्रशर का संचालन क्षेत्र की वनस्पति और जीवों को नुकसान पहुंचा रहा है। मामला तेलंगाना के खम्मम जिले के गरलावोड्डू गांव का है। इस शिकायत के आधार पर एनजीटी ने संयुक्त समिति को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।

इस बारे में आवेदक अभिलाष चौधरी ने अपनी शिकायत में कहा था कि स्टोन क्रशर के कारण गांव के आसपास की पहाड़ियां और जंगल नष्ट हो रहे हैं। साथ ही इसकी वजह से गांव और उसके आसपास अवैध खनन भी हो रहा है।

उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि मेसर्स श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्टोन क्रशर “गांव में भारी लॉरी और ट्रैक्टर चला रहे हैं, जिससे गांव की सड़कें क्षतिग्रस्त हो रही हैं और ग्रामीणों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।“

गौरतलब है कि संयुक्त समिति ने 21 अक्टूबर, 2022 को इस साइट का दौरा किया था। समिति ने निरीक्षण के दौरान यह पाया कि श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्टोन क्रशर 3.5 एकड़ भूमि क्षेत्र में स्थित है और पूर्व और पश्चिम की ओर कृषि भूमि से जबकि उत्तर और दक्षिण में पहाड़ियों से घिरा हुआ है।

वहीं वन अधिकारियों ने बताया कि इस क्षेत्र के 4 से 5 किलोमीटर के दायरे में कोई वन क्षेत्र या आरक्षित वन नहीं हैं। उक्त भूमि विशुद्ध रूप से राजस्व भूमि है, हालांकि वो क्षेत्र पहाड़ियों और वृक्षों से आच्छादित है।

एनजीटी में 31 अक्टूबर, 2022 को सबमिट रिपोर्ट में कहा है, कि घने पेड़ों के कारण आवेदक ने इसे जंगल समझ लिया था। इसके अलावा वन विभाग से किसी भी पेड़ की कटाई की अनुमति का अनुरोध नहीं किया गया है न ही ऐसा कोई आदेश खनन स्थल को जारी किया गया था। आम तौर पर इस क्षेत्र में मौजूद और लोगों द्वारा देखे जाने वाले जानवरों में काले रंग के खरगोश, आम पक्षी और सरीसृप हैं।

रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में वनस्पतियों और जीवों की जैव विविधता का पता लगाने के लिए क्षेत्रीय जीवविज्ञानियों की मदद से एक महीने में विस्तृत सर्वेक्षण किया जाना है और उसी की मदद से वन्यजीवों की गतिविधियों के बारे में एक रिपोर्ट तैयार की जानी है।

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