पर्यावरण मुकदमों की डायरी: अस्पतालों को 31 दिसंबर लगाना होगा ईटीपी

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें-

By Susan Chacko, Dayanidhi

On: Tuesday 24 November 2020
 

पंजाब के अमृतसर जिले में कुल 862 स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं (एचसीएफ) हैं। 862 एचसीएफ में से 367 एचसीएफ में बिस्तरों (बेड) की सुविधा हैं और शेष 495 एचसीएफ में केवल देखभाल की सुविधा हैं। लगभग 853 एचसीएफ ने जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत पूरे जीवनकाल में कम से कम एक बार अनुमतियां और सहमति प्राप्त की है और शेष 9 एचसीएफ ने उक्त नियमों के तहत पंजाब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से सहमति प्राप्त नहीं की है। 9 एचसीएफ के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।

367 बिस्तरों वाले अस्पतालों में से, 55 बिस्तरों वाले अस्पतालों ने अपशिष्ट उपचार संयंत्र (ईटीपी) लगाए हैं। शेष 312 बिस्तरों वाले अस्पतालों को 31 दिसंबर, 2020 तक ईटीपी लगाना आवश्यक है।

3 सितंबर, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के अनुपालन में संयुक्त समिति ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, मामला ईशांत खन्ना द्वारा अमृतसर के रानी बाग क्षेत्र में स्थित मैसर्स उप्पल न्यूरो अस्पताल द्वारा किए गए पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन पर दायर एक याचिका का था। संयुक्त समिति ने 2 नवंबर को अस्पताल का दौरा किया।

रिपोर्ट में कहा गया कि मेसर्स उप्पल न्यूरो अस्पताल ने पंजाब राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) और अन्य संबंधित एजेंसियों से सभी अनुमतियां और सहमति प्राप्त कर ली हैं। मेसर्स उप्पल न्यूरो अस्पताल ने समय-समय पर संशोधित जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत निर्धारित विभिन्न दिशानिर्देशों को लागू किया था। स्वास्थ्य देखभाल सुविधा (एचसीएफ) ने 31 मार्च, 2025 तक वैधता के साथ मैसर्स अमृतसर एनवायरोकेयर सिस्टम्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और उत्पन्न कचरे को निपटान सुविधा के लिए भेजा जा रहा था।

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्वास्थ्य देखभाल सुविधा (एचसीएफ) द्वारा स्थापित किया गया है और यह काम कर रहा है। निर्धारित मानदंडों के अनुपालन को सत्यापित करने के लिए नमूने भी लिए गए थे। पीपीसीबी प्रयोगशाला से प्राप्त विश्लेषण के परिणामों के अनुसार, एसटीपी निर्धारित मानदंडों का अनुपालन करता पाया गया।

रीवा में अवैध खनन नहीं हो रहा है 

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) द्वारा सौंपी गई संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, रीवा जिले के तहसील हुजूर ग्राम बैजनाथ में कोई अवैध खनन गतिविधि नहीं देखी गई।

यह तहसील हुजूर के ग्राम बैजनाथ, हिनौटी और खमरिया के क्षेत्र में अवैध खनन से जुड़ा मामला है।

रिपोर्ट में कहा गया कि ग्राम बैजनाथ में रीवा जिले के खनन कार्यालय द्वारा 80 पत्थर खदान पट्टे स्वीकृत किए हैं। क्षेत्र में अवैध खनन गतिविधि के संबंध में रीवा के खनन अधिकारी ने बताया कि जिला कलेक्टर ने ग्राम बैजनाथ और आस-पास के क्षेत्र में अवैध खनन और उसकी ढुलाई पर नियंत्रण के लिए निरंतर सतर्कता रखने के लिए एक समिति का गठन किया था।

खनन विभाग की समिति ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के अनुसार क्षेत्र का निरीक्षण किया। इसके अलावा 23 अक्टूबर को जिला कलेक्टर को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार, रीवा और उसके आस-पास के क्षेत्र में कोई अवैध खनन गतिविधि नहीं देखी गई। एमपीपीसीबी समिति ने 5 नवंबर को ग्राम बैजनाथ और उसके आसपास के क्षेत्र का भी दौरा किया और निरीक्षण के समय क्षेत्र में कोई भी अवैध खनन गतिविधि नहीं देखी गई।

मध्य प्रदेश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

मध्य प्रदेश द्वारा अपनाया गया क्लस्टर आधारित एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल 7 समूहों और विभिन्न चरणों में काम कर रहा है। इसमें कुल 110 शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) शामिल हैं। इन 7 समूहों में से 4 क्लस्टर कचरे को खाद (सागर, कटनी, छतरपुर और सिंगरौली) में और 3 क्लस्टर (जबलपुर, रीवा और ग्वालियर) में अपशिष्ट से ऊर्जा बना रहे हैं।

नगरीय प्रशासन विभाग ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के विशेषज्ञों के साथ विभिन्न विकल्पों की समीक्षा और चर्चा की, शेष में मिश्रित मॉडल दृष्टिकोण को अपनाने पर पुनर्विचार किया जा रहा है। 'एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन' (आईएसडब्ल्यूएम) परियोजनाओं के साथ क्लस्टर आधारित 'विकेन्द्रीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन' (एसडब्ल्यूएम) को 268  शहरी स्थानीय निकायों में अपनाया जा रहा है।

मिश्रित दृष्टिकोण मध्य प्रदेश को सभी शहरी स्थानीय निकायों में एसडब्ल्यूएम नियम, 2016 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।

शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) स्तर पर प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ विकेन्द्रीकृत (डिसेन्ट्रलाइज़) ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मॉडल पहले से ही उज्जैन शहर में काम कर रहा है, जिसमें प्रति दिन 190 टन कचरे से खाद बनाने की सुविधा है। एनजीटी के समक्ष मध्य प्रदेश राज्य द्वारा प्रस्तुत त्रैमासिक रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है।

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