उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने होम स्टे के मुद्दे पर सौंपी अपनी रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में घर के छह कमरों को होम स्टे के रूप में प्रयोग किया जा रहा है| जहां कचरे का उचित ढंग से निपटान और प्रबंधन हो रहा है|

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Wednesday 24 June 2020
 
उत्तराखंड के पौड़ी जिले का एक होम स्टे। फोटो: वर्षा सिंह12jav.net12jav.net

उत्तराखंड मं होम स्टे योजना में पर्यावरण संबंधी कानूनों की अवहेलना को लेकर उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी  रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को दे दी है। बोर्ड ने दावा किया है कि उत्तराखंड में बने होम स्टे में पर्यावरण नियमों का पालन हो रहा है।

4 नवंबर 2019 को एनजीटी ने राज्य सरकार को इस आशय के आदेश दिए थे। जिसके बाद एक संयुक्त जांच समिति का गठन किया गया था| इस जांच समिति ने 5 और 19 दिसंबर 2019 को बैठक की, जिसमें उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड, देहरादून और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

क्या है ‘होम स्टे’ योजना

रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड ने होम स्टे की स्थापना के लिए एक नीति बनाई थी जिसे ‘होम स्टे नियम 2015’ के नाम से जाना जाता है। इस होम स्टे पॉलिसी का मुख्य उद्देश्य पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन की जांच करना और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना था। इसके साथ ही पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति और व्यंजन से परिचित कराना था| पर्यटन और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही इस होम स्टे योजना की शुरूआत की गई थी।

इस होम स्टे पॉलिसी का उद्देश्य गतिविधियों को गैर-व्यावसायिक रखना था| इसलिए इस नियम के तहत निवासी अपने आवास के अधिकतम छह कमरों को होम स्टे योजना में पंजीकृत कर सकते हैं| इस योजना के तहत पंजीकरण करवाने के लिए जिला पर्यटन अधिकारी के तहत जिला पंजीकरण और खोज समिति का गठन किया गया था| जिसका कार्य संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के अनुमोदन से पहले पात्रता की शर्तों की जांच करना था| इसके साथ ही इस समिति का कार्य इन अतिथि गृहों से निकलने वाले अपशिष्ट जल एवं उसके उपचार और ठोस कचरे के प्रबंधन की भी जांच करना था|

समिति ने इन अतिथि आवास गृहों का दौरा किया और उसके आधार पर रिपोर्ट में जानकारी दी है कि यहां पर नीति के अनुसार छह कमरों को होम स्टे के रूप में प्रयोग किया जा रहा है| साथ ही कचरे का भी उचित ढंग से निपटान और प्रबंधन हो रहा है| यहां घरेलु सीवेज को सीवर लाइन में छोड़ा जा रहा है| वहीं ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में जहां सीवर लाइन नहीं है और जल की कमी है, वहां सीवेज को सेप्टिक टैंक और सोक पिट में डाला जा रहा है| साथ ही जैविक कचरे (बायोडिग्रेडेबल) को इन घरों में ही बने कम्पोस्ट पिट में डाला जा रहा है| जबकि अजैविक कचरे का निपटान नगर निगम की मदद से किया जा रहा है|

पर्यावरण नियमों का पूरी तरह रखा जा रहा है ध्यान

समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि आमतौर पर छह कमरों वाले इन अथिति गृह में से अधिकतम 1.0 किलो लीटर प्रति दिन की औसत से सीवेज निकलता है| ऐसे में इनके निपटान के लिए जो सेप्टिक टैंक और सोक पिट की मदद ली जा रही है वो इसके लिए काफी है| इन अथिति गृहों में जैविक कचरे का ठीक तरह से नियमों के अनुसार ही निपटान किया जा रहा है| साथ ही अजैविक कचरे को भी ठीक तरह से रिसाइकल किया जा रहा है|

रिपोर्ट के अनुसार जिले के सम्बंधित टूरिस्ट अधिकारी द्वारा इन अतिथि आवास घरों के पंजीकरण से पहले सभी तरह की जांच ठीक से पूरी की जा रही है| साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित रखने के सभी तथ्यों को जांचा जा रहा है| इसलिए नियमों की जांच करने के लिए अलग से नियामक तंत्र की स्थापना करने की जरुरत नहीं है|

क्या थी शिकायत

अधिवक्ता गौरव बंसल ने एनजीटी में जनहित याचिका डाली थी, जिसमें कहा गया था कि नैनीताल, मसूरी, धनौल्टी जैसे पर्यटन स्थलों पर होम स्टे के नाम पर कॉर्पोरेट सेक्टर भी काम कर रहा है। होटल बनाने के लिए बहुत सारी अनुमतियां लेनी होती हैं। एयर एक्ट, वाटर एक्ट, कचरा निस्तारण, इमारत की सुरक्षा, अग्नि सुरक्षा से संबंधित सभी मानक पूरे करने होते हैं। उनके मुताबिक होम स्टे के नाम पर बड़ी-बड़ी दुकानें चलने लगी हैं। जिसमें पर्यावरण से जुड़े पहलू पूरी तरह नजर अंदाज किए जा रहे हैं।

बंसल कहते हैं कि होटल वाले स्थानीय लोगों से कमरे किराए पर ले रहे हैं और उसे खुद होम स्टे के रूप में चला रहे हैं। इसका एक बहुत छोटा हिस्सा मकान के मालिक को दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर सौ रुपये मकान मालिक को दिए तो नौ सौ रूपए खुद अपनी जेब में रख लिए। ग्रामीण इससे अनजान रहते हैं। जो बिजली-पानी घरेलू इस्तेमाल के लिए खर्च की जा रही है यदि वो जगह कमर्शियल इकाई बन जा रही है तो उस पर कमर्शियल दरें लागू होनी चाहिए। वह मानते हैं कि गांवों में एक-दो कमरे वाले घरों को छोड़ भी दें, लेकिन जहां कई-कई कमरे होम स्टे में दिए गए हैं, वहां पर्यावरणीय मानक लागू होने चाहिए।

उत्तराखंड में करीब 1630 पंजीकृत होम स्टे हैं। हालांकि होम स्टे के कुछ सकारात्मक उदाहरण भी मौजूद हैं। ऐसे लोग जिन्होंने होम स्टे के तहत अपना स्वरोजगार शुरू किया और आज वे दूसरों के लिए उदाहरण भी साबित हो रहे हैं। दिल्ली में मल्टी नेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर वापस पौड़ी के अपने गांव में होम स्टे शुरू करने वाले दीपक नौटियाल ने पौड़ी तहसील के क्यार्क गांव के अपने पैतृक मकान में चार कमरों का होम स्टे बनाया है। 

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