प्रदूषण के मामले में अपने दायित्व से नहीं भाग सकते होटल: एनजीटी

एनजीटी ने 24 अगस्त 2020 को दिए अपने फैसले में कहा है कि होटल, वायु और जल अधिनियम के दायरे में आते हैं, इसलिए वो प्रदूषण के मामले में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते   </

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 25 August 2020
 

एनजीटी ने 24 अगस्त 2020 को प्रमोद कुमार अग्रवाल बनाम उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मामले में अपना फैसला दे दिया है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि पर्यावरण और प्रदूषण के मामले में होटल किसी भी तरह अपने दायित्व से नहीं बच सकते हैं। वो इसके लिए जल अधिनियम का फायदा नहीं उठा सकते। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अधिनियम की धारा 26, 1974 से पहले स्थापित होटलों पर लागू होती है। होटल चलाने के लिए जल और वायु से जुड़े नियम सभी होटलों पर लागु होते हैं। ऐसे में उससे हो सकने वाले जल और वायु प्रदूषण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

इस मामले में सुशीला टूरिंग होटल और एक अन्य आवेदक ने एनजीटी के समक्ष आवेदन किया था। जिसमें उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आदेशों को चुनौती दी गयी थी। गौरतलब है कि इस मामले में एसपीसीबी ने होटलों से सीवेज उपचार की व्यवस्था करने और साथ ही होटलों को चलाने के लिए जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के अंतर्गत सहमति लेने के लिए कहा था।

इस मामले में अपील करने वाले होटलों का तर्क था कि वे 1980 से काम कर रहे थे। ऐसे में जल अधिनियम की धारा 26 के अनुसार उन्हें सहमति के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है, जब तक कि राज्य सरकार द्वारा कोई तारीख अधिसूचित नहीं की जाती। होटलों ने कहा था कि उनके यहां कोई संयंत्र, मशीनरी, जनरेटर सेट या बॉयलर नहीं है। ऐसे में उन पर वायु अधिनियम, 1981 भी लागु नहीं होता है। लेकिन इस मामले में कोर्ट ने उनकी अपील ठुकरा दी है। साथ ही यह फैसला दिया है कि पर्यावरण और प्रदूषण से जुड़े मुद्दे पर होटल किसी भी तरह अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते।

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