लैंडफिल साइट का कचरा: एनजीटी ने दिल्ली सरकार पर लगाया 900 करोड़ रुपए का जुर्माना

ट्रिब्यूनल ने सरकार पर जुर्माने की यह राशि 300 रुपए प्रति टन के हिसाब से तय की है

By Vivek Mishra

On: Wednesday 12 October 2022
 

ठोस नगरीय कचरे का तय वैज्ञानिक मानकों के आधार पर नियमित उपचार न करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का सख्त रवैया कायम है। एनजीटी ने पश्चिम बंगाल और तेलंगाना के बाद अब दिल्ली सरकार पर लीगेसी वेस्ट का निपटारा न करने के लिए 900 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने जुर्माने की यह राशि 300 रुपए प्रति टन के आधार पर तय की है। पीठ ने पाया कि तीनों लैंडफिल साइट्स पर करी 300 लाख टन लीगेसी वेस्ट बिना उपचार के पड़ा हुआ है।

पीठ ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव की रिपोर्ट में पाया था कि 29 सितंबर, 2022 तक दिल्ली के तीन लैंडफिल साइट्स पर सिर्फ 21 फीसदी लीगेसी वेस्ट का जैव-उपचार किया गया। जबकि तीनों लैंडफिल साइट्स पर 80 फीसदी लीगेसी वेस्ट अब भी गैर उपचारित हैं।

दिल्ली मुख्य सचिव की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन 11357 टन कचरा निकलता है जिसमें से महज 5361 टन कचरे का ही प्रतिदिन प्रोसेसिंग संभव होता है।

वहीं, ट्रिब्यूनल ने गौर किया कि दिल्ली में करीब 5,996 टन कचरा प्रतिदिन बगैर उपचार के रह जाता है। जबकि बिगत तीन वर्षों में उपचार न होने के कारण करीब 66 लाख टन कचरा अतिरिक्त डंपसाइट पर जुटा है और डंप साइट पर लगातार कचरे का बढ़ना जारी है।

एनजीटी ने गौर किया कि गाजीपुर लैंडफिल साइट पर 2019 से अब तक महज 7 फीसदी लीगेसी वेस्ट को ही प्रोसेस्ड किया गया।

पीठ ने कहा कि हाल ही में सीपीसीबी व कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर यह पाया गया था कि पब्लिक हेल्थ और पर्यावरण को करीब 450 करोड़ रुपए की क्षति हुई है। इसे वसूला जा चुका है लेकिन यह क्षति अब भी जारी है। यह गौर किया गया है कि ठोस कचरे के उपचार संबंधी आदेशों का पालन करने को लेकर बीते 18 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट और उसके बाद 9 वर्षों से एनजीटी कोशिश कर रहा है। कुल 26 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आदेशों का पालन नहीं हो पाया।  

ट्रिब्यूनल ने कहा कि 22 दिसंबर, 2016 और 11 मार्च 2019 को दिए गए आदेश के मुताबिक लीगेसी वेस्ट के उपचार की अंतिम तारीख 7 अप्रैल, 2021 थी। इस पर भी एक्शन नहीं लिया गया। यहां तक कि गाजीपुर लैंडफिल साइट की फेंसिंग या कंस्ट्रक्टिंग वॉल बनाने के लिए प्राधिकरण 25 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाए। यहां तक कि ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद जुलाई, 2019 में 250 करोड़ रुपए डिपॉजिट किए गए थे।

पीठ ने कहा कि लगातार डंप साइट से बदबूदार और जहरीली गैस का रिसाव हो रहा है जो न सिर्फ काफी घनी बस्ती वाले लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है बल्कि ग्राउंड वाटर को प्रदूषित कर रहा है। इस बारे में 28 जनवरी, 2021 को आदेश दिया गया था कि एक स्पेशल परपर व्हिकल (एसपीवी) इस काम के लिए लगाया जाए, लेकिन इस आदेश का भी पालन नहीं किया गया।

पीठ नै कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में कूड़े के यह पहाड़ पर्यावरण की आपात स्थिति (एनवॉयरमेंटल इमरजेंसी) को प्रदर्शित कर रहे हैं। लगातार मीथेन और अन्य गैस का उत्सर्जन जारी है जो दिल्ली की आबोहवा को प्रदूषित कर रहा है। इन साइट के किनारे रहने वाले लोगों की सेहत खतरे में है। इन कचरे के साइटों पर आग लगने की आशंकाएं भी प्रबल हैं। आग को काबू पाने के लिए न्यूनतम सेफगार्ड्स भी प्राधिकरण की ओर से नहीं अपनाए गए हैं। जबकि आवश्यकता है कि प्राधिकरण युद्धस्तर पर इन कचरे के पहाड़ों के खतरों को कम करें।

पीठ ने कहा कि इन कचरे के पहाड़ों के जरिए बेहद कीमती सार्वजनिक जमीनों को घेरा गया है। 152 एकड़ जमीन जिसकी कीमत करीबी 10 हजार करोड़ रुपए या मार्केट रेट पर उससे भी अधिक हो सकती है। यह तत्काल जरूरत है कि इस सार्वजनिक संपत्ति को बेहतर इस्तेमाल लायक बनाया जाए। दिल्ली सरकार और नगर निगम मिलकर नागरिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं।     

पीठ ने गौर किया कि दिल्ली में 37 कंटिन्यूअस एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन हैं जिसमें से 10 इन डंप साइटों के 5 किलोमीटर दायरे में मौजूद हैं।

पीठ ने कहा कि 900 करोड़ रुपए का इस्तेमाल 2023 के अंत तक लैंड रिकवर करने के लिए किया जाएगा। 10 फरवरी, 2023 को इस संबंध में ट्रिब्यूनल ने मुख्य सचिव को पेश करने का आदेश दिया है।

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