बैठे ठाले: असली महाभारत

“अब गाजीपुर के कूड़े पहाड़ पर युद्ध नहीं बल्कि एमसीडी के चुनाव लड़े जाते हैं”

By Sorit Gupto

On: Friday 16 December 2022
 
सोरित / सीएसई

शक्रवार की शाम थी। छह बजते ही कौरव और पांडव दोनों पक्षों के सैनिकों ने अपना-अपना अस्त्र समेटा, बायोमेट्रिक में पंच-आउट किया और फिर कुरुक्षेत्र-मैदान मेट्रो स्टेशन की ओर दौड़ पड़े। मैदान मैं अब केवल घायल सैनिकों की हाय-हाय सुनाई पड़ रही थी। उन हाय-हाय में कोई एक था जो अपनी भर्रायी आवाज में किसी को कोसता हुआ गालियां दे रहा था। यह भीष्म पितामह थे जो अर्जुन के तीरों से बिंध गए थे और कौरवों ने उन्हें ‘मार्गदर्शक’ मंडल में भेज दिया था। एक नन्ही सी परछाईं घायल सैनिकों के बीच से रास्ता बनाते हुए उस आवाज की ओर बढ़ती जा रही थी। परछाईं को देख कर भीष्म ने शिष्टता से पूछा, “कौन है बे?”

परछाईं बोली, “बाबा! मैं अभिमन्यु का बेटा परीक्षित हूं। बाबा महाभारत का सीजन-वन मिस हो गया और अपने आपको बड़ा ‘फोमो’ महसूस कर रहा हूं।”

भीष्म ने बड़बड़ाते हुए कहा, “सीजन वन में सब कुछ गलत दिखाया गया है। असली कहानी कुछ और ही थी।” इतना कहते हुए भीष्म ने अपने स्मार्टफोन पर महाभारत चला दिया।

... धृतराष्ट्र का दरबार लगा है। कौरव और पांडव में जमीन का स्यापा चल रहा है।

धृतराष्ट्र कहते हैं, “मितरों! पीपीपी यानी पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप मॉडल की तर्ज पर मैंने पीकेपी या पांडव-कौरव-पार्टनरशिप का मॉडल ईजाद किया है जिसमें कौरव लोग हस्तिनापुर की सीमा पर बसे गाजीपुर नामक मनोरम गांव का इलाका पांडवों को दे देंगे।”

इतना सुनकर युधिष्ठिर समेत सभी पांडवों के आंखों के सामने रियल एस्टेट और मकानों के कतारों के चित्र घूम गए और पांडव खेमा खुशी से उछलने लगा। कौरव सेना धृतराष्ट्र के इस फैसले से बहुत नाराज हुई पर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को आंख मार कर खामोश रहने का इशारा किया।

भीष्म बोले, “जल्द ही पांडव खेमे को पीपीपी मॉडल की तरह पीकेपी मॉडल के झोल का पता लग गया जब अचानक एक दिन उन्होंने देखा कि दिल्ली से सैकड़ों की तादाद में कूड़ा-गाड़ियां हर दिन पूरे शहर का कूड़ा बटोर कर गाजीपुर में डालकर चली जाती हैं। पांडवों ने इसकी शिकायत धृतराष्ट्र से की। धृतराष्ट्र ने अपनी दूरदृष्टि का परिचय देते हुए दो टूक जवाब दिया, “भाइयो-बहनों! जिस प्रकार पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप मॉडल “जनता का पैसा/लाला का मुनाफा” के सिद्धांत पर टिका है, उसी प्रकार पांडव-कौरव-पार्टनरशिप मॉडल का मतलब है कि गांव अपनी जमीने देंगे और शहर उस जमीन पर अपना कूड़ा डालेंगे।

देखते ही देखते गाजीपुर गांव में हस्तिनापुर का कूड़ा इकठ्ठा होने लगा और जल्द ही वहां पर एक भरा-पूरा कूड़े का पहाड़ बन गया जहां रोज सैकड़ों की तादाद में गरीब परिवार कूड़ा बीनने लगे। वहां आवारा कुत्तों ने भी पैठ बना ली, यानी देखा जाए तो अपने आप में एक लहलहाता ईकोसिस्टम ही बन गया। पर जाने क्यों पांडव नाराज थे। उन्होंने एक बार फिर धृतराष्ट्र से अपील की पर धृतराष्ट्र अपनी बात पर अड़े रहे। अब ऐसे में जुआ खेलने के अलावा पांडवों के पास कोई चारा नहीं था। महाभारत की लड़ाई इसी वजह से शुरू हुई। यह इतिहास तुम्हें सिलेबस में नहीं पढ़ाया जाता।

इतना कहकर भीष्म चुप हो गए।

नन्हे परीक्षित ने पूछा, “पर महाभारत का युद्ध तो कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था और आप किसी गाजीपुर के कूड़े पहाड़ की बात कर रहे हैं?”

भीष्म बोले, “तुमने हस्तिनापुर के ट्रैफिक का हाल देखा है? पहले तो तय यही हुआ था कि महाभारत का युद्ध गाजीपुर के कूड़े के पहाड़ पर लड़ा जाएगा पर ट्रैफिक जाम के चलते सैनिक लोग युद्ध क्षेत्र में समय से पहुंच नहीं पाते, इसलिए युद्ध का वेन्यू चेंज कर दिया। अब गाजीपुर के कूड़े पहाड़ पर युद्ध नहीं बल्कि एमसीडी के चुनाव लड़े जाते हैं।”

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