Science & Technology

ऑटोमेशन से रोजगार पर बड़ा संकट मंडराएगा

ऑटोमेशन के कारण भारत सहित दुनिया के 1.20 करोड़ कामगारों की रोजी पर खतरा मंडरा रहा है 

 
By Anil Ashwani Sharma
Published: Tuesday 05 February 2019
इलस्ट्रेशन: तारिक अजीज / सीएसई

रमेश नेगी मूलत: उत्तराखंड के रहने वाले हैं। परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने के कारण दसवीं पास करने के बाद वह फरीदाबाद आ गए। यहां वह अपने रिश्तेदार की छोटी-सी वर्कशॉप में ऑटो पार्ट्स बनाने का काम करने लगे। 12 घंटे काम करने के बाद उन्हें 10 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता था, लेकिन मार्च 2016 में मालिक एक नई मशीन ले आया। रमेश ने बताया कि उस मशीन के आने के बाद मालिक ने 10 में से 4 लोग निकाल दिए। पिछले 31 महीने से वह नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं।

इसी तरह चारू जैन, अक्टूबर 2017 तक एक मीडिया कंपनी में काम करती थीं। वह ग्राफिक डिजाइनर हैं और कंपनी के न्यूज कंटेंट को सोशल मीडिया पर अपलोड करने के लिए वह डिजाइन बनाया करतीं थीं। उन्हें कंपनी की ओर से बताया गया कि एक कंपनी ने सॉफ्टवेयर खरीदा है, जिसमें हजारों डिजाइन हैं और सॉफ्टवेयर कंटेंट के हिसाब से डिजाइन का ऑप्शन देता है, जिसे आसानी से सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा सकता है। इसलिए कंपनी ने ग्राफिक डिजाइन डिपार्टमेंट को बंद करने का फैसला लिया है। चारू के साथ चार लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। बाकी लोगों को दूसरी जगह नौकरी मिल गई, लेकिन अपने साथियों की तरह चारू खुशकिस्मत नहीं निकली और एक साल से घर पर ही हैं।

ये ऐसे चंद उदाहरण हैं, जिनको नई और स्वचालित(ऑटोमेशन) तकनीक की वजह से अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। यह संकट अकेले भारत का नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया का है। लेकिन भारत पर इसका खतरा अधिक है। इस ऑटोमेशन के दौर को चौथी औद्योगिक क्रांति माना जा रहा है। भारत के लिए पहली तीन औद्योगिक क्रांति के मुकाबले चौथी क्रांति ज्यादा आक्रामक साबित होने वाली है। इसकी बड़ी वजह यह है कि चौथी औद्योगिक क्रांति की वजह से मध्यम दर्जे के कुशल लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ सकती हैं, जिनकी संख्या अभी लगभग 60 फीसदी है। इस संबंध में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के सहायक प्रोफेसर पी.विंग्नेश्वर इल्यावर्सन ने डाउन टू अर्थ को बताया कि नई प्रौद्योगिकी से नौकरी खोने का डर नया नहीं है। यह बात तब भी उठी थी जब 15वीं सदी में प्रिंटिंग प्रेस शुरू हो रहा था। ऑटोमेशन एक नई प्रौद्योगिकी है। इसमें रोबोटिक्स और आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस यानी एआई (कृत्रिम बुद्धिमता) पर चर्चा हो रही है। वह कहते हैं कि ऑटोमेशन के कारण अमेरिका में अगले दो दशक में 47 प्रतिशत नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। यही नहीं इसी संस्थान के निर्देशक वी.रामगोपाल राव इसके अगले कदम की ओर अागाह करते हुए बताते हैं िक भारतीय अर्थव्यवस्था पर एआई का बहुत गहरा असर होगा। वर्तमान दौर की नौकरियां भी इससे अछूती नहीं रह पाएंगी। वहीं दूसरी ओर एआई के खतरे पर डाउन टू अर्थ से बातचीत करते हुए पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनिल खेतान कहते हैं, “फरवरी, 2018 में जब प्रधानमंत्री ने वाधवानी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उद्घाटन किया, तो पूरा परिदृश्य ही बदल गया। अब सरकार एआई को संस्थागत बनाने के पीछे अपना पूरा जोर लगा रही है।”

चौथी औद्योगिक क्रांति का संकट

दिलचस्प बात यह है कि इस चौथी औद्योगिक क्रांति का मुख्य आधार डिजिटल प्रौद्योगिकी है, बावजूद इसके, ऑटोमेशन खासकर हाल के वर्षों में चलन में आई एआई की वजह से भारत की आईटी इंडस्ट्री पर बड़ा असर दिखने के आसार बन गए हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में आईटी इंडस्ट्री की हिस्सेदारी 9.3 प्रतिशत है। लेकिन इसमें कुल करीब 37 लाख कर्मचारी ही काम करते हैं। विश्व बैंक के आंकड़े कहते हैं कि भारत की आईटी इंडस्ट्री में 69 प्रतिशत नौकरियों पर ऑटोमेशन का खतरा मंडरा रहा है। भारत के मुकाबले चीन में 77 प्रतिशत नौकरियां ऑटोमेशन की वजह से खतरे में हैं। 1991 से 2013 के बीच भारत में करीब 30 करोड़ लोगों को नौकरी की जरूरत थी। इस दौरान केवल 14 करोड़ लोगों को ही रोजगार मिल सका।

विंग्नेश्वर कहते हैं कि एक अनुमान लगाया गया है कि विश्व की आधी नौकरियां ऑटोमेशन पर चल सकती हैं। उनका कहना है कि हरेक परिवार में औसतन 4 सदस्य हैं। यांत्रिकीकरण की वजह से अगर घर के मुखिया की नौकरी गई तो परिवार पर उसका बहुत बुरा असर होगा। इसके कई सामाजिक प्रभाव भी हैं जैसे कुपोषित बच्चे, स्कूल ड्रॉप-आउट्स, दाम्पत्य जीवन में कलह, घरेलू हिंसा, इत्यादि। वैसे घर जहां महिलाएं मुखिया हों, काफी कम संख्या में हैं। अकुशल श्रेणी में 10 प्रतिशत और कुशल श्रेणी में 5 प्रतिशत। यह सही है कि यांत्रिकीकरण से महिलाओं पर बोझ बढ़ जाएगा।

नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार भारत में रोजगार के यांत्रिकीकरण की काफी गुंजाइश है। निचली श्रेणी के रोजगार, स्किल लेवल एक अथवा अकुशल मजदूर कुल श्रमबल का 19 प्रतिशत है जबकि 58 प्रतिशत कम कुशलता वाले। इन दोनों श्रेणियों को मिला दिया जाए तो ये यांत्रिकीकरण योग्य नौकरियों का कुल 77 प्रतिशत होंगी। यह पहले लगाए गए अनुमानों से ज्यादा है। अगर घर के मुखिया के शिक्षा के स्तर की बात की जाए तो यांत्रिकीकरण की गुंजाइश और भी बढ़ जाती है। शिक्षा के तीन निचले स्तर (अनपढ़, प्राइमरी एवं सेकंडरी) में कुल श्रमबल का 87 प्रतिशत है। अगर शिक्षा का स्तर रोजगार के स्तर को दर्शाता हो तो भारत में यांत्रिकीकरण की गुंजाइश और भी ज्यादा है।

स्रोत: इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स,  *अनुमानित

आईटी सेक्टर के लिए प्रोफेशनल्स को ऑनलाइन ट्रेनिंग देने वाली कंपनी सिंपलीलर्न की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आने वाले 5 साल में आईटी सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर मैनेजमेंट में 2.60 लाख, बीपीओ में 1.70 लाख, मैनुअल टेस्टिंग 1.50 लाख और सिस्टम मेंटेनेंस 9,000 नौकरियों पर असर पड़ सकता है। आईटी कर्मचारियों के लिए काम कर रही संस्था फोरम फॉर आईटी इम्प्लॉयज के हरियाणा चैप्टर के समन्वयक प्रातिश कहते हैं कि पिछले दो-तीन सालों से भारत की आईटी इंडस्ट्री पर ऑटोमेशन की जबरदस्त मार पड़ी है। प्रातिश के मुताबिक,आईटी सेक्टर में बड़ी संख्या में ऐसे युवा काम कर रहे हैं, जो बारहवीं या ग्रेज्युएट हैं और कम्प्यूटर की बेसिक नॉलेज लेकर 20 से 50 हजार रुपए की नौकरी कर रहे हैं। आर्टिफिशएल इंटेलिजेंस की वजह से इन सबको नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, इसलिए सरकार को अभी से इनके लिए विकल्प तैयार करना होगा। इसीलिए रामगोपाल राव कहते हैं कि हमें कौशल विकास, खासकर तकनीकी कौशल की दिशा में काम करना होगा।

प्रातिश बताते हैं कि ऑटोमेशन की वजह से आईटी सेक्टर में नए मौके भी आ रहे हैं। लेकिन इनके लिए डेटा साइंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा जैसी तकनीक की महारत हासिल करनी होगी। इस संबंध में राव कहते हैं,- आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के बारे में पढ़ाने वालों की संख्या काफी कम है। आईआईटी, दिल्ली में जब एआई कोर्स शुरू किया गया तो लगभग 500 छात्रों ने एआई कोर्स करने की इच्छा जताई। अपडेट नहीं होने से सौरभ जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। वह गुरुग्राम में एक यूएस कंपनी में काम करते थे, लेकिन करीब साढ़े पांच महीने पहले कंपनी शिफ्ट हो गई। तब से अपना खर्च चलाने के लिए वह एक कॉलेज में हार्डवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि आईटी सेक्टर ऐसा फील्ड है, जहां खुद को अपडेट रखना बेहद जरूरी है, वरना आप रेस से बाहर हो जाएंगे। सौरभ जैसे देश के लाखों युवा तकनीक के नए युग में प्रवेश करने वाले हैं। एआई से कई तरह की नौकरियां खत्म होंगी। इसलिए सरकार की चिंता बढ़ेगी। इस संबंध में राव ने कहा कि सरकार को नए स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम तैयार करने होंगे। आईआईटी दिल्ली में 40 फैकल्टी मेंबर हैं, जो आईए पर काम करते हैं, लेकिन सरकार को यह सोचना होगा कि ये 40 लोग 400 को कैसे ट्रेंड करें। भारत की कुल काम करने वाली आबादी में से लगभग 16 फीसदी विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) सेक्टर में हैं, लेकिन ऑटोमेशन का असर इस सेक्टर में तेजी से पड़ रहा है। खासकर एआई से पैदा हुए रोबोट की वजह से इस सेक्टर में काम कर रहे लोगों की नौकरियों पर संकट बढ़ रहा है।

1895 में यूएस में केवल 4 कारें ही पंजीकृत थीं, लेकिन केवल 9 साल बाद 1904 में 121 अमेरिकी कंपनियां लगभग 22 हजार ऑटोमोबाइल्स को असेम्बलिंग और प्रोडक्शन कर रही थीं। इसके बाद जिस तेजी से मार्केट में ऑटोमोबाइल्स की मांग बढ़ी तो कंपनियों पर प्रोडक्शन बढ़ाने का दबाव बढ़ा और अमेरिका में सबसे पहले 1954 में जॉर्ज डीवॉल नाम के वैज्ञानिक ने सबसे पहला इंडस्ट्रियल रोबोट डिजाइन किया, जिसका नाम यूनिमेट रखा गया। पहले इंडस्ट्रियल रोबोट यूनिमेट ने 1961 से काम करना शुरू कर दिया।

आजादी से पहले ही भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर ने अपने पांव जमाने शुरू कर दिए थे। 1940 में भारत में पहली मैन्युफैक्चरिंग यूनिट ने काम करना शुरू किया और 60 के दशक में हिंदुस्तान मोटर्स ऑटोमोबाइल सेक्टर पर हावी थी, लेकिन 1983 में मारुति ने ऑटोमोबाइल सेक्टर में प्रवेश किया और सस्ती व फैमिली कार के साथ ही इस मार्केट की दिशा ही बदल दी। 2011 में भारत दुनिया का छठवां सबसे बड़ा कार निर्माता देश बन गया। ऑटो मार्केट पर लगभग 51 फीसदी हिस्सा मारुति का है। भारत में लगभग 1.9 करोड़ लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर ऑटोमोबाइल सेक्टर से रोजगार पा रहे हैं।

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स की रिपोर्ट 2017 वर्ल्ड रोबोट स्टेटिस्टिक्स में कहा गया है कि विश्व भर में रोबोट का सबसे बड़ा ग्राहक ऑटोमोटिव इंडस्ट्री है। अकेले 2016 में रोबोट की कुल सप्लाई का 35 फीसदी हिस्सा ऑटोमोटिव सेक्टर में किया गया। भारत में रिपोर्ट के मुताबिक 2016 तक मारुति उद्योग, हरियाणा में 1100 रोबोट, फोर्ड के गुजरात प्लांट में 90 फीसदी काम ऑटोमेटेड होता है, जो 453 रोबोट करते हैं। मारुति उद्योग कामगार यूनियन के महासचिव कुलदीप जांगू बताते हैं कि लगभग आठ साल से नियमित कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ी है। आठ साल पहले वर्कशॉप व पेंटशॉप में काम करने वाले नियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 5700 थी, अब भी इतने ही हैं। उनके मुताबिक, गुरुग्राम व मानेसर स्थित तीनों प्लांट में लगभग 3000 रोबोट काम कर रहे हैं। नौ सालों में कंपनी का राजस्व दोगुना से भी अधिक हुआ है, लेकिन कर्मचारियों की संख्या दोगुना से कम है।



छोटे उद्योगों पर भी संकट

ऑटोमेशन की वजह से छोटे व कुटीर उद्योगों पर भी बड़ा संकट मंडरा रहा है। देश के एक बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में पहचाने जाने वाले फरीदाबाद में बड़ी संख्या में ऐसी छोटी-छोटी वर्कशॉप होती थी। लेकिन पिछले एक दशक में इनकी संख्या आधी रह गई है। ऐसी ही एक वर्कशॉप चलाने वाले जसवंत सिंह बताते हैं कि उनकी फैक्ट्री मेटल बॉक्स बंद हो गई थी तो उन्होंने किसी तरह एक लैथ मशीन लगाकर अपने घर पर ही काम शुरू किया और एक बड़ी कंपनी के लिए पार्ट्स सप्लाई करने लगे। कई साल तक ठीक ठाक चला, लेकिन बाद में कंपनी वालों ने उनके पार्ट्स लेने से इनकार कर दिया, क्योंकि उनके पार्ट्स में सीएनसी मशीन जैसी फिनिशिंग नहीं थी। इसलिए जसवंत को काम बंद करना पड़ा। इस संबंध में मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फरीदाबाद के महासचिव रमणीक प्रभाकर बताते हैं कि कई छोटे उद्योगों ने मारुति व हीरो होंडा के प्लांट्स के लिए पार्ट्स बनाने शुरू किए। अब वहां भी ऑटामेशन की वजह से छोटे कारखानों से कम माल लिया जा रहा है।

प्रभाकर कहते हैं कि राज्य सरकारों का ध्यान पूंजी निवेश पर तो होता है, लेकिन छोटे कारखानों पर नहीं। पिछले दिनों दो राज्यों में निवेशक सम्मेलन आयोजित किए गए। इनमें से उत्तराखंड सरकार ने दावा किया कि दो दिन के निवेशक सम्मेलन में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव आए हैं, जिनसे प्रदेश में लगभग 3.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। यानी कि औसतन 35 लाख रुपए के निवेश से एक व्यक्ति को रोजगार मिलेगा। वहीं, नवंबर माह में ओडिशा में आयोजित निवेशक सम्मेलन में 4 लाख 20 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्ताव मिलने का दावा किया गया है और कहा गया कि इससे राज्य में 5.90 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। यानी कि औसतन 72 लाख के निवेश पर 1 व्यक्ति को रोजगार मिलेगा। जबकि सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि एक छोटे और कुटीर उद्योगों में एक रोजगार उत्पन्न करने के लिए लगभग 1.5 लाख रुपये का निवेश की जरूरत होती है।

2016 की मैकेंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट द्वारा जारी “टैक्नोलॉजी जॉब्स एंड द फ्यूचर ऑफ वर्क” रिपोर्ट में कहा गया कि अगले दो दशक में विश्व की अर्थव्यवस्था का 50 फीसदी ऑटोमेशन से प्रभावित होगा। इसका अर्थ है 120 करोड़ श्रमिक प्रभावित होंगे, जिसमें से आधे चीन, भारत, जापान व अमेरिका के होंगे। वहीं, 2016 में विकासशील देशों के लिए विश्व बैंक द्वारा तैयार की गई विश्व विकास रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में नौकरियों पर ऑटोमेशन का ज्यादा खतरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, ऑटोमेशन की वजह से विकसित देशों के संगठन ओईसीडी में 57 फीसदी, चीन में 77, भारत में 59 और थाईलैंड में 72 फीसदी नौकरियां कम हो सकती हैं। विश्व बैंक की रिपोर्ट में अब तक सबसे बड़ी छंटनी के बारे में भी बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की सप्लायर कंपनी फॉक्सकॉन ने पिछले साल 60 हजार लोगों को निकाल दिया और उनकी जगह रोबोट की नियुक्ति कर दी।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांउसिल, हरियाणा के बेचूगिरी कहते हैं कि कारखानों में तीन श्रेणियों में कामगार को काम दिया जाता है। गैर कुशल, अर्धकुशल और कुशल। लेकिन अब ऑटोमशन के जमाने में अति कुशल की श्रेणी के कामगार को काम दिया जा रहा है। अब तक पहली तीन श्रेणियों के कामगार को उसकी कुशलता के हिसाब से वेतन दिया जाता है, लेकिन ऑटोमेशन की वजह से इन तीन श्रेणी के कामगार की जरूरत ही नहीं रहेगी, जिससे नौकरियों के जाने का सिलसिला बढ़ने लगा है।

चौथी औद्योगिक क्रांति के अजेंडे पर काम कर रहे विश्व आर्थिक मंच ने “फ्यूचर ऑफ जॉब्स” नाम की रिपोर्ट में कहा है कि आने वाले 7 सालों में यानि 2025 तक इंसान का आधे से ज्यादा काम (करीब 52 फीसदी) मशीनें करने लगेंगी। अभी इंसान के कुल काम का केवल 29 फीसदी मशीनें करती हैं। बेचूगिरी कहते हैं कि उद्योगों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत होने के बाद गरीब, यहां तक कि मध्य वर्ग के युवाओं को भी काम पर नहीं रखा जाएगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि उस स्तर की कुशलता हासिल करने के लिए बच्चों को उच्च शिक्षा देनी होगी और उच्च शिक्षा इतनी महंगी है कि गरीब व मध्य परिवारों के बच्चे पढ़ ही नहीं सकते। स्कूली पढ़ाई ही काफी महंगी है तो फिर नौकरी के लिए कुशलता हासिल करना तो बहुत ही महंगा हो गया है। इसलिए उद्योगों में काम तो अब रोबोट ही कर पाएंगे।

रोबोट की वजह से मानव श्रम को होने वाले नुकसान को लेकर दुनिया में बहस शुरू हो चुकी है। इसी का परिणाम है कि फरवरी 2018 में यूरोपीय सांसदों ने यूरोपीय संघ के समक्ष एक कानून बनाने का प्रस्ताव रखा, जो रोबोट के बढ़ते प्रचलन का नियमन करे। फ्रेंकफुर्ट स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स ने एक बयान जारी कर कहा कि रोबोट टैक्स लगने से प्रतिस्पर्धा और रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता। हालांकि दुनिया के सबसे अमीर आदमी बिल गेट्स ने रोबोट टैक्स का पक्ष लेते हुए कहा कि उन कंपनियों पर टैक्स लगना चाहिए, जो रोबोट का इस्तेमाल करेंगी। इससे कंपनियों में रोबोट के इस्तेमाल को लागू होने की गति को धीमा किया जा सकता है। क्वार्ट्ज को दिए एक इंटरव्यू में गेट्स ने कहा कि रोबोट टैक्स से मिलने वाले पैसे को वृद्ध लोगों की देखभाल की जा सकती है या श्रमिकों के बच्चों के लिए स्कूल खोले जा सकते हैं। गेट्स ने कहा कि सरकार को व्यापारियों पर विश्वास करने की बजाय उन कार्यक्रमों पर नजर रखनी चाहिए, जिसकी वजह से कम आमदनी वाले लोगों की नौकरियां जा रही हैं।

कुल मिलाकर ऑटोमेशन के जहां एक ओर नुकसान है तो दूसरी ओर इसे आज की तारीख में एक जरूरत भी समझी जा रही है। क्यों कि आज अकेले भारत में ही नहीं पूरी दुनिया भर में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। इस संबंध में राव कहते हैं कि भारत में इसकी बहुत संभावनाएं हैं। जैसे कि, चिकित्सा के क्षेत्र में देखा जाए तो इसकी बहुत जरूत है। एम्स में हर साल लाखों लोग इलाज कराते हैं और आप देखें तो वहां डाटा उपलब्ध है, ऐसे में यदि कोई कम्प्यूटर साइंटिस्ट, डॉक्टर्स के पास बैठ कर इस डाटा का अध्ययन करें। ये कम्प्यूटर साइंटिस्ट, जो पैटर्न की पहचान करें। इससे इलाज तो होगा ही, बल्कि बीमारी को रोकने के इंतजाम भी किए जा सकेंगे। यदि भारत ऐसे क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेता है तो उसके कई फायदे होंगे। उन्होंने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भारत में काफी संभावनाएं हैं। हमारे पास हर क्षेत्र में अपार डाटा उपलब्ध है। सुरक्षा, चिकित्सा व पर्यावरण, हर क्षेत्र का डाटा उपलब्ध है। इसलिए हमारी आईटी पृष्ठभूमि और डाटा की उपलब्धता को देखा जाए तो हम एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकते हैं।

हालांकि बड़ी चुनौती है लोगों को एक साथ लाना है। मतलब, हर क्षेत्र के विशेषज्ञों को एक साथ लाना होगा। यह देखना होगा कि कम्प्यूटर साइंटिस्ट और मेडिकल डॉक्टर कैसे मिलकर काम करेंगे। यदि हम ऐसा कर लेते हैं तो हम एआई के क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व कर सकते हैं।

(साथ में राजू सजवान)

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