ब्रह्मांड : शून्य से अनंत तक

आपकी आंखों में चुभने वाले यह नीले, पीले और हरे रंग के धब्बे अजीब लग रहे होंगे। दरअसल ये हमारे ब्रह्मांड के शुरु होने का सबसे बड़ा वैज्ञानिक सबूत हैं। यह सबूत 13.8 अरब वर्ष पुराना है लेकिन हम मुश्किल से 55 वर्ष पहले ही इस सबूत के गवाह बने हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड के शुरू होने का यह सबूत भी एक खरब वर्ष बाद मिट जाएगा। ये धब्बे क्या रहस्य खोलते हैं? इनके सहारे हम ब्रह्मांड और उसके विस्तार की यात्रा कहां तक कर पाएं हैं? अगला पन्ना आपको जिज्ञासा की इसी वैज्ञानिक यात्रा पर ले जाएगा

By Akshit Sangomla, Vivek Mishra

On: Saturday 02 May 2020
 

"कोई ईश्वर नहीं है।” यह बहुत छोटा लेकिन ध्यान खींचने वाला वाक्य बेहद सामान्य से दिखने वाले किसान जगन्नाथ भोई के मुंह से निकले। वह ओडिशा में पुरी जिले के सारंगजोडी गांव में करीब-करीब बर्बाद हो चुके अपने नारियल खेत के बीच खड़े थे। मई 2019 की बात है, फोनी चक्रवात ने उनके 80 फीसदी नारियल खेत को बर्बाद कर दिया था। जगन्नाथ ईश्वर की सत्ता को खारिज करते हैं। वह खेतों में हुई बर्बादी का कसूरवार मानव जनित जलवायु परिवर्तन को ठहराते हैं।

जगन्नाथ ने कहा कि उन्होंने महसूस किया है कि ईश्वर की सत्ता नहीं है और ऐसा वे स्टीफन हॉकिंग की आखिरी पुस्तक “ब्रीफ आंसर टु द बिग क्वेश्चन” की पढ़ाई के बाद कह रहे हैं। स्टीफन हॉकिंग अपनी पुस्तक के निष्कर्ष में लिखते है, “इस ब्रह्मांड को किसी ने नहीं बनाया है और न ही हमारी तकदीर को कोई आदेश देता है।” उन्होंने अपनी पुस्तक के निष्कर्ष में लिखा है, “यदि यह ब्रह्मांड मकसद विहीन है तो आपको इसके निर्माण के लिए भगवान की जरूरत नहीं है।” यदि स्टीफन हॉकिंग वाकई सही हैं तो फिर ब्रह्मांड कैसे अस्तित्व में आया और क्यों? मानव इतिहास में यह दो सवाल बार-बार पूछे गए हैं। इसके कुछ रोचक जवाब भी हैं लेकिन अंतिम और निश्चित जवाब का अब भी इंतजार है। ज्यादातर जवाब ब्रह्मांड की रचना का बोझ किसी न किसी रूप में एक या उससे अधिक सर्वशक्तिमान ईश्वर पर ही डालते हैं और यह कदम असंख्य धर्मों को जन्म देता है।

ब्रह्मांड की शुरुआत और उसके विस्तार के बारे में विज्ञान को पहला सबूत 20वीं सदी में ही मिला है। 1965 की बात है, अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में मुर्रे हिल पर बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में आर्नो पेनजियास और रॉबर्ट विल्सन एक रेडियो रिसीवर बना रहे थे। इस दौरान रिसीवर में उन्हें कुछ त्रुटि या बाधा पता चली। वे इसका स्रोत नहीं जान सके और जब यह खबर फैली तो स्रोत का पता लगाने के लिए पड़ोस में ही प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की दिलचस्पी जाग पड़ी। बेल टेलीफोन प्रयोगशाला में सभी जुटे। आखिरकार रेडियो रिसीवर में हुई बाधा के स्रोत का पता लगा ही लिया गया।

रेडियो रिसीवर पर अचानक सिग्नल में आई त्रुटि या बाधा ब्रह्मांड की प्रारंभिक अवस्था का 13.8 अरब वर्ष पुराने रहस्य का एक बेहद जरूरी संदेशा था। वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की इन सूक्ष्म तरंगों की पहचान कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (सीएमबी) यानी खगोल सूक्ष्म तरंगों की पृष्ठभूमि के तौर पर की। इस सीएमबी ने ब्रह्मांड की शुरुआत और विस्तार के रहस्य का पहला बड़ा पर्दा खोला, जिससे वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड के शुरुआत होने का एक मजबूत वैज्ञानिक सिद्धांत बनाने में मदद मिली। दरअसल सीएमबी की खोज के बाद ही ब्रह्मांड के शुरुआत वाला सिद्धांत बिग-बैंग तक पहुंच गया। यह सीएमबी ब्रह्मांड की प्रारंभिक अवस्था में पैदा हुए काफी गर्म विकिरणों का अवशेष ही हैं। सीएमबी का पता लगाने वाली असाधारण खोज के लिए 1978 में पेनजियास और विल्सन को भौतिकी के नोबेल सम्मान से नवाजा गया है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति, प्रारंभ और विस्तार का रहस्य आज भी सबसे ज्यादा सक्रिय और ज्वलंत विषय है। किसी भी युग और दौर में यह सवाल ठंडा नहीं पड़ा। 1965 में ही सीएमबी की खोज के समय कुछ और भी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक बहस जारी थी। दरअसल वैज्ञानिकों के बीच ब्रह्मांड की शुरुआत के सिद्धांत को लेकर मतभेद बना हुआ था। अधिकांश यह मानते थे कि ब्रह्मांड की शुरुआत नहीं हुई है बल्कि वह शाश्वत है या फिर ब्रह्मांड की रचना हुई है। शायद ब्रह्मांड की शुरुआत शब्द से धारणाओं के ढ़ह जाने का डर था।


दिवंगत स्टीफन हॉकिंग ने 2007 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में बर्कले के छात्रों को एक संबोधन में ब्रह्रमांड की शुरुआत और विस्तार से जुड़ी अहम बात बताते हैं। स्टीफन कहते हैं, “ब्रह्मांड की शुरुआत हुई थी, इस सिद्धांत को नकारने की एक जबरदस्त कोशिश हुई। सुझाव दिया गया कि ब्रह्मांड का एक पिछला संकुचन काल भी था। लेकिन लगातार घूर्णन और कुछ दूसरी असमानताओं के कारण सारा पदार्थ एक ही जगह नहीं गिरा होगा बल्कि पदार्थ के अलग-अलग हिस्से हो गए होंगे और इसलिए शेष सीमित घनत्व के साथ ब्रह्मांड का विस्तार एक बार फिर होगा। दरअसल यह दावा दो रूसी वैज्ञानिकों लिफशिट्ज और ख्लातनिकोव का था। उनका कहना था कि उन्होंने साबित कर दिया है कि असमानताओं के साथ होने वाला असंतुलित संकुचन, घनत्व को अपरिवर्तित रखते हुए हमेशा एक उछाल (बाउंस थ्योरी) की ओर ले जाएगा। ये नतीजे मार्क्सवादी-लेनिनवादी तार्किक भौतिकवाद के लिए काफी सुविधाजनक थे, क्योंकि इसके सहारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में असुविधा पहुंचाने वाले सवाल टाले जा सकते थे। इसलिए ये तर्क सोवियत के वैज्ञानिकों के लिए ‘आर्टिकिल ऑफ फेथ’ बन गए।”

स्टीफन अपने भाषण में आगे कहते हैं कि हमने साबित कर दिया कि ब्रह्मांड उछल नहीं सकता। रोजर पेनरोज के साथ मैंने यह दिखाया कि अगर आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत सही है, तो वहां एक सिंगुलैरिटी होगा। सिंगुलैरिटी अर्थात असीमित घनत्व और स्पेस-टाइम कर्वेचर वाला एक ऐसा बिंदु जहां से समय की शुरुआत होती है। इसका सीधा मतलब था कि ब्रह्मांड उछल सकता है यह सिद्धांत पूरी तरह खारिज हुआ। अक्टूबर, 1965 में ही गणितज्ञ रोजर पेनरोज और स्टीफन हॉकिंग के सिंगुलैरिटी वाले विचार को सबूत का भी बल मिल गया। दरअसल यह पेनजियास और विल्सन की खोज सीएमबी ही थी जिसमें बताया गया था कि यह समूचे स्पेस में धुंधली और निस्तेज सूक्ष्मतरंगें (माइक्रोवेव) फैली हैं। सीएमबी यानी ब्रह्मांडीय सूक्ष्मतरंग पृष्ठभूमि को आप धरती पर भी देख सकते हैं। घरेलू उपयोग में आने वाले माइक्रोवेव ओवन में सूक्ष्मतरंगें होती हैं जो स्पेस की सीएमबी से बेहद ताकतवर हैं। वहां के माइक्रोवेव में पिज्जा गर्म होने के बजाए जम जाएगा क्योंकि 13.8 अरब वर्ष बाद उसका तापमान -271.3 डिग्री सेंटीग्रेड है।

खैर ब्रह्मांड के सूक्ष्मतरंग पृष्ठभूमि का दर्शन आप अपने टेलीविजन पर कर सकते हैं। अपने टेलीविजन से सेटअप बॉक्स या एंटीना का तार निकाल दें। फिर टीवी स्क्रीन पर किसी भी चैनल में असंख्य झिलमिलाते हुए सफेद काले बिंदु दिखेंगे। यह सीएमबी के कारण ही दिखाई देते हैं। ब्रह्मांड प्रारंभ में बेहद गर्म और सघन दशा में जो विकिरणें निकली वही आज अवशेष के तौर पर सीएमबी हैं। पेनरोज के सिंगुलैरिटी वाले गणितीय सूत्र और स्टीफन हॉकिंग ने यह तो बता दिया कि ब्रह्मांड शुरू हुआ था लेकिन यह नहीं बताया कि यह कैसे शुरू हुआ था।

विस्तार की दर को लेकर रस्साकशी

इस खोज के 55 वर्ष बाद सीएमबी और इसके अध्ययन से निकलने वाले परिणाम ऐसे भौतिकविदों के लिए एक विवादास्पद मुद्दा बन गए हैं जो ब्रह्मांड के विस्तार की दर पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अप्रैल 2019 में संयुक्त राज्य में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में एडम रीस और उनके सहयोगियों ने चौंकाने वाले नतीजे के साथ बताया कि यूनिवर्स पहले से ज्ञात की तुलना में बहुत तेजी से विस्तार कर रहा है। वैज्ञानिक दो अलग-अलग तरीकों से ब्रह्मांड के विस्तार की दर या हबल कांस्टेंट को मापते हैं।

पहला तरीका वर्तमान समय में दूर के सितारों और आकाशगंगाओं के व्यवहार को देखकर और उस दर की गणना करना है, जिस पर वे एक दूसरे से दूर जा रहे हैं। यह केवल पृथ्वी पर और अंतरिक्ष में स्थित आधुनिक दूरबीनों के साथ ही संभव हो पाया है, जैसे हबल स्पेस टेलीस्कोप, जो 1990 में लॉन्च किया गया था। ये दूरबीनें सितारों और उनकी गति व विकिरणों (प्रकाश भी) का सीधा अवलोकन करने में खगोलविदों की मदद करती हैं।

ब्रह्मांड के विस्तार की दर को मापने का दूसरा तरीका सीएमबी और अन्य विकिरण की पिछली विशेषताओं का अध्ययन है। इस आधार पर ब्रह्मांड के जन्म के समय का और उसके बाद की कक्षा का अध्ययन किया गया। सीएमबी को मुख्य रूप से वैज्ञानिकों ने 2009 से 2013 तक यूरोपीय स्पेस एजेंसी द्वारा संचालित प्लैंक उपग्रह के पर्यवेक्षण का उपयोग करके मापा था।

पिलर्स ऑफ क्रिएशन: वह नेबुला जिससे तारों का जन्म हुआ

रीस के शोध में पहली विधि यानी सितारों और आकाशगंगाओं के व्यवहार को देखकर की गई गणना का उपयोग किया गया है। इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि ब्रह्मांड के विस्तार की दर 73.4 किलोमीटर प्रति सेकेंड प्रति मेगा पार्सेक (किमी/सेकेंड/एमपीसी) है, जबकि सीएमबी के आधार पर मापे गए ब्रह्मांड के विस्तार की दर 67.4 (किमी/सेकेंड/एमपीसी) है। रीस का कहना है कि ब्रह्मांड का विस्तार सीएमबी माप से 10 फीसदी ज्यादा तेज हो रहा है और ब्रह्मांड के विस्तार की दर का जो अंतर है उसमें किसी भी तरह की त्रुटि नहीं है। रीस को पहले ऐसा लगा था कि हमारे माप के तरीके में हासिल हुआ अंतर किसी तरह की त्रुटि है लेकिन अब यह पूरी तरह से सच है कि ब्रह्मांड का विस्तार ज्यादा तेज हो रहा है। ब्रह्मांड के विस्तार की दर को लेकर की गई गणना (प्रोबेबिलिटी) में पहले त्रुटि की संभावना तीन में एक बार थी तो अब यह घटकर एक लाख में एक बार हो गई है। इसलिए विस्तार की दर का निष्कर्ष निश्चित रूप से सही है।

निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए रीस और अन्य वैज्ञानिकों ने हबल स्पेस टेलीस्कोप के जरिए दूधिया आकाशगंगा (मिल्की-वे) के पड़ोस में मौजूद वृहत मैग्लेनिक मेघ आकाशगंगा में कुछ मद्धिम और चमकदार होते तारों का अध्ययन किया। इन चमकदार तारों को सिफिड परिवर्ती तारा (सिफिड वैरिएबल्स) भी कहते हैं। ऐसे तारों की चमक संबंधी गतिविधि का अनुमान वैज्ञानिक आसानी से लगा सकते हैं। वहीं, गैलेक्सी और बड़े पैमाने की दूरी मापने वाले वैज्ञानिकों के लिए यह तारे मील के पत्थर जैसे हैं। इन्हें स्टैंडर्ड कैंडल्स भी कहा जाता है।

ब्रह्मांड तेजी से विस्तार कर रहा है, यह साबित करने के लिए रीस एक तरीका अपनाते हैं। उन्होंने स्टैंडर्ड कैंडल्स जिसे टाइप 1ए सुपरनोवा के रूप में जाना जाता है, उसका अध्ययन 1998 में किया। सितारों के जीवन का जब अंत होता है तो उनमें एक शानदार विस्फोट होता है। इसी को सुपरनोवा कहते हैं। इस खोज के लिए रीस ने ब्रायन श्मिट और सॉल पर्लमटर के साथ 2011 में भौतिकी का नोबेल जीता है। लेकिन यह महत्वपूर्ण सवाल है कि ब्रह्मांड वास्तव में विस्तार कर रहा है? इस नतीजे पर वैज्ञानिक कैसे पहुंचे। इसके लिए आपको 1930 की कुछ बातों को खंगालना पड़ेगा।

पढ़िए अगली कड़ी कि 1930 में आधुनिक खगोल विज्ञान ने ऐसा क्या बताया जिससे हजारों वर्ष की ब्रह्मांड संबंधी मान्यताएं टूट गईं....

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