प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए कारगर हो सकता है यह नेटवर्क

भारत की ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कैंसर से पीड़ित महिलाओं में से 14 प्रतिशत महिलाएं स्तन कैंसर से ग्रसित होती हैं

By DTE Staff

On: Tuesday 16 March 2021
 
Photo: Pixabay

स्तन कैंसर के निदान के लिए हार्मोन की स्थिति का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिकों ने डीप लर्निंग (डीएल) नेटवर्क पर आधारित एक वर्गीकरण पद्धति विकसित की है। यह पद्धति शरीर में स्तन कैंसर के बढ़ने का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाने के लिए एस्ट्रोजन रिसेप्टर की स्थिति का निर्धारण करने के लिए अब तक उपयोग में लाए जा रहे तरीकों का एक बेहतरीन विकल्प है जो पूरी तरह से स्वचालित प्रणाली पर आधारित है।

स्तन कैंसर सबसे खतरनाक कैंसर है। भारत की ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कैंसर से पीड़ित महिलाओं में से 14 प्रतिशत महिलाएं स्तन कैंसर से ग्रसित होती हैं। देश में स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं के बचने की दर हालांकि 60 प्रतिशत बताई गई है लेकिन इनमें से 80 फीसदी से ज्यादा महिलाएं 60 से कम उम्र वाली हैं। यदि स्तन कैंसर का पता  प्रारंभिक अवस्था में लग जाए तो इससे बचाव के उपाय समय रहते किए जा सकते हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान “विज्ञान एंव  प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान” (आईएएसएसटी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने स्तन कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में पता लगाने के लिए   इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री (आईएचसी) नमूने की मदद से एस्ट्रोजन या प्रोजेस्टेरोन की स्थिति के अध्ययन के वास्ते एक नई किस्म की डीप लर्निंग (डीएल) पद्धति विकसित की है।

इस नई पद्धति की खोज डाक्टर लिपी बी महंत और उनकी टीम ने कैंसर के बारे में गहन अध्ययन करने वाले एक प्रमुख  संस्थान बी बोरुआ कैंसर संस्थान के चिकित्सकों के सहयोग से की है। एक व्यावहारिक व्यावसायिक सॉफ्टवेयर के रूप में इसके इस्तेमाल की बड़ी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस अध्ययन को एक जानी मानी  पत्रिका "एप्लाइड सॉफ्ट कम्प्यूटिंग" में प्रकाशित किया जा रहा है।

स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए सबसे प्रचलित विधि बायोप्सी है। रोगी के शरीर से लिए गए बायोप्सी नमूने का माइक्रोस्कोप के जरिए सूक्ष्म परीक्षण कर कैंसर का पता लगाया जाता है। कैंसर का पता लगाने के लिए किए जाने वाले परीक्षण में आईएचसी मार्कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका उपयोग एक रोगसूचक मार्कर के रूप में किया जाता है। इसमें कैंसर के मुख्य केन्द्र या न्यूकलिक की पहचान के लिए विशेष प्रकार के रंग का इस्तेमाल किया जाता है। इस रंग की तीव्रता अलग अलग होती है और इसी के आधार पर रोग की गंभीरता को 0 से 3 तक की श्रेणी में परिभाषित किया जाता है। रंगो की तीव्रता के आधार  पर गणना करने की यह प्रणाली आलरेड और एच स्कोर कहलाती है। नैदानिक परीक्षणों के दौरान इनके आधार पर ही एस्ट्रोजेन रिसेप्टर और प्रोजेस्टेरोन रिसेप्टर की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। इस प्रतिक्रिया के आधार पर ही शरीर में कैंसर के फैलाव की संभावनाओं तथा भविष्य में इसके दोबारा होने के खतरे को भांपा जाता है।  

इसने वैज्ञानिकों की टीम को उन्नत कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों की मदद से इसके प्रबंधन के लिए और प्रभावी समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया। टीम ने एक एल्गोरिथम विकसित किया जो यह बताने में मदद करता है कि शरीर में मौजूद कैंसर कोशिकाओं की सतह पर हार्मोन रिसेप्टर्स हैं या नहीं। इस अध्ययन ने स्तन ऊतकों की तस्वीरों में से कैंसर के  नाभिक क्षेत्र को पहचान कर उसे आसानी से अलग करने की एक  नई विधि खोज निकाली। यह प्रक्रिया कैंसर का पता लगाने में मशीन लर्निंग (एमएल)मॉडल  के तीनों निष्कर्षों को एकीकृत करती है।

 

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