पक्षियों के मल में ऐसे रोगाणु पाए जा रहे हैं जिन पर नहीं हो रहा एंटीबायोटिक का असर

अमेरिका की राइस यूनिवर्सिटी के पर्यावरण इंजीनियरों ने एंटीबायोटिक रजिस्टेंट को लेकर पक्षियों पर एक अध्ययन किया

By Dayanidhi

On: Tuesday 14 July 2020
 
फोटो: विकास चौधरी

कुछ समय पहले सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा किए गए एक अध्ययन में, चिकन में एंटीबायोटिक अवशेषों के मिलने का पता चला था। एंटीबायोटिक का उपयोग मुर्गियों को बीमारियों से बचाने के लिए ही नहीं बल्कि वजन बढ़ाने के लिए भी किया जा रहा था। इसके कारण एंटीबायोटिक प्रतिरोधक बैक्टीरिया उभरने के बारे में बताया गया था।

अब अमेरिका की राइस यूनिवर्सिटी के पर्यावरण इंजीनियरों ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध (रजिस्टेंट) को लेकर पक्षियों  पर एक अध्ययन किया है।अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक, पक्षियों का उनके शिकार होने से ज्यादा, स्वास्थ्य पर एंटीबायोटिक प्रतिरोध का खतरा है। यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत खतरनाक है। अध्ययन के अनुसार आम शहरी बतख, कौवे और गुल के मल में उच्च स्तर के जीन पाए गए हैं, जो रोगाणु एंटीबायोटिक प्रतिरोधक हैं।

राइस यूनिवर्सिटी के ब्राउन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के पोस्टडॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट पिंगफेंग यू की अगुवाई में यह अध्ययन किया गया है। यह अध्ययन जर्नल एनवायर्नमेंटल पलूशन में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययनों से पता चला है कि पक्षी के माध्यम से ले जाई गई एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन (एआरजीएस) और बैक्टीरिया- तैराकी, मल, प्रभावित मिट्टी के संपर्क में आने से अथवा महीन (एरोसोलिज्ड फेकल) कणों के माध्यम से ये मनुष्यों तक पहुंच सकते हैं। अध्ययन में एआरजी हॉटस्पॉट के पास पाए जाने वाले पक्षी के मल का भी विश्लेषण किया गया है जैसे कि अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र और पोल्ट्री फार्म्स से बहने वाले पानी आदि से।

लेकिन राइस यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन में एआरजी की अधिकता, विविधता और मौसमी जटिलता के बारे में गहराई से खोज की गई है।

अल्वारेज ने कहा हम अभी भी पूरी तरह से यह नहीं समझ पाए हैं कि शहरों में रहने वाले जंगली पक्षियों के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रणाली में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन (एआरजी) का चयन किस तरह होता है तथा ये प्रवेश कैसे करते है। बाकी बचे हुए एंटीबायोटिक्स भोजन के लिये घूमने के दौरान गलती से भोजन में मिल जाते हैं। लेकिन अन्य संभावित एटियोलॉजिकल कारकों, जैसे कि पक्षी आहार, आयु, आंत माइक्रोबायोम संरचना और अन्य तरह के तनावों के महत्व को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने आगे के शोध की आवश्यकता पर जोर दिया है।

टीम में चीन के नानकई विश्वविद्यालय के छात्र हिरु झाओ, और राइस से स्नातक छात्र रूओन सन ने दो नमूनों की तुलना की-जिसमें सर्दियों और गर्मियों के महीनों के दौरान ह्यूस्टन के आसपास पाए जाने वाले प्रत्येक प्रजाति के ताजे जमा नमूनों की तुलना की। यहां के कुछ मुर्गीपालन की जगहों और पशुओं के नमूने भी लिए गए थे। 

उन्होंने पाया कि सभी प्रजातियों में एआरजी, टेट्रासाइक्लिन, बीटा-लैक्टम और सल्फोनामाइड एंटीबायोटिक दवाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रतिरोधक पाए गए हैं। इन पर मौसम का भी कोई असर नहीं देखा गया था। शोधकर्ताओं को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि नमूनों में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन (एआरजी) बहुत अधिक मात्रा में पाए गए थे। यह सबसे अधिक मुर्गी के ताजा मल में पाए गए, जिन्हें कभी-कभी एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई जाती थी। उन्होंने पालतु पशुओं की तुलना में पक्षियों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध पांच गुना अधिक पाया।

अल्टारेज ने कहा कि हमारे परिणामों से पता चलता है कि शहरों में रहने वाले जंगली पक्षियों में सूक्ष्मजीवनिवारक (एंटीमाइक्रोबियल) प्रतिरोध जीन अधिक मात्रा में पाए गए हैं। हालांकि प्रतिरोधी संक्रमण सीधे संपर्क में आने से फैल सकता है, लेकिन इन पक्षियों  का मानव संपर्क बहुत कम होता है। 

टीम ने एआरजी को खोजने के लिए 1 इंच तक गहरी मिट्टी में पक्षी द्वारा जमा किए गए चीजों का पता लगाया। यह वातावरण में भी बहुत कम मात्रा पाया गया। इनका जीवन 11.1 दिनों का होता है।

उन्होंने बताया कि तीन प्रजातियों में कौवां, बतख और गुल की तुलना में गर्मियों के दौरान एआरजी का स्तर काफी कम पाया गया। कौवे सर्वाहारी होते हैं और ऐसा माना गया है कि गर्मियों में लोग कम प्रदूषित भोजन करते हैं। इसके अलावा, उनकी आंत माइक्रोबायोम की संरचना में एआरजी प्रसार और संवर्धन को प्रभावित करती है, जो पक्षी मल में एआरजी के स्तर को प्रभावित करती है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि बैक्टीरिया सहित अलग-अलग समय पर पाए जाने वाले रोगाणु पक्षियों के मल में पाए गए थे। जिनसे मूत्र पथ का संक्रमण होता है, घाव होने पर वह भरता नहीं है और श्वसन संक्रमण से संबंधित बीमारियां हो सकती है। सर्दियों के दौरान एकत्र किए गए नमूनों में खाद्य विषाक्तता से जुड़े एक और रोगाण का पता चला है।

शोधकर्ताओं  ने कहा कि सर्दियों के मल में बैक्टीरिया अधिक होते हैं। इसका कारण नमी के स्तर और तापमान में अंतर होना बताया गया है।

यू ने कहा हमारा अध्ययन शहरी सार्वजनिक क्षेत्रों में लोगों को पक्षी के मल के साथ सीधे संपर्क से बचने के लिए जागरूक करता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इससे नियमित रूप से साफ-सफाई से भी संबंधित स्वास्थ्य के खतरों को कम करने में मदद मिलेगी।

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