क्या 500 साल तक जी सकता है इंसान, वैज्ञानिक खोज रहे हैं रास्ता

वैज्ञानिकों ने सिनर्जिस्टिक सेलुलर पाथवे की खोज है, जिससे मुमकिन है कि इस पहेली को हल करके इंसानी उम्र 400 से 500  साल के बीच हो जाएगी 

By Lalit Maurya

On: Thursday 09 January 2020
 
Photo: wikimedia commons

वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सिनर्जिस्टिक सेलुलर पाथवे की पहचान की है जिससे मनुष्य की उम्र 500 फीसदी तक बढ़ सकती है। मनुष्य को दीर्घायु बनाने का यह तरीका नेमाटोड कृमि पर किये गए अध्ययन पर आधारित है। उम्र बढ़ाने के इस शोध में वैज्ञानिकों ने सी एलिगेंस नामक कीड़े के जीवनकाल में पांच गुना वृद्धि दर्ज की है। जिसके आधार पर उन्होंने यह अनुमान लगाया है कि मनुष्य के जीवनकाल में यह वृद्धि 400 से 500 वर्षों के बीच हो सकती है। यह शोध एमडीआई बायोलॉजिकल लैबोरेटरी, बक इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एजिंग, कैलिफ़ोर्निया और चीन की नानजिंग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया है। जोकि जर्नल सेल रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है।

क्या कहता है अध्ययन

यह अनुसंधान दो प्रमुख तथ्यों की खोज पर आधारित है जोकि सी एलिगेंस कीड़े में उम्र के बढ़ने को नियंत्रित करते हैं। यह कीड़ा, मनुष्य को दीर्घायु बनाने के लिए किये जा रहे शोधों में बहुत अधिक लोकप्रिय है। जिसका उपयोग इस विषय पर किये जा रहे अधिकतम शोधों में किया जाता है। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इसका मनुष्य के साथ अपनी कई जीनों को साझा करना है। दूसरा यह केवल तीन से चार सप्ताह तक ही जीता है। इतना छोटा जीवनकाल वैज्ञानिकों को आनुवंशिक और पर्यावरणीय व्यवधानों के प्रभावों का जल्दी से आकलन करने का मौका देता है। जिससे मनुष्य के स्वस्थ जीवन में बढ़ोतरी सम्बन्धी खोज को पूरा किया जा सके। चूंकि यह रास्ते मानव के क्रमिक विकास के कारण उनतक पहुंचे हैं। इसलिए यह गहन शोध का विषय हैं।

आज वैश्विक स्तर पर ऐसी अनेकों दवाओं पर काम चल रहा है जो इन रास्तों में बदलाव करके स्वस्थ जीवन को बढ़ा सकती हैं। ऐसे में सिनर्जिस्टिक प्रभाव की यह खोज और भी अधिक प्रभावी एंटी-एजिंग उपचार के नए द्वार खोल सकती है। इस नए शोध में एक डबल म्यूटेंट का उपयोग किया गया है जिसमें इंसुलिन सिग्नलिंग (आईआईएस) और टीओआर पाथवे को आनुवंशिक रूप से बदल दिया गया है। क्योंकि आईआईएस पाथवे में परिवर्तन से जीवनकाल में 100 फीसदी की वृद्धि होती है। और टीओआर पाथवे के परिवर्तन से 30 फीसदी का इजाफा होता है। उनका अनुमान था कि इसके चलते डबल म्यूटेंट जीव की जीवन प्रत्याशा 130 फीसदी बढ़ जाएगी। लेकिन बजाय इसके डबल म्यूटेंट जीव के जीवनकाल में 500 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और नानजिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ता रॉलिंस ने बताया कि सिनर्जिस्टिक एक्सटेंशन को समझ पाना बहुत कठिन है क्योंकि यहां प्रभाव एक जमा एक, दो नहीं बल्कि एक जमा एक, पांच के बराबर होता है। हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि प्रकृति में कुछ भी शून्य में मौजूद नहीं है। सबसे प्रभावी एंटी-एजिंग उपचार विकसित करने के लिए हमें किसी एक पाथवे की जगह पर दीर्घायु बनाने वाले पूरे नेटवर्क को समझना होगा|

साथ ही परस्पर सहक्रियात्मकता (सिनर्जिस्टिक) इस बात पर भी प्रकाश डाल सकती है कि आखिर क्यों वैज्ञानिक किसी एक ऐसी जीन की पहचान करने में असमर्थ रहे हैं, जो कई लोगों में दीर्घायु होने का कारण रही हैं। आज भी दुनिया में कई लोग अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले तक, एक स्वस्थ और बीमारी मुक्त जीवन जीने में सफल रहे हैं। क्या उनके स्वस्थ और लम्बे जीवन के पीछे एक जीन का हाथ न होकर कई जीनों के सम्मिलित प्रभाव का असर था।

यह शोध इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया और लम्बे जीवन के बीच क्या सम्बन्ध है। गौरतलब है कि कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए दोहरी झिल्ली से बंधे कोशिकांगों को माइटोकॉण्ड्रिया कहते हैं। इसमें सभी खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण होता हैं इसलिए इसे कोशिका का पावर हाउस भी कहते हैं। जोकि कोशिकाओं को ऊर्जा प्रदान करता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं।

पिछले एक दशक में जितना इसे समझ पाए हैं उसके अनुसार इसमें आने वाली विकृति और उम्र के बढ़ने के बीच गहरा सम्बन्ध है। जिसे हल करके शायद दीर्घायु होने के रहस्य से भी पर्दा उठ सकता है।

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