क्या इन भारतीय महिला वैज्ञानिकों के बारे में जानते हैं आप?

भारत में महिला वैज्ञानिकों के बारे में बहुत कम बात होती है। लेकिन कुछ किताबों में महिला वैज्ञानिकों के बारे में बताया गया है, आइए इनके बारे में जानते हैं    

On: Monday 09 December 2019
 

सीवी रमण, मेघनाद साहा, एसएन बोस और होमी जहांगीर भाभा जैसे नामी वैज्ञानिकों के जीवन और काम के बारे में काफी कुछ लिखा गया है, लेकिन महिला वैज्ञानिकों के योगदान को तकरीबन भुला दिया गया है। हालिया दशकों में इस खालीपन को भरने के लिए कुछ किताबें प्रकाशित की गई हैं।

1990 की शुरुआत में अपने क्षेत्र की अग्रणी डॉ शरयू भाटिया ने एक मोनोग्राफ लिखा, जिसका शीषर्क था- 'द फर्स्ट- लाइफ स्केचेस ऑफ मेडिकल विमेन इन इंडिया'। इसका प्राक्कथन एक अन्य पथ प्रदर्शक डॉ सुशीला नायर ने लिखा था। इस किताब में 27 भारतीय और पश्चिमी देशों की महिलाओं के बारे में बताया गया था, जिन्होंने 19वीं और 20वीं सदी के दौरान चिकित्सा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम किया था। महिला वैज्ञानिकों के बारे में एक अन्य रोचक किताब 'लीलावतीज डॉटर: विमेन साइंटिस्ट्स ऑफ इंडिया' को बेंगलुरु स्थित इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज ने 2008 में प्रकाशित किया था।

अब डॉ अंजना चटोपाध्याय की लिखी हुई एक नई किताब में 175 महिला वैज्ञानिकों के जीवन के बारे में विस्तार से बताया गया है। इन वैज्ञानिकों में भारतीय और विदेशी दोनों वैज्ञानिक शामिल हैं, जिनका जन्म भारत में हुआ या उन्होंने यहां काम किया है। डॉ चटोपाध्याय को विज्ञान के इतिहासकार उनकी स्मरणीय किताबों 'इंसाक्लोपीडिया ऑफ इंडियन साइंटिस्ट्स' (1995) और 'डिक्शनरी ऑफ इंडियन साइंटिस्ट्स' (2000) से जानते हैं। उनकी नई किताब 'विमेन साइंटिस्ट्स इन इंडिया: लाइव्ज, स्ट्रगल्स एंड अचीवमेंट्स' में पहली किताब से 14 वैज्ञानिकों और दूसरी किताब से 40 वैज्ञानिकों को शामिल किया गया है।

इस किताब में शामिल अधिकतर वैज्ञानिक मेडिसिन और अन्य संबंधित क्षेत्रों से जुड़ी हैं, जबकि कुछ खगोलशास्त्र, वनस्पति विज्ञान, रसायन शास्त्र, गणित और भौतिक शास्त्र के क्षेत्र से हैं। इस किताब में 1954-1999 के बीच चिकित्सा क्षेत्र में पद्म पुरस्कार पाने वाली महिला वैज्ञानिकों की सूची और 1958 से 1999 के बीच शांति स्वरूप भटनागर अवॉर्ड पाने वाले वैज्ञानिकों की पूरी सूची जैसा डाटा शामिल किया गया है।

पुराने समय में महिलाओं ने सांस्कृतिक और धार्मिक कारणों (जैसे कि बुरका पहनना) और कई निजी कारणों से मेडिसिन की पढ़ाई शुरू की। उदाहरण के तौर पर बॉम्बे की रहने वाली चौदह वर्षीय आनंदीबाई जोशी ने डिलीवरी के समय अपना बच्चा खोया, क्योंकि तब स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं थीं। ऐसे में अन्य महिलाओं की मदद करने के लिए उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई की।

21वीं सदी में भी पश्चिमी देशों को लगता है कि दुनिया के अन्य देशों में महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है, जबकि उनके यहां महिलाओं को जीवन के हर क्षेत्र में आजादी मिली हुई है। लगभग दो-तीन सदी पहले ईसाई मिशनरीज और औपनिवेशक ताकतों ने अन्य देशों को सभ्य बनाने के लिए अपनी शिक्षा पद्धति लागू की।

किताब में कई उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पश्चिमी देशों में भी उच्च शिक्षा प्राप्त महिलओं को उचित पहचान नहीं मिलती थी। उदाहरण के लिए रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की स्थापना 1663 में हुई लेकिन इसमें महिलाओं को फैलो के तौर पर पहली बार 1944 में चुना गया। 1666 में स्थापित हुई पेरिस एकेडमी ऑफ साइंसेज ने पहली बार महिलाओं को 1979 में एंट्री दी।

भारत में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऑफ इंडिया की स्थापना क्रमश: 1930, 1934 और 1935 में हुई। बाद की दोनों संस्थानों ने ई.के.जी अम्माल को 1935 और 1957 में पहली महिला फैलो के तौर पर चुना। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऑफ इंडिया ने 1995-1996 में डॉ मंजू शर्मा को प्रेसिडेंट के तौर पर चुना। संस्थान का नाम बदलकर इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी कर दिया गया है। 2020 की शुरुआत में डॉ चंद्रिमा शाहा इस संस्थान की पहली महिला प्रेसिडेंट बनने जा रही हैं। इस किताब में डॉ शर्मा और डॉ शाहा की छोटी जीवनी दी गई है।

इस किताब में दी गई अमूल्य जानकारी के बावजूद इसका शीर्षक काफी भ्रामक है क्योंकि न तो डॉक्टर, न एडमिनिस्ट्रेटर और न ही किसी संस्थान के संस्थापक को वैज्ञानिक कहा जा सकता है जब तक उन्होंने कोई रिसर्च कार्य न किया हो। इस नजरिए से देखा जाए तो किताब में शामिल कुछ महिलाओं को वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है। कई मामलों में लेखक ने इन महिला वैज्ञानिकों के संघर्ष की चर्चा नहीं की है। इसके बावजूद इस किताब ने देश के सामाजिक, राजनैतिक और वैज्ञानिक जीवन में महिलाओं के योगदान को सफलतापूर्वक उकेरा है। (साइंस वायर)

किताब का नाम: वूमेन साइंटिस्ट इन इंडिया, स्ट्रगल्स एंड अचीवमेंट्स, लेखिका: डॉ़ अंजना चट्टोपाध्याय, प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, पृष्ठ: 492, कीमत: 485 रुपए

( इस लेख के लेखक डॉ. राजिंदर सिंह भौतिक विज्ञानी एवं विज्ञान के इतिहासकार हैं, जो यूनिवर्सिटी ऑफ ओल्डेनबर्ग, जर्मनी से जुड़े हैं)

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