नई रिसर्च: शुद्ध तरल ईंधन में बदल गई ग्रीनहाउस गैस  

ग्रीनहाउस गैस के शुद्ध तरल ईंधन में बदलने से ग्रीनहाउस गैस का पुन: उपयोग होगा और इसे वायुमंडल में जाने से रोकने का एक कुशल और लाभदायक तरीका बन जाएगा

By Dayanidhi

On: Wednesday 04 September 2019
 

नेचर एनर्जी पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि सामान्य ग्रीनहाउस गैस को इलेक्ट्रोलाइजर के माध्यम से पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना शुद्ध तरल ईंधन (लिक्विड फ्यूल्स) में बदला जा सकता है।

राइस यूनिवर्सिटी लैब ऑफ केमिकल एंड बायोमोलेक्युलर इंजीनियरिंग के इंजीनियर हाओतियन वांग ने यूनिवर्सिटी लैब में उत्प्रेरक रिएक्टर विकसित किया है, जो कार्बन डाइऑक्साइड को कच्चे माल के रूप में उपयोग कर अत्यधिक शुद्ध और उच्च सांद्रता (कंस्ट्रेशन) वाली फॉर्मिक एसिड का उत्पादन किया जा सकता है। 

वांग ने कहा कि पारंपरिक कार्बन डाइऑक्साइड उपकरणों द्वारा उत्पादित फॉर्मिक एसिड महंगी होती है और इसको साफ व शुद्ध बनाने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। शुद्ध फार्मिक एसिड के घोल का सीधे उत्पादन व्यावसायिक कार्बन डाइऑक्साइड के रूपांतरण तकनीकों को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

वांग, और राइस ब्राउन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग की टीम ने ऐसी तकनीक की खोज की है, जो ग्रीनहाउस गैसों को उपयोगी उत्पादों में बदल देते हैं।

परीक्षण के दौरान लगभग 42 प्रतिशत ऊर्जा की कम खपत से नए इलेक्ट्रोकैटलिस्ट का इस्तेमाल किया गया। इसका मतलब है कि लगभग आधी विद्युत ऊर्जा को तरल ईंधन के रूप में फॉर्मिक एसिड बनाया जा सकता है। 

फॉर्मिक एसिड एक ऊर्जा वाहक या एक ईंधन-सेल है, जो बिजली पैदा कर सकता है। साथ ही, बिजली पैदा करने के दौरान होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को फिर से रि-साइकिल कर सकता है।  

शोधकर्ता ने बताया कि रासायनिक इंजीनियरिंग उद्योग में भी अन्य रसायनों को कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। यह हाइड्रोजन के लिए एक भंडारण सामग्री है, जो हाइड्रोजन गैस की समान मात्रा की ऊर्जा का लगभग 1,000 गुना धारण कर सकती है, मगर इसे कंप्रेस करना मुश्किल है। यह वर्तमान में हाइड्रोजन ईंधन सेल कारों के लिए एक बड़ी चुनौती है।

शोधकर्ता ने कहा कि उन्होंने उन्नत किस्म के दो नए यंत्र (डिवाइस) बनाए, पहला था एक मजबूत, द्वि-आयामी बिस्मथ उत्प्रेरक और दूसरा एक ठोस- इलेक्ट्रोलाइट जो प्रतिक्रिया कर नमक की आवश्यकता को समाप्त करता है।

वांग ने कहा कि तांबा, लोहा या कोबाल्ट जैसी परिवर्तनशील धातुओं की तुलना में बिस्मथ एक बहुत भारी परमाणु है। इसकी गतिशीलता बहुत कम होती है। इसलिए यह उत्प्रेरक को स्थिर करता है। रिएक्टर को पानी के उत्प्रेरक से संपर्क करने के लिए संरचित किया जाता है, जो इसे संरक्षित करने में भी मदद करता है।

वांग ने कहा कि जब आप उस तरह से फार्मिक एसिड उत्पन्न करते हैं, तो यह लवण के साथ मिश्रित होते है। अधिकांश अनुप्रयोगों में अंतिम उत्पाद से लवण को निकालना पड़ता है, जिसमें बहुत अधिक ऊर्जा और लागत लगती है। वांन ने कहा, इसलिए हमने ठोस इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग किया जो प्रोटॉन का संचालन करते हैं और यह अघुलनशील पॉलिमर या अकार्बनिक यौगिकों से बना हो सकता है, जिससे लवण की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

वांग ने कहा कि इसमें सबसे अहम कार्बन डाइऑक्साइड को कम करना है, जो कि ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही है। अगर बिजली सूरज या हवा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से आती है, तो हम एक लूप बना सकते हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक उत्सर्जित किए बिना इसे महत्वपूर्ण सामग्री में बदल सकता है।

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