क्या प्रकाश प्रदूषण में इजाफा कर रहे हैं उपग्रह और अंतरिक्ष में फैला कचरा?

पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे यह उपग्रह और अंतरिक्ष में फैला कचरा रात्रि के समय प्राकृतिक प्रकाश के स्तर में 10 फीसदी का इजाफा कर सकता है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 31 March 2021
 

पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे कृत्रिम उपग्रह और अंतरिक्ष में फैला कचरा रात के समय आकाश की प्राकृतिक चमक को और बढ़ा सकते हैं, जो खगोलविदों के लिए नई समस्याएं पैदा कर सकता है। यह जानकारी रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित शोध में सामने आई है।

शोध से पता चला है कि यह उपग्रह और अंतरिक्ष में फैला कचरा दुनिया के बड़े भूभाग पर रात्रि प्रकाश में 10 फीसदी का इजाफा कर सकता है। रात्रि प्रकाश में हुआ यह इजाफा उस सीमा के पार चला गया है जिसे खगोलविदों ने 40 साल पहले "प्रकाश प्रदूषण" के लिए निर्धारित किया था।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मिरोस्लाव कोसिफज के अनुसार, इस शोध में उनकी पहली प्राथमिकता बाहरी स्रोतों से रात के समय आकाशीय चमक में संभावित वृद्धि का अनुमान लगाना था। जैसा कि पृथ्वी की कक्षा में मौजूद उपग्रह और उनसे जुड़ा कचरा कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि चमक में मामूली अंतर ही सामने आएगा, लेकिन जो नतीजे सामने आए हैं वो हैरान कर देने वाले थे। 

पृथ्वी की कक्षा में अभी भी चक्कर लगा रहे हैं 6,250 उपग्रह 

यदि यूरोपियन स्पेस एजेंसी द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो 1957 से लेकर अब तक 10,680 उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किए जा सकते हैं, जिनमें से 6,250 अभी भी पृथ्वी की कक्षा में हैं। साथ ही यदि पृथ्वी की कक्षा में मौजूद समस्त वस्तुओं के वजन को देखें तो वो 9,200 टन से भी ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार 10 सेंटीमीटर से ज्यादा बड़े करीब 34000 टुकड़े अंतरिक्ष में मौजूद हैं, जबकि 1 से 10 सेंटीमीटर के 900,000 और 1 मिलीमीटर से 1 सेंटीमीटर आकार के 12.8 करोड़ टुकड़े अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। 

यह अपनी तरह का पहला शोध है जिसमें अंतरिक्ष में मौजूद सभी उपग्रहों और पसरे मलबे के रात्रि प्रकाश पर पड़ने वाले असर को जानने की कोशिश की गई है। यदि टेलीस्कोप और संवेदनशील कैमरे को देखें तो अक्सर वो इस तरह की विसंगतियों को दूर कर देते हैं और प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश में अंतर कर लेते हैं। पर यदि कम रिज़ॉल्यूशन की चीजों, जैसे आंख की बात करें तो वो दोनों ही प्रकाश में भेद नहीं कर पाती हैं। इसके चलते रात्रि के समय आकाश में दिखने वाली चमक बढ़ जाती है और छितराती हुई दिखती है, यह ऐसा प्रतीत होती है जैसे आकाशगंगा में चमकते सितारों के बादल हों।

इस अध्ययन के सह लेखक और इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन से जुड़े जॉन बैरेंटाइन ने बताया कि धरती पर होने वाले प्रकाश प्रदूषण की तुलना में आकाश में रात्रि के समय इस तरह की कृत्रिम रौशनी को पृथ्वी के एक बड़े हिस्से से देखा जा सकता है। खगोलशास्त्री अंधेरे आकाश की तलाश में शहरों की चकाचौंध से दूर वेधशालाओं का निर्माण करते हैं, लेकिन इस तरह का प्रकाश प्रदूषण दुनिया के कहीं ज्यादा बड़े हिस्से से देखा जा सकता है।

 हाल के वर्षों में खगोलविदों ने धरती की परिक्रमा करने वाली वस्तुओं, विशेष रूप से संचार उपग्रहों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की है। यही नहीं जिस तरह से आकाश में कृत्रिम प्रकाश के अधिक गतिशील स्रोत बढ़ रहे हैं उसके कारण उपग्रहों के आपस में और अन्य वस्तुओं से टकराने की सम्भावना भी बढ़ जाती है जिससे ज्यादा मात्रा में मलबा पैदा होता है। हाल ही में यूएस नेशनल साइंस फाउंडेशन और यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स द्वारा प्रायोजित रिपोर्ट में भी इन संचार उपग्रहों के बेड़ों को धरती और पृथ्वी की कक्षा में कम ऊंचाई पर मौजूद खगोल विज्ञान सुविधाओं की निरंतर उपयोगिता के लिए बड़े खतरे के रूप में पहचाना है।

यह निष्कर्ष दिखाते है कि जिस तरह से नए उपग्रह लांच किए जा रहे हैं उनके चलते रात्रि के समय आकाश कहीं ज्यादा चमकदार हो जाएगा। हालांकि स्पेसएक्स जैसे उपग्रह ऑपरेटरों ने हाल ही में अपने डिजाइन में बदलाव किए हैं जिनसे इनकी चमक कम हो सके। लेकिन इसके बावजूद भी जिस तेजी से अंतरिक्ष में इन सबकी मौजूदगी बढ़ रही है उसके कारण दुनिया भर में कई लोगों के लिए रात के समय आकाश कुछ बदला-बदला नजर आएगा।

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