देशी मवेशियोंं की चराई से मिट्टी में कम हो रही कार्बन की मात्रा : शोध
हिमालय के स्पीति क्षेत्र में किए गए एक व्यापक अध्ययन में यह बात निकल कर आई है। यह शोध ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में हाल ही में प्रकाशित हुआ है।
On: Monday 27 March 2023
मिट्टी में कार्बन की मात्रा को कम करने में देशी मवेशी सबसे आगे हैं। क्योंकि इनके चरने से मिट्टी में कार्बन की मात्रा में लगातार कमी होते जा रही है। वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो जंगली जानवरों के चरने से ऐसा नहीं होता है। यह बात इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बंगलूरु के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने कही है। उनके द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि जंगली शाकाहारी जानवरों द्वारा की जा रही चराई की तुलना में सामान्य पशुओं द्वारा चरने से मिट्टी में कार्बन का भंडारण में लगातार कमी होते जा है।
हिमालय के स्पीति क्षेत्र में किए गए एक व्यापक अध्ययन में यह बात निकल कर आई है। यह शोध ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में हाल ही में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि यह अंतर इसलिए है क्योंकि सामान्य पशुओं को चिकित्सा के दौरान उनको दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाई का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जब गोबर और मूत्र मिट्टी में छोड़े जाते हैं, तो ये एंटीबायोटिक्स मिट्टी में माइक्रोबियल समुदायों को ऐसे तरीकों से बदल देते हैं जो कार्बन को अलग करने के लिए हानिकारक होते हैं। इस संबंध में मुख्य अध्ययनकार्ता सुमंत बागची ने द हिंदू से कहा कि पशुधन मवेशी पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में बड़े स्तनधारी हैं। यदि पशुधन के तहत मिट्टी में संग्रहीत कार्बन को थोड़ी मात्रा में भी बढ़ाया जा सकता है, तो इसका जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में आसानी होगी।
पिछले अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया था कि कैसे एक ही क्षेत्र में मिट्टी के कार्बन के पूल को स्थिर करने में पशुओं द्वारा की गई चराई एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान अध्ययन में सबसे बड़ा सवाल हैं कि भेड़ और अन्य मवेशी कैसे अपने समानंतर जंगली याक और आइबेक्स की तुलना में मिट्टी के कार्बन की मात्रा को प्रभावित करते हैं? इस सवाल का जवाब देने के लिए, शोधकर्ताओं ने जंगली शाकाहारी और सामान्य पशुओं द्वारा चराई वाले क्षेत्रों में गत 16 साल से अधिक समय तक मिट्टी का अध्ययन किया है। और इस दौरान उन्होंने माइक्रोबियल संरचना, मिट्टी के एंजाइम, कार्बन स्टॉक और पशु चिकित्सा एंटीबायोटिक दवाओं की मात्रा का विस्तृत अध्ययन किया।
अध्ययन में कहा गया है कि हालांकि जंगली और पशुधन क्षेत्रों की मिट्टी में कई समानताएं पाई गईं थीं। बागची ने कहा कि स्पीति जैसे देहाती पारिस्थितिक तंत्र में एंटीबायोटिक का उपयोग काफी कम मात्रा में किया जाता है और यह स्थिति उन क्षेत्रों में खराब हो सकती है, जहां पशुओं को बड़े पैमाने पर पाला जाता है और उन्हें अक्सर बीमार न होने की स्थिति में भी एंटीबायोटिक्स दी जाती है। अध्ययन में कहा गया है कि टेट्रासाइक्लिन जैसे एंटीबायोटिक्स लंबे समय तक पशुओं में जीवित रहते हैं और यही नहीं ये दशकों तक मिट्टी में रह सकते हैं।
कार्बन को रोकने के लिए मिट्टी विश्वसनीय सिंक हैं, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है। बड़े स्तनधारियों द्वारा चरने से घास के मैदानों में मिट्टी के कार्बन का भंडारण होता है, लेकिन दुनिया भर में जंगली शाकाहारी धीरे-धीरे पशुधन द्वारा प्रतिस्थापित किए जा रहे हैं। हिमालय के स्पीति क्षेत्र में शोधकर्ताओं ने पाया है कि जंगली शाकाहारी जानवरों द्वारा चराई की तुलना में पशुओं द्वारा चरने से मिट्टी में कार्बन का भंडारण कम होता है। इस अंतर का एक बड़ा कारण है पशुओं पर टेट्रासाइक्लिन जैसे पशु चिकित्सा एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में मिट्टी को ऊपर नीचे करना होता है और एंटीबायोटिक दवाओं के कारण ख्त्म हो रहे लाभकारी रोगाणुओं को बहाल करना। जिन जानवरों को एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं, उन्हें तब तक क्वारंटाइन करना जब तक कि उनके सिस्टम से दवाएं बाहर न निकल जाएं, इससे मिट्टी पर उनके प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।
बागची बताते हैं कि यह हिमालय में पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों और जलवायु परिवर्तन पर एक दीर्घकालिक अध्ययन का हिस्सा है, जिसे 2005 में शुरू किया गया था।
अध्ययनकर्ताओं एक दिलीप नायडू कहते हैं कि यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि मानव द्वारा की जा रही भूमि उपयोग, एंटीबायोटिक्स, सूक्ष्म जीव, मिट्टी और जलवायु परिवर्तन कैसे गहराई से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
अध्ययनकर्ताओं में से एक और शमीक रॉय कहते हैं कि उनके अनियंत्रित उपयोग से न केवल जलवायु को खतरा है, बल्कि रोगजनकों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के विकास का खतरा है, जो मनुष्यों और जानवरों में इलाज के लिए संक्रमण पैदा कर सकता है। रॉय कहते हैं कि हम अभी तक अंतर्निहित तंत्र के ब्योरे को पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं कि मिट्टी माइक्रोबियल समुदाय एंटीबायोटिक्स का जवाब कैसे देते हैं, और क्या उन्हें आसानी से बहाल किया जा सकता है। भविष्य में शोधकर्ता यह जांचने की योजना बना रहे हैं कि कैसे पशुधन का बेहतर प्रबंधन माइक्रोबियल बहाली के साथ-साथ पर्यावरण पर उनके नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है।