रूसी हमले के कारण खतरे में पड़ी यूक्रेन के वैज्ञानिकों की जान और खोज
यूक्रेन के वैज्ञानिक को अपने जीवन और भविष्य में उनके द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक शोध के प्रति डर पैदा हो गया है
On: Thursday 24 February 2022
यूक्रेन पर रूसी हमले के बीच यूक्रेनी वैज्ञानिकों को अपने अब तक के किए गए शोधों के खत्म होने की आशंका तेजी से बलवती होते जा रही है। साथ ही उन्हें अपने जीवन और भविष्य में उनके द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक शोध के लिए भी डर पैदा हो गया है। यही नहीं, शोधकर्ताओं का तो यहां तक कहना है कि यह संभावित संघर्ष 2014 में यूक्रेन की क्रांति के बाद से हुई अब तक की प्रगति को भी नष्ट कर सकता है।
कई यूक्रेनी वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका नेचर को बताया कि उनके सहयोगी अपनी आत्मरक्षा के लिए बुनियादी चीजों को इकट्ठा करने के साथ-साथ अपने-अपने मूल स्थानों से भागने की तैयारी भी कर रहे हैं। साथ ही वैज्ञानिक अब तक किए गए अपने काम की रक्षा के लिए कई उपाय भी अजमा रहे हैं।
बढ़ते तनाव के बीच यूक्रेन में किए गए अब तक के शोध, जिसमें यूरोपीय संघ से किए गए कई शोध कार्य शामिल हैं, के खत्म होने की आशंका भी पैदा हो गई है। शोधकर्ताओं को डर है कि ताजा संघर्ष यूक्रेन को उथल-पुथल में तो डुबो ही देगा और साथ ही उस प्रगति को रोक देगा जो उसने तब से अब तक विज्ञान क्षेत्रों में की है।
यूक्रेन की राजधानी कीव में स्थित एक गणित संस्थान के गणितज्ञ इरिना येरोरचेंको ने कहा, फिलहाल, मैं एक सुरक्षित जगह पर बैठी हूं और जहां इंटरनेट भी उपलब्ध है लेकिन मुझे नहीं पता कि कल ऐसा होगा या नहीं'।
इस तरह के हालात में इस समय कीव सहित पूरे यूक्रेन के वैज्ञानिक रहने पर मजबूर है। यह संस्थान बेलारूस के साथ यूक्रेन की सीमा के पास स्थित है। यहीं पर पिछले कुछ हफ्तों में यूक्रेन और बेलारूस के पास अंदर अपनी सीमा पर रूस द्वारा बड़े पैमाने पर की गई सैन्य तैनाती ने क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया है।
कायदे से देखा जाए तो यह तनाव 2013 से ही चला आ रहा है। फिर एक नागरिक विद्रोह ने यूक्रेन के रूसी-झुकाव वाले नेता को हटा दिया और 2014 की शुरुआत में यूक्रेनवासियों ने यूरोपीय समर्थित एक सरकार चुनी।
उसी वर्ष रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया और क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। इससे क्रीमिया स्थित अनुसंधान संस्थान जो पहले यूक्रेन के राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी द्वारा संचालित था अब रूसी नियंत्रण में है।
लुहान्स्क और डोनेट्स्क के पूर्वी यूक्रेनी क्षेत्रों में लड़ाई आज भी जारी है। लगातार संघर्ष के कारण लुहान्स्क और डोनेट्स्क के 18 विश्वविद्यालयों को देश के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित किया गया है। इन राज्यों में स्थित कई शोधकर्ताओं ने अपने घरों और प्रयोगशालाओं को खो दिया है।
विस्थापित विश्वविद्यालयों में से एक विश्व विद्यालय के प्रचार्य रोमन फेडोरोविच हर्नियुक कहते हैं कि कई विश्वविद्यालय के अधिकांश शैक्षणिक कर्मचारियों को जबरन अपने विश्वविद्यालयों को छोड़ने पर मजबूर किया गया। इसके चलते इनकी चल-अचल संपत्ति और आजीविका सबकुछ खत्म हो गई।
यूक्रेन में जारी लगातार संघर्ष के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में यूक्रेनी शोधकर्ताओं ने रूस के साथ संबंध तोड़ दिए और इसके बदले वे यूरोप, अमेरिका और चीन में अपने साथियों के साथ नए संबंध बनाए।
ऐसे ही एक विस्थापित विश्वविद्यालय के उप-प्रचार्य इलिया खड्झिनोव कहते हैं कि स्थापित संबंधों को खोना और नए लोगों से बनाना दर्दनाक तो था, लेकिन इसने हमें एक नया दृष्टिकोण दिया। ध्यान रहे कि 2015 में यूक्रेन यूरोपीय संघ के प्रमुख अनुसंधान-वित्त पोषण कार्यक्रम में शामिल हो गया था। इससे उसके वैज्ञानिकों को यूरोपीय संघ के सदस्यों के रूप में अनुदान के लिए आवेदन करने का समान अधिकार मिला।
अब तक लगभग 1,30,000 रूसी सैनिक यूक्रेन के साथ-साथ बेलारूस की सीमा पर तैनात हैं। रूसी सैनिकों की इस तैनाती को पश्चिमी देशों के टिप्पणीकार आक्रामकता के रूप में देख रहे हैं। हालांकि दूसरी ओर रूस का कहना है कि उसकी आक्रमण करने की कोई योजना नहीं है, लेकिन इसके बावजूद कुछ वैज्ञानिक तनाव महसूस कर रहे हैं।
येगोरचेंको कहते हैं कि युद्ध एक निश्चित खतरा है। मुझे लगता है कि मैं कल या दो दिनों में मर सकता हूं, लेकिन मैं इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता। वह फोन और पावर बैंक जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चार्ज करके रख रहे हैं और अपने परिवार के साथ लगातार संपर्क में भी हैं। हालांकि उन्हें लगता है कि यह सब तैयारी करना बेकार है लेकिन सभी वैज्ञानिक ऐसा ही करते हैं।
वह कहते हैं कि सामान्यतौर पर इस रूसी तनाव का उद्देश्य यूक्रेन में अराजकता पैदा करना और आर्थिक स्थिति को नुकसान पहुंचाना है। वह बताते हैं कि हम जानते हैं कि हमारे पास अनुसंधान के लिए कम धन, यात्रा के कम अवसर और यूक्रेन में आंतरिक सम्मेलनों की संभावना न के बराबर है लेकिन कुल मिलाकर, वह चिंता न करने की कोशिश कर रहे हैं और स्थिति से निपटने में मदद करने के लिए सामान्य से अधिक काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि गणित एक अच्छी चिकित्सा है।
ध्यान रहे कि यूक्रेन के सूमी नेशनल एग्रेरियन यूनिवर्सिटी जो कि रूसी सीमा से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। वहां के कर्मचारियों को शत्रुओं से मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। विश्वविद्यालय ने कर्मचारियों को इमारत पर बम के गिरने के बाद उससे बचाव के तौरतरीके बताए जा रहे हैं। महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरणों और जैविक नमूनों को इस क्षेत्र से बाहर ले जाने की भी योजना तैयार की गई है।
एक विश्व विद्यलय के अर्थशास्त्री यूरी डैंको कहते हैं कि वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ महत्वपूर्ण दस्तावेजों के लिए सूटकेस तक तैयार किया है ताकि दस्तावेजों को सुरक्षित रखा जा सके। उनका कहना है कि हमारे एक बैग में कपड़े, दवाएं, उपकरण, आत्मरक्षा का सामान और खाना है। हालांकि डैंको को विश्वास नहीं है कि रूस आक्रमण करेगा, लेकिन अगर ऐसा होता है तो कई वैज्ञानिक काम जारी रखने के लिए अपने घरों से यूक्रेन द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होंगे या उन्हें विदेश जाना पड़ सकता है।
पोलिश सीमा के पास ल्वीव शहर में कंप्यूटर वैज्ञानिक ऑलेक्जेंडर बेरेंज्को कहते हैं कि सेना की तैनाती से कई लोग तनाव महसूस करते हैं लेकिन शांत रहने की कोशिश कर रहे हैं। वह कहते हैं कि यह अजीब लग सकता है, लेकिन असलियत यह है कि युद्ध आठ साल पहले शुरू हो गया था, यह अभी शुरू नहीं हुआ है।
ल्विव पॉलिटेक्निक नेशनल यूनिवर्सिटी में काम करने वाले बेरेज़्को का कहना है कि वह मार्च के अंत में विज्ञान पर चर्चा करने के लिए लगभग 20 नए शोधकर्ताओं के लिए एक छोटी सी बैठक की योजना बना रहा था लेकिन अब लगता है कि इसे रद्द करना पड़ेगा।
वह कहते हैं कि कायदे से देखा जाए तो यूक्रेनी अनुसंधान बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है और बहुत से लोग इसे यूरोपीय और वैश्विक मानकों के करीब लाने के लिए हमारी शोध प्रणाली को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर युद्ध होता है तो सरकार की प्राथमिकता सशस्त्र बल और लोगों को जीवित रहने में मदद करने की हो जाएगी, ऐसे में फिर से यूक्रेनी अनुसंधान का मानक वैश्विक नहीं हो पाएगा।
मास्को स्थित केए तिमिरयाजेव इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट फिजियोलॉजी के एक प्लांट बायोलॉजिस्ट व्लादिमीर कुजनेत्सोव का कहना है कि उनके देश और यूक्रेन के बीच की स्थिति बेहद खराब है। वह कहते हैं कि वे शोधकर्ताओं को पैसे नहीं देंगे। ऐसे में कई शोधकर्ता यूक्रेन छोड़ देंगे और यह बहुत बुरा होगा।
वह सोचते हैं कि कोई आक्रमण नहीं होगा और उम्मीद है कि स्थिति जल्द ही स्थिर हो जाएगी। हालांकि दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग कम हो गया है। कुजनेत्सोव कहते हैं कि यूक्रेन में वैज्ञानिक यह दिखाने की कोशिश नहीं करते हैं कि वे रूसी साथियों के संपर्क में हैं क्योंकि इससे खुद पर और अपने परिवार पर जोखिम बढ़ जाएगा।