मानसून सत्र से पहले कोरोना विषाणु से बचाव के लिए संसद में लगेगा यूवी-सी सिस्टम

सीएसआईआर का दावा है कि यह प्रणाली 99 फीसदी से ज्यादा विषाणु, जीवाणु, कवक और हवा में मौजूद रहने वाले अन्य जैव-एरोसोल को 254 एनएम यूवी प्रकाश का प्रयोग करके निष्क्रिय करने में सक्षम है।

By DTE Staff

On: Wednesday 14 July 2021
 

Photo : India Science wire

क्या हवा में कोरोना विषाणु के प्रसार को कोई तंत्र रोक सकता है? इस बार के मानसून सत्र में संसद के भीतर एक ऐसी ही तकनीक का प्रयोग किया जाएगा।  पराबैंगनाी किरणों पर आधारित विशेष यूवी सी सिस्टम हवा में कोरोना संक्रमण का रोकथाम करेगा।

13 जुलाई को केंद्रीय विज्ञान और तकनीकी राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार जितेंद्र सिंह ने यह जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि यह यूवी आधारित कीटाणुनाशक तकनीक  वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-सीएसआईआर ने विकसित किया है।  

इसे संसद के विभिन्न परिसरों में लगाया जाएगा। हालांकि, इसके बावजूद उन्होंने सांसदों और संसद भवन में आने वालों को सलाह दी है कि वह कोरोना संक्रमण  से बचाव के लिए फेस मास्क और कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती के साथ पालन करते हुए दो गज की दूरी बनाए रखे।     

सीएसआईआर-सीएसआईओ द्वारा विकसित यूवी-सी एयर डक्ट डिसइंफेक्शन प्रणाली का उपयोग बड़े कक्षों के लिए किया जा सकता है।

यूवी-सी सिस्टम विकसित करने वाले सीएसआईआर का दावा है कि यह प्रणाली 99 फीसदी से ज्यादा विषाणु, जीवाणु, कवक और हवा में मौजूद रहने वाले अन्य जैव-एरोसोल को 254 एनएम यूवी प्रकाश का प्रयोग करके निष्क्रिय करने में सक्षम है। अभी इसका इस्तेमाल हैदराबाद और चंडीगढ़ में किया जा रहा है। 

सीएसआइआर- सीएसआईओ का यूपीसी एयर डक्ट डिसइन्फेक्शन सिस्टम काफी प्रभावी कीटाणु शोधन प्रणाली है। इसका प्रयोग बड़े सभागारों, सम्मेलन कक्ष, कक्षाओं और मॉल आदि में किया जा सकता है। यह बड़े भवनों और वाहनों में भी प्रयुक्त हो सकती है।

कोरोना वायरस विशेषकर सार्वजनिक स्थानों पर हवा के जरिये द्रुत गति से बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित कर सकता है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की चंडीगढ़ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ) ने अल्ट्रा-वायलेट (यूवी) डक्ट्स नलिका बनायी है, जो हवा में ही इस वारयस को नष्ट कर सकती है। इसमें एयर सैंपलिंग और वायरल लोड टेस्टिंग तकनीक जैसे नवाचार शामिल हैं, जो हवा में वायरल लोड की थाह लेने में सक्षम हैं।

इस बारे में संस्थान के सूचना सेवा प्रभाग के प्रमुख और प्रधान वैज्ञानिक डॉ ए.के. शुक्ला ने बताया कि “इस सिस्टम में यूवीसी एयर डक्ट डिसइन्फेक्शन सिस्टम मौजूदा एयर डक्ट्स में रेट्रोफिट के रूप में डिजाइन किया गया है। यह स्लाइड मैकेनिज्म पर काम करता है, जिसमें रेगुलेटेड अल्ट्रा-वायलेट यानी पराबैंगनी प्रकाश स्रोत, और सेंसर होते हैं, जिसे डक्ट्स में आसानी से जोड़ा जा सकता है। इसे सामान्य एयर-कंडीशनर में लगाया जा सकता है, और यह उसमें हवा को डिसइन्फेक्ट कर देगा। इस प्रकार उन सार्वजनिक स्थलों पर यह तकनीक खासी उपयोगी हो सकती है, जहाँ सेंट्रल एयर कंडीशन काम करता है।”

इस तकनीक में बायो-पोल एयर सैंपलर का प्रयोग किया गया है। यह हवा में वायरल लोड का पता लगा सकता है। मशीन एवं उपकरण विभाग के वैज्ञानिक और विशेषज्ञों के अनुसार इसका उपयोग अस्पताल, बाजार, स्कूल, बस अड्डे और रेलवे स्टेशन जैसे बड़े सार्वजनिक स्थलों से हवा के नमूने लेने में किया गया है, जहाँ विषाणु एवं जीवाणु संक्रमण की आशंका काफी अधिक होती है। इसके अलावा, भारी ट्रैफिक वाले और औद्योगिक गतिविधियों के कारण प्रदूषित इलाकों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

बायो-पोल एयर सैंपलर विशेष रूप से डिजाइन किए गए फिल्टर के माध्यम से हवा में मौजूद रोगजनक इकठ्ठा करता है। एयर डक्ट में यूवीसी लाइट स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश में उच्च ऊर्जा वाले फोटोन्स वायरस एवं बैक्टीरिया को नष्ट कर सकते हैं। इस पद्धति को विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप ढालकर लचीले प्रयोग के उद्देश्य से बनाया गया है।

सीएसआईआर-सीएसआईओ के निदेशक प्रोफेसर अनंता रामकृष्ण के मार्गदर्शन में मशीन एवं उपकरण विभाग के अध्यक्ष डॉ हैरी गर्ग और वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी सुपांकर दास एवं अन्य शोधकर्ताओं की टीम ने यूवी एयर डक्ट को विकसित किया है। संस्थान के वैज्ञानिकों का दावा है कि वायरस की उपस्थिति का पता लगाकर और वायरल लोड टेस्टिंग परीक्षण से यह बता पाना आसान होगा कि वायरस को नष्ट करने के लिए कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होगी।


साभार : इंडिया साइंस वायर

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