चौथी औद्योगिक क्रांति: भारत को डरने की जरूरत नहीं है

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के सेंटर फॉर द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोलूशन के प्रमुख पुरुषोत्तम कौशिक से अक्षित संगोमला ने बातचीत की

By Akshit Sangomla

On: Tuesday 24 May 2022
 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के सेंटर फॉर द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोलूशन के प्रमुख पुरुषोत्तम कौशिकआपके सेंटर की क्या भूमिका है ?

सेंटर फॉर द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोलूशन (सी4आईआर) की स्थापना अक्टूबर, 2018 में विभिन्न क्षेत्रों में उभरते तकनीकों की भूमिका, चुनौतियों पर फोकस करने के लिए की गई थी। इसमें हम तीन स्तंभों पर काम करते हैं।

पहला फोकस 4आईआर तकनीक मसलन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉकचेन, डेटा नीतियां, ड्रोन व अन्य पर है। दूसरा फोकस निजी व सार्वजनिक सहयोग पर है। तीसरा स्तंभ है हितधारकों के साथ साझेदारी या ऑपरेटिंग सिस्टम।

जब हम विभिन्न क्षेत्रों में तकनीक की भूमिका की बात करते हैं तो हमें समावेशी होने के लिए सरकार, उद्योग, स्टार्ट-अप्स, सिविल सोसाइटी और उपभोक्ता सभी को देखना है। इन तीन स्तंभों का पूरा ध्यान तकनीकों के जरिए समाज की बेहतरी पर है।

केंद्र और राज्य सरकारों के साथ आपके कार्यों की क्या स्थिति है?

सरकारें 4आईआर के मुख्य घटकों में से एक होने जा रही हैं क्योंकि सभी कार्य मुख्य रूप से सरकारी नीतियों के माध्यम से होंगे। जब मुंबई में सी4आईआर की स्थापना की गई थी, तब नीति आयोग सरकारी संस्थानों के साथ साझेदारी कर रहा था। हम इलेक्ट्रॉनिक्स और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और शहरी और आवास मामलों के मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करते हैं। अन्य सरकारी संगठनों के साथ भी हम बातचीत करते रहते हैं।

4आईआर में मुख्य भूमिका तकनीकी नवाचार की होगी। क्या भारत नवाचार की इतनी तेज रफ्तार के लिए तैयार है?

भारत कई विकसित देशों की तुलना में तेजी से 4आईआर तकनीकों को अपना रहा है। हमारे पास टीकाकरण कार्यक्रमों की निगरानी और डिजिटल हेल्थकेयर इकोसिस्टम तैयार करने जैसे कई अद्भुत उदाहरण हैं।

भारत में डेटा का एक सुविचारित इकोसिस्टम है, जो 4आईआर प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बड़ा प्रवर्तक होगा। केंद्र ने यूपीआई, आधार, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय परियोजना और स्मार्ट शहरों के लिए भारत शहरी डेटा एक्सचेंज जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक डेटा इकोसिस्टम विकसित किया है।

4आईआर तकनीकों को लेकर कुछ नैतिक और सुरक्षा संबंधी चिंताए हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

संसाधनों की कमी वाले भारत जैसे देश में प्रौद्योगिकी की भूमिका महत्वपूर्ण होने जा रही हैं। सुरक्षा, सेफ्टी अनैतिक पक्षपात को लेकर चिंताएं भी महत्वपूर्ण होने जा रही हैं। परिवर्तन की इस पूरी यात्रा में हम आबादी के किसी भी वर्ग को पीछे नहीं छोड़ सकते। कर्नाटक सरकार के साथ मिलकर हमने सेंटर ऑफ द इंटरनेट ऑफ एथिकल थिंग्स (सीआईईटी) तैयार किया है। यह अपनी तरह का एक अनूठा सेंटर है।

इसकी कल्पना पहली दफा तब की गई थी, जब राज्य के मुख्यमंत्री कुछ साल पहले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक कार्यक्रम के लिए दावोस में थे। इसमें हम विभिन्न क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी को अधिक नैतिक और जिम्मेदार बनाने के लिए उपयोग के मामलों पर काम कर रहे हैं।

अधिकांश भारतीय कामगार अनौपचारिक क्षेत्र में हैं। लेबर मार्केट के बाधित होने से लोग चिंतित हैं। इस भय को कैसे दूर किया जा रहा?

यह ठीक वैसी ही स्थिति है जब कंप्यूटर अर्थव्यवस्था में शामिल हो रहे थे। सभी ने सोचा कि नौकरियों का क्या होगा। जैसे-जैसे हम प्रौद्योगिकी परिवर्तन की तरफ बढ़ते हैं, जैसे-जैसे एआई निर्णय लेने में शामिल होता है, आईओटी वास्तविक समय और सटीक डेटा को दर्ज करता है, ब्लॉकचेन सुनिश्चित करता है कि दर्ज किया गया डेटा सुरक्षित है और इससे कोई समझौता नहीं हुआ है।

शुरू में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल गैर-उत्पादक दोहराव वाले कार्यों में किया जाएगा, मसलन कीटनाशकों का छिड़काव या ड्रोन के जरिए कृषि उद्देश्यों के लिए क्षेत्र का सर्वेक्षण। जैसे-जैसे एआई अधिक इंटेलिजेंट होता जाएगा, प्रक्रियाओं को और अधिक उत्पादक बना देगा।

अगर प्रौद्योगिकी को अपनाना है और हम अन्य चिंताओं का ध्यान रखते हैं, तो भी अमीर व गरीब के बीच की खाई बड़ी हो जाएगी। क्या यह यूटोपिया, डिस्टोपिया या इन दोनों के बीच का कुछ होने वाला है?

मुझे नहीं लगता कि यह यूटोपिया या पूरी तरह से निराशावादी परिदृश्य होगा। यह एक ऐसी यात्रा होने जा रही है जहां हमें आर्थिक, भौगोलिक, लिंग और उम्र समेत सभी प्रकार की विविधताओं को ध्यान में रखना होगा। प्रौद्योगिकी को निश्चित रूप से अधिक समावेशी होने की आवश्यकता है अन्यथा इसके सफल नहीं होने की बड़ी आशंका है। इसे हर हाल में स्वीकार करना होगा।

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