क्यों है भारत में लद्दाख का हान्ले खगोलीय अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि लद्दाख में हान्ले, खगोलीय अध्ययन करने के लिए दुनिया भर के कई जगहों से अच्छी है, वहां वर्ष में 270 रातें बहुत साफ होती हैं।

By Dayanidhi

On: Monday 04 October 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि लद्दाख में लेह के पास हान्ले में स्थित इंडियन एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी (आईएओ) दुनिया भर में संभावनाओं से भरपूर वेधशाला बन रही है। हान्ले की रातें बहुत साफ होती हैं, प्रकाश से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण भी नाममात्र है, हवा में तरल बूंदें या एरोसोल मौजूद हैं। यहां अत्यंत शुष्क परिस्थितियां हैं और मानसून को लेकर किसी प्रकार की बाधा नहीं है। इस इलाके की यही खूबियां हैं।

खगोलविद कई वर्षों में एकत्रित स्थानीय मौसम संबंधी आंकड़ों के आधार पर अपना अगला बड़ा टेलीस्कोप बनाने के लिए लगातार दुनिया भर में आदर्श स्थानों की खोज कर रहे हैं। इस तरह के अध्ययन भविष्य की वेधशालाओं की योजना बनाने और पूर्वानुमान लगाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

भारत के शोधकर्ताओं और उनके सहयोगियों ने आठ ऊंचे स्थान पर स्थित वेधशालाओं के ऊपर रात के समय बादलों का विस्तार से अध्ययन किया। इन वेधशालाओं में भारत की तीन वेधशालायें भी थीं। उन्होंने दोबारा से विश्लेषित किए गए आंकड़ों का इस्तेमाल किया और 41 वर्षों के दौरान किये गए आकलनों से उनका मिलान किया। इसमें उपग्रह से जुटाये गये 21 वर्ष के आंकड़ों को भी शामिल किया गया था।

इस अध्ययन में रातों को किये जाने वाले आकलनों की गुणवत्ता को वर्गीकृत किया गया। जिसके लिये विभिन्न खगोलीय उपकरणों का इस्तेमाल हुआ था। इनमें फोटोमेट्री और स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसे उपकरण शामिल थे। भारतीय खगोलीय वेधशालाओं में लद्दाख में हान्ले और मेराक, नैनीताल में देवस्थल की वेधशाला शामिल है। चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की अली वेधशाला, दक्षिण अफ्रीका की लार्ज टेलीस्कोप, टोक्यो यूनिवर्सटी, अटाकामा ऑब्जर्वेटरी, चिली, पैरानल और मेक्सिको की नेशनल एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी में इन आंकड़ों का मूल्यांकन किया गया।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि लद्दाख में हान्ले, जो चिली के अटाकामा रेगिस्तान जितना ही शुष्क है और देवस्थल से कहीं अधिक सूखा है तथा वहां वर्ष में 270 रातें बहुत साफ होती है। वही स्थान इंफ्रारेड और सब-एमएम ऑप्टिकल एस्ट्रोनॉमी के लिये सबसे अच्छा है। इसका कारण यह है कि यहां वाष्प में इलेक्ट्रोमैगनेटिक संकेत जल्दी घुल जाते हैं और उनकी शक्ति भी कम हो जाती है।

इस शोध को भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) बेंगलुरु के डॉ. शांति कुमार सिंह निंगोमबाम और आर्यभट्ट वेधशाला विज्ञान अनुसंधान संस्थान, नैनीताल के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। अध्ययन में सेंट जोसेफेस कॉलेज, बेंगलुरु और दक्षिण कोरिया के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मीटियोरोलोजिकल साइंसेस, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो और कैमिकल साइंसेस लेब्रोटरी, एनओएए, अमेरिका ने इसमें सहयोग दिया। यह अध्ययन मंथली नोटिस ऑफ रॉयल एस्ट्रोनोमिकल सोसायटी में प्रकाशित हुआ है।

खगोलविदों ने कहा कि पैरानल चिली के रेगिस्तान में स्थित एक ऊंचाई वाली जगह है जो अक्सर साफ आसमान तथा वर्ष भर में 87 फीसद तक साफ रातों के लिए जानी जाती है। आईएओ-हान्ले और अली ऑब्जर्वेटरी एक-दूसरे से 80 किमी के फासले पर स्थित हैं और साफ रातों के मामले में एक-दूसरे के समान हैं।

खगोलविदों ने यह भी देखा कि अन्य स्थानों की तुलना में देवस्थल में  रातें ज्यादा साफ होती हैं, लेकिन वहां साल में तीन महीने बारिश होती है। बहरहाल, आइएओ-हान्ले में रातों को 2 मीटर के हिमालय चंद्र दूरबीन (एचसीटी) से बिना मौसम संबंधी बाधा के साल भर अवलोकन किया जा सकता है। रातें ज्यादा साफ हैं, प्रकाश का न्यूनतम प्रदूषण है, पानी की बूंदे मौजूद हैं वातावरण अत्यंत शुष्क होता है। साथ ही मौसम संबंधी कोई अड़चन भी नहीं है। इसलिये यह क्षेत्र खगोलीय अध्ययन के लिये पूरी दुनिया के लिये संभावनाओं से भरपूर क्षेत्र बन रहा है।

दूसरी ओर भारत के हान्ले, मेराक और देवस्थल तथा चीन में अली में बादल भी क्रमशः 66 से 75 फीसदी, 51 से 68 फीसदी, 61 से 78 फीसदी और 61 से 76 फीसदी है। यह विभिन्न समय में उपग्रहों और दोबारा  विश्लेषित आंकड़ों के आधार पर देखा गया।

1980 से 2020 के दौरान सभी स्थानों पर वातावरण की विविधता का अध्ययन करके शोधकर्ताओं को पता लगा कि अफ्रीका के मध्य क्षेत्र, यूरेशियन महाद्वीप और अमेरिकी महाद्वीप के ऊपर बादलों के जमघट में गिरावट आ रही है। लेकिन समुद्री क्षेत्र तथा सहारा रेगिस्तान, मध्य-पूर्व, भारतीय उपमहाद्वीप, तिब्बती पठार और दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपों पर बादलों का जमघट बढ़ रहा है। ऐसा संभवतः जलवायु परिवर्तन और भू-समुद्री क्षेत्र में वाष्प प्रक्रिया में बदलाव के कारण हो रहा है।

बादलों के लंबे समय तक जमघट सम्बंधी और अन्य विभिन्न मौसम सम्बंधी पैमानों का विस्तृत अध्ययन से मेगा-साइंस परियोजनाओं के लिये आईआईए योजना को सहायता मिली। जिनमें दो मीटर एपर्चर वाले राष्ट्रीय विशाल सौर टेलिस्कोप (एनएलएसटी) तथा आठ से 10 मीटर एपर्चर वाले टेलिस्कोप शामिल हैं। ये लद्दाख के ऊंचाई वाले स्थान मेराक और हान्ले से सम्बंधित हैं।

अध्ययन की अगुवाई करने वाले डॉ. शांति कुमार सिंह निंगोमबाम ने कहा कि भावी वेधशालाओं की योजना के मद्देनजर, पिछले कई वर्षों के दौरान पहचाने गए विभिन्न स्थानों से ऐसे विस्तृत विश्लेषण और समय-समय पर वातावरण में आने वाले बदलावों के बारे में समझ बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

खगोल और जलवायु सम्बंधी विभिन्न पैमानों के कई वर्षों के आंकड़ों का मूल्यांकन करने के बाद आईआईए ने दो मीटर एपर्चर वाला हिमालयी चंद्र टेलिस्कोप (एचसीटी) को हान्ले स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला में 2000 के दौरान लगाया था। उसके बाद इस स्थान के अनोखेपन के चलते कई अन्य खगोलीय टेलिस्कोप लगाये गये, जो ऑप्टिकल और इंफ्रारेड वेव बैंड्स के थे। देश की कई संस्थानों ने ये टेलिस्कोप हान्ले में लगाए हैं।

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