वैज्ञानिकों ने बनाया किफायती सेंसर, नदियों के जल स्तर को रिकॉर्ड कर बाढ़ की चेतावनी देगा

जल स्तर को रिकॉर्ड करने वाले जीएनएसएस एंटीना को किसी भी संरचना से जोड़ सकते हैं, चाहे वह पुल हो, इमारत हो या नदी के बगल का एक पेड़ ही क्यों न हो।

By Dayanidhi

On: Friday 25 November 2022
 
फोटो: बॉन विश्वविद्यालय, जल स्तर रिकॉर्ड करने वाला सेंसर जो सौर ऊर्जा से चलता है, यह किसी रखरखाव के बिना पूरी तरह स्वतंत्र रूप से काम करता है।

भारत सहित दुनिया भर के कई देशों में नदियों के आस पास रहने वाले लोगों को बढ़ते जल स्तर के कारण आने वाली बाढ़ से हर साल जान माल का भारी नुकसान उठाना पड़ता हैं।    

अब शोधकर्ताओं ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जिससे चौबीसों घंटे नदियों के जल स्तर की निगरानी की जा सकती है। यह किफायती सेंसर पूरे क्षेत्र में बाढ़ की चेतावनी प्रणाली के लिए सबसे महत्वपूर्ण साधनों में से एक है। यह कारनामा बॉन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया है।

जलधारा के स्तर को निर्धारित करने के लिए कई तरह के तरीके हैं, बहुत सरल तरीकों में मानदंड या स्टाफ गेज से लेकर उन्नत रडार समाधान तक शामिल हैं। लेकिन उन सभी में एक कमी है जो अधिक जल स्तर के सीधे संपर्क में आने के कारण अधिकांश मापने वाले उपकरण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। कई से तो लगातार  निगरानी नहीं की जा सकती हैं, दूर से इनकी रीडिंग लेना मुश्किल होता है या वे बहुत महंगे हैं।

एक मापने वाला उपकरण जो पहले से ही दो साल से सेवा में है, यह किफायती, विश्वसनीय और मोबाइल के माध्यम से संचालित कर मूल्यांकन केंद्र में जल स्तर के बारे में लगातार जानकारी देने में सक्षम है। इसका मतलब है कि ऐसा सेंसर बाढ़ और सूखे की चेतावनी प्रणाली के लिए बड़ा नेटवर्क प्रदान करने के लिए उपयुक्त है।

बॉन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ जियोडेसी एंड जियो इंफॉर्मेशन के डॉ. माकन करेगर बताते हैं, "हमारा उपकरण किफायती, जीएनएसएस रिसीवर और एंटीना है।" यह एक सेंसर है जो परंपरागत रूप से सटीकता के साथ अपने स्थान की स्थिति निर्धारित कर सकता है। यह यूएस जीपीएस उपग्रहों और उनके रूसी समकक्षों, ग्लोनास का उपयोग करके ऐसा करता है।

करेगर ने बताया कि नदी की सतह के ऊपर जीएनएसएस एंटीना की ऊंचाई को मापने के लिए उपग्रह संकेतों का भी उपयोग किया जा सकता है।

परावर्तित संकेत जल स्तर के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं

ऐसा इसलिए है क्योंकि उपग्रहों द्वारा प्रेषित तरंगें आंशिक रूप से सीधे एंटीना द्वारा ग्रहण की जाती हैं। बाकी पास के वातावरण (इस मामले में पानी की सतह) से परावर्तित होता है और घूमकर रिसीवर तक पहुंचता है। यह परावर्तित भाग इसलिए अधिक समय तक घूमता रहता है। सीधे प्राप्त किए गए सिग्नल से यह कुछ पैटर्न बनाता है जिसे हस्तक्षेप कहा जाता है। इनका उपयोग एंटीना और जल स्तर के बीच की दूरी की गणना के लिए किया जा सकता है।

करेगर बताते हैं हम जीएनएसएस एंटीना को किसी भी संरचना से जोड़ सकते हैं, चाहे वह पुल हो, इमारत हो या नदी के बगल का एक पेड़ हो क्यों न हो। वहां से, यह नदी के स्तर को 24 घंटे बिना संपर्क के माप सकता है, औसतन लगभग 1.5 सेंटीमीटर के भीतर। फिर भी भयंकर बाढ़ की घटनाओं के दौरान इसके क्षतिग्रस्त होने की संभावना कम होती है। यह विधि रडार-आधारित सेंसर से मेल नहीं खाती। 150 यूरो से कम में, यह उपकरण अपने मौजूदा समकक्ष की तुलना में काफी सस्ता भी है।

जीएनएसएस एंटीना एक माइक्रो कंप्यूटर से जुड़ा होता है जिसे रास्पबेरी पाई कहा जाता है। इंस्टीट्यूट ऑफ जियोडेसी एंड जिओ इंफॉर्मेशन के प्रोफेसर डॉ. क्रिस्टीन लार्सन ने बताया, "डिवाइस एक छोटे स्मार्टफोन के आकार बराबर है, फिर भी इसमें अधूरे आंकड़ों से पानी के स्तर की गणना करने की पर्याप्त शक्ति है।

इसके लचीलेपन और कम बिजली की खपत होती है, यह माइक्रो कंप्यूटर शौकीनों के बीच बहुत लोकप्रिय है, जो इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं को साकार करने के लिए करते हैं। यह सौर सेल द्वारा संचालित किया जा सकता है और फिर पूरी तरह से अकेले काम करता है। यह अपने आंकड़ों को मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से भी प्रसारित कर सकता है।

लार्सन ने बताया कि उन्होंने जिस सॉफ्टवेयर को बनाया है वह ओपन सोर्स है। इसे कोई भी मुफ्त में इस्तेमाल कर सकता है। शोधकर्ताओं ने अपने प्रोजेक्ट के बारे में सारी जानकारी इंटरनेट पर भी उपलब्ध कराई है। इसलिए इच्छुक पार्टियां आसानी से मापने वाले उपकरण का फिर से उपयोग कर सकती हैं।

करेगर कहते हैं  हालांकि, इस प्रक्रिया का एक नुकसान है, यह कम से कम 40 मीटर की चौड़ाई वाली नदियों के लिए ही उपयुक्त है। यह सबसे छोटा दायरा है जिससे ऐन्टेना परावर्तित उपग्रह संकेत प्राप्त कर सकता है। यदि नदी की तह बहुत संकरी है, तो अधिकांश परावर्तित संकेत भूमि से आते हैं।

लेकिन इसमें शामिल लोग अपने मूल्यांकन कोड को और अनुकूलित करने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जाती है कि इससे उन्हें जर्मनी में छोटी नदियों के लिए विश्वसनीय परिणाम हासिल करने में मदद मिलेगी। यह अध्ययन वाटर रिसोर्सेज रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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