तालाबों पर कब्जे के लिए कर देते हैं हत्याएं, सरकार भी पीछे नहीं

नदियों, तालाबों की धरती उत्तर बिहार इन दिनों पानी के संकट से जूझ रही है। प्रस्तुत है, इसकी व्यापक पड़ताल करती श्रृंखला की दूसरी कड़ी -

By Pushya Mitra

On: Wednesday 19 June 2019
 
तालाब के बीचों बीच बनाया गया पटना एनएमसीएच सेंटर। फोटो: पुष्यमित्र

“यहां क्या पानी की कमी है, यहां तो पानी ही पानी है”, कहते हुए पिछले तीन-चार दशकों में उत्तर बिहार के लोगों ने पानी को जमकर बर्बाद किया। खासकर तालाबों को तो बहुत नुकसान पहुंचाया गया।  इन्हें पहले सुखाया गया, फिर इन पर कब्जे किए गए और जो बीच में आया, उसकी हत्या कर दी गई।

दरभंगा में पिछले 7-8 साल से तालाबों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता नारायण जी चौधरी कहते हैं कि 1964 में प्रकाशित गजेटियर के मुताबिक, दरभंगा के शहरी क्षेत्र में 300 से अधिक तालाब थे।

1989 में प्रोफेसर एसएच बज्मी ने शहर के तालाबों का सर्वेक्षण किया था। उस सर्वे के मुताबिक तब शहर में 213 तालाब थे। उन्होंने इस सर्वेक्षण में उक्त तालाबों का रकबा भी दर्ज किया था, साथ ही एक नक्शा बनाकर उसमें तालाबों की स्थिति दिखाई थी। वर्ष 2016 में दरभंगा नगर निगम ने जानकारी दी कि शहर में तालाबों और डबरों की कुल संख्या 84 बचीहै। पिछले तीन सालों में यह संख्या और कम हुई है।

वह कहते हैं, “मेरी आंखों के सामने छह तालाब पूरी तरह जमींदोज हो गए और नौ तालाबों को आंशिक रूप से भर दिया गया। 2013 में मैंने 23 तस्वीरों के साथ जिला प्रशासन को आवेदन दिया था कि इन तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराएं। 2016 में जिला पदाधिकारी कुमार रवि ने शहर के 200 लोगों के खिलाफ नोटिस भी जारी किया था, मगर उनके तबादले के बाद मामला वहीं का वहीं रह गया, कोई कार्रवाई नहीं हुई। आज तक शहर में किसी को तालाब के अतिक्रमण के लिए दंडित नहीं किया गया है।”

पहली कड़ी पढ़ें- नदी, तालाब, चौरों की धरती क्यों हुई प्यासी

वह आगे बताते हैं कि शहर के गरीब तबके के लोग तालाबों को बचाने के लिए आंदोलन किया करते थे, मगर पिछले दिनों दो अलग-अलग मामलों में दो ऐसे आंदोलनकारियों की हत्या कर दी गई। बाकी लोग डर कर घर बैठ गए। इनमें एक अरुण राम थे, जो बेतागामी तालाब को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। उनकी लाश 2015 में उसी तालाब में मिली। बाद में उनके ही चार आंदोलनकारी साथियों पर उनकी हत्या का मुकदमा कर दिया गया।

इसी तरह 2010 में शहर के दुमदुमा पोखर के अतिक्रमण के मामले में एक सरकारी वकील मोहिनुद्दीन की हत्या उनके घर घुस कर कर दी गई। उसका जुर्म सिर्फ इतना था कि उन्होंने अदालत में यह कह दिया था कि यह तालाब सरकारी है। उसकी हत्या के मामले अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा किया गया था।

यह कहानी सिर्फ दरभंगा शहर की नहीं है, पूर्वी चंपारण जिले का मुख्यालय मोतीहारी जिसका नाम भी शहर की सबसे बड़ी झील मोती झील के नाम पर पड़ा है, वह मोती झील पर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। 1980 से पहले इस झील का रकबा 487 एकड़ हुआ करता था। अब यह 325 एकड़ के आसपास रह गया है। इस संबंध में 109 लोगों के खिलाफ अतिक्रमण का मुकदमा भी चल रहा है। इस वर्ष जून में फिर से 165 अतिक्रमणकारियों को चिह्नित कर जिला प्रशासन ने उन्हें अतिक्रमण खाली करने का नोटिस और कार्रवाई की चेतावनी दी है।

बिहार की राजधानी पटना में तो दो बड़े तालाबों को राज्य सरकार ने ही भरवा दिया। इनमें से एक नालंदा मेडिकल कॉलेज के परिसर में स्थित तालाब था। सरकार ने इसे भरवाकर इसके बीचों बीच एक डायग्नोस्टिक सेंटर बनवा लिया। अब भी उस डायग्नोस्टिक सेंटर के चारों ओर तालाब का पानी बिखरा दिख जाता है।

जब पटना सदर प्रखंड के दफ्तर के निर्माण की बात चली तो शहर के कुम्हरार में स्थित वारिस खां तालाब को भरवा दिया गया। 74 एकड़ में फैले गुणसागर तालाब को लोगों ने भरवाकर वहां न्यू अजीमाबाद कॉलोनी विकसित कर ली है। महज दो दशक पहले तक स्थानीय मछुआरे उस तालाब की बंदोबस्ती लिया करते थे, अब वहां इमारतें खड़ी हैं।

पूरे राज्य में इसी तरह तालाबों पर अतिक्रमण किया जा रहा है। राज्य में कभी दो लाख से अधिक तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब 98 हजार तालाब ही रह गए हैं। इस मामले में इकलौता सरकारी हस्तक्षेप यह हुआ कि 28 सितंबर, 2016 को पटना हाई कोर्ट ने तालाबों के अतिक्रमण के मसले पर चिंता व्यक्त कीऔर राज्य सरकार से स्टेटस मांगा तो राज्य सरकार की ओर से पहली दफा राज्य के सभी जल निकायों का सर्वे हुआ।

राज्य के भू-राजस्व विभाग ने हाईकोर्ट को 9 मार्च, 2017 को जानकारीदी कि इस वक्त राज्य में जल निकायों की कुल संख्या 1,99,248 है, इनमें 12,027 अतिक्रमण का शिकार हैं। अदालत ने सरकार को निर्देश दिया कि सिर्फ आदेश जारी करने से नहीं होगा, वह नियमित मॉनिटरिंग कर इन जल निकायों को 20 मई, 2017 तक अतिक्रमण से मुक्त कराए, मगर अदालत के आदेश के बावजूद जमीन पर इन जलनिकायों को अतिक्रमण मुक्त कराने के प्रयास कहीं नजर नहीं आए।

इस साल जब उत्तर बिहार में जल संकट उत्पन्न हुआ तो दरभंगा जिला प्रशासन ने 4 जून, 2019 को वहां के प्रसिद्ध गंगा सागर तालाब पर हुए 48 अतिक्रमण को हटाने की बात कही है और इसके लिए 20-21 जून तक की तारीख दी है। प्रशासन ने कहा है कि अगर लोग खुद अतिक्रमण नहीं हटाते तो 20-21 जून को सरकार इनके निर्माण को ध्वस्त करेगी। अब यह देखना है कि सरकार 20-21 जून को क्या करती है।

शहर के छोटे-बड़े तालाब तो लगातार भरे जा रहे हैं। हराही, गंगा सागर और दिग्घी के नाम से प्रसिद्ध तीन बड़े और ऐतिहासिक तालाब भी लगातार अतिक्रमण के शिकार हो रहे हैं। इन तालाबों के किनारे रहने वाले लोग लगातार कूड़ा डंप करके अपनी जमीन बढ़ाते हैं और तालाब का रकबा छोटा होता चला जाता है।

नारायण जी चौधरी इस बात की तस्दीक करते हुए कहते हैं कि इन दिनों दरभंगा में यह आम चलन है। तालाब के किनारे की जमीन सोना मानी जाती है। जबकि यह जमीन असल में तालाब की अंगनई है और वह भी तालाब का हिस्सा ही है।

हालांकि यह दुर्दशा सिर्फ तालाबों के साथ नहीं हो रही, उत्तर बिहार के ज्यादातर कुओं को लोगों ने फालतू मानकर पिछले तीन-चार दशकों में भरवा दिया, ताकि उस जमीन का कुछ और इस्तेमाल कर सकें। हिमालय के नेपाल के रास्ते इस इलाके में 200 से अधिक छोटी नदियां और धाराएं उत्तर बिहार के इलाके में आती थीं। हाल के वर्षों में इनमें से अधिकांश सूख गईं, दुर्भाग्यवश इनकी कोई गिनती हमारे पास नहीं है।

… जारी

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