कॉप-27 का समापन क्या दुनिया के लिए नई सुबह लेकर आएगा?
कॉप-27 में जलवायु परिवर्तन से हो रहे नुकसान व क्षति के लिए कोष का गठन करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया
कॉप-26: जी20 देशों के 70% किशोरों ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता जताई
यूएनडीपी और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने जलवायु परिवर्तन पर एक बड़ा जनमत (वोटिंग) सर्वेक्षण कराया
कॉप-27 का हासिल: नुकसान एवं क्षति कोष को मंजूरी, मजबूरी या जरूरी?
मौसमी गतिविधियों के चलते क्षति और नुकसान का जो आकलन किया जाता है, उसमें मौसमी गतिविधियों के गैर-आर्थिक प्रभाव शामिल नहीं होते
विश्लेषण : ग्लास्गो समझौते से दुनिया को क्या मिला
निर्धारित समय से अधिक दिन तक चले कॉप-26 से वे उम्मीदें पूरी नहीं हो सकीं, जिसकी आस में विश्व इसकी ओर ताक रहा था। ...
एक मरीचिका साबित हुआ कॉप-27
तीन दशक के इतिहास में कॉप-27 सम्मेलन को सबसे खराब कार्यक्रम के रूप में याद किया जाना चाहिए
सामाजिक अध्ययनों में आपदा के जिम्मेदारों की भूमिका तय करने की जरूरत: अच्युताराव
पाकिस्तान में आई बाढ़ को जलवायु परिवर्तन ने और अधिक संगीन बना दिया था। लेकिन, इसकी जिम्मेवारी ऐतिहासिक रूप से प्रदूषण फैलाने वालों के ...
डाउन टू अर्थ विश्लेषण: कॉप-27 से क्या हुआ हासिल?
मिस्र के शहर शर्म अल शेख शहर में एक पखवाड़े तक चले कॉप-27 में आखिरकार नुकसान व क्षति के लिए कोष बनाने की मंजूरी ...
अयस्क क्षेत्र को आधुनिकता की जरूरत
भारत के इस्पात उत्पादन को तीन गुणा बढ़ाकर भी साल 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी कमी लाना संभव है, लेकिन इसके ...
कॉप-26 का हासिल: चूक गए एक बड़ा अवसर
ग्लासगो में संपंन कॉप-26 क्या वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने में मदद करेगा?
कॉप-26: काफी नहीं है राष्ट्रीय निर्धारित योगदान, पैसे की कमी से प्रगति में रुकावट
यूएनएफसीसीसी ने राष्ट्रीय निर्धारित योगदान यानी एनडीसी सिंथेसिस रिपोर्ट जारी की
क्या हो कॉप-26 का एजेंडा
अक्टूबर के अंत में ग्लासगो में शुरू हो रहे कॉप-26 का एजेंडा क्या होना चाहिए, बता रही हैं पर्यावरणविद सुनीता नारायण
क्या जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते पलायन को वैश्विक मान्यता मिल पाएगी?
जलवायु परिवर्तन के कारण एक से दूसरे देश में पलायन को सुविधाजनक बनाने के लिए समझौता अभी दूर की राजनीतिक कौड़ी है
कॉप-26: कार्बन बजट और उत्सर्जन के इन सवालों पर हो बात
धरती की कार्बन उत्सर्जन झेलने की क्षमता अब लगभग खत्म हो चली है। फिर भी हमें अपने अस्तित्व और विकास के लिए उत्सर्जन करना ...