जल संकट का समाधान: 18 साल पहले के प्रयास आ रहे हैं काम
मध्यप्रदेश का एक गांव मिसाल बन गया है कि कैसे डेढ़ दो दशक पहले किए गए कार्यों का फल बाद में मिलता है
On: Thursday 13 June 2019
मध्य प्रदेश का खरगोन शहर लगातार 47.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में तप रहा है। अप्रैल महीने के अंतिम सप्ताह में शहर का तापमान विश्व में सबसे अधिक था। इस गर्मी में खरगोन जिले के 15 से भी ज्यादा गांव में पानी के स्रोत सूख गए। भिनकगांव, झिरन्या, छेंदिया, भगवानपुर और सेगांव जैसे गांव में तो स्थिति ऐसी है कि आसपास के 4 किलोमीटर के दायरे में पानी मौजूद नहीं है। ऐसे में, इसी जिले के एक गांव रूपखेड़ा की तस्वीर आपको सुखद आश्चर्य का अहसास कराएगी। साल 2001 से पहले हर साल इस गांव की तस्वीर भी बाकी गांवों की तरह ही हुआ करती थी, लेकिन इस गांव वालों ने 2001 से 2003 के बीच पर्यावरण के हित में कुछ बदलाव किए।
गांव के निवासी बालम बालके बताते हैं कि 2001 में कुछ सामाजिक कार्यकर्ता 2500 लोगों की आबादी वाले गांव में एक योजना लेकर आये। इसके तहत गांव वालों के सामने श्रमदान कर छोटे जल संग्रह के स्थान बनाना और पेड़ लगाना शामिल था। सामाजिक कार्यकर्ता और नदी और जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले रहमत बताते हैं कि रूपखेड़ा के लोगों ने इस योजना में रुचि दिखाई। हालांकि आसपास के कई गांव वाले इसके पक्ष में नहीं थे।
आज 17-18 साल बाद इस गांव का भूमिगत जल काफी बेहतर अवस्था में है और लगभग 300 फुट पर पानी उपलब्ध हो रहा है। जबकि आसपास के गांव में 500 फुट से नीचे भी पानी नहीं मिल रहा है। रहमत बताते हैं कि यह बदलाव बहुत अचानक नहीं हुआ। गांव के द्वारा किए प्रयासों का फल अब मिल रहा है। पर्यावरण के सतत संरक्षण से ही यह स्थिति बरकरार रहेगी। इस समय इस गांव में छोटे बड़े 20 तालाब और 10 कुएं हैं। जहां पानी आसानी से उपलब्ध है।
17 साल पहले क्या बदला था
रहमत बताते हैं, " 17 साल पहले गांव की हालत ठीक नहीं थी। भूजल लगातार नीचे जा रहा था। 2001 में सबसे पहले सतह वर्षाजल संरक्षण की पहल की और कुछ छोटे तालाब बनाए। पहले साल में लोगों ने मानसून में पानी का संरक्षण देखा तो अगले साल और उत्साह से हमारे कार्यक्रम में शामिल हुए।" संस्था का असली मकसद भूजल को रिचार्ज करना था, लेकिन इसके लिए जो प्रयास होते हैं उनके परिणाम दिखने में लंबा वक्त लगता है। इसलिए उस मुहिम की शुरुआत वर्षा जल संरक्षण से हुई। अगले वर्ष लोग उत्साह के साथ इस मुहिम से जुड़े और फिर पेड़ लगाने का काम भी शुरू हुआ।
पूरे गांव में लगाया नीम और बबूल का जंगल
बाबुल ने बताया कि लगातार 2 साल तक गांव वालों ने पौधरोपण किया। नीम और बबुल जैसे कम पानी की खपत करने वाले पौधे लगाए। 2500 लोगों की आबादी वाले गांव में देखते देखते 5000 पेड़ लहलहाने लगे। गांव वालों को पौधरोपण को कामयाबी का पता वर्षों बाद चला जब आसपास के गांव पानी के लिए बेहाल हो गए। गांव वाले बताते हैं कि इस गांव से 45 किलोमीटर दूर के गांव नागझिरी में पानी नहीं है। दक्षिण में बगदारा और उत्तर में सोलना गांव की हालत भी कुछ ऐसी ही है। हालांकि रूपखेड़ा गांव के कुएं अब तक सूखे नहीं हैं। यहां हैंडपम्म और बोर भी चालू हालात में हैं।
गांव के हर पानी के स्रोत के पास पेड़ लगाए गए। जैसे- नालों और तालाबों के मेढ़ पर लगाए पेड़ ताकि सालभर पानी न देना पड़े, ताकि उन्हें लगातार पानी मिलता रहे। ग्रामीणों ने पेड़ों की रक्षा करने के साथ मैदान में घास के मैदान भी संरक्षित किया। साल 2004 में भी बांस के पौधे लगाए गए। हर गांव वाले को ताकीद की गई कि वो बकरियों और भेड़ों से पौधों को बचाए।