लोगों की जान ले लेता है इस गांव का पानी!

छत्तीसगढ़ के इस गांव में आर्सेनिक की मात्रा इतनी अधिक है कि लोग बीमार हो रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं 

On: Tuesday 09 July 2019
 
गांव में इस तरह के नल लगाकर लोगों को चेतावनी दी जा रही है। फोटो: अवधेश मलिक

राजनांदगांव से अवधेश मलिक   

इन दिनों दुनिया भर में चारों ओर पानी को लेकर कोहराम मचा हुआ है। बारिश होने के बावजूद पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है और लोग कहने लगे हैं कि आने वाला समय में तीसरा विश्व युद्ध पानी को लेकर लड़ा जाएगा। कुछेक जगह तो लोग मरने मारने पर उतारू हैं। 1,292 मि.मी के सालाना वार्षिक औसत वाला राज्य भी इससे अछूता नहीं है। इतनी बारिश होने के बावजूद, उचित पानी संग्रहण के अभाव में कई क्षेत्रों में पिछले कई वर्षों से लगातार सूखे जैसे हालात हैं। लेकिन यहां पर कुछेक ऐसे इलाके भी हैं, जहां पर पानी तो है लेकिन जहरीला। राजधानी रायपुर से करीब 140 किलोमिटर दूर में स्थित राजनांदगांव के चौकी ब्लॉक का कौदिकसा गांव, उन्हीं गांव में से एक है जिसे लोग जिसे लोग आज भी शापित गांव मानते हैं।

आदिवासी बहुल इस गांव में स्थानीय स्रोतों से आने वाला पानी आज भी लोग डर-डर कर पीते हैं। कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। दूर गांव के लोगों को भी इसके बारे में पता है। यहां पर स्थानीय निकाय से निकलने वाला पानी में धीमा जहर है। इस पानी में खतरनाक स्तर तक आर्सेनिक पाया गया है। 

गांव वाले बताते हैं कि 1994 में गांव के सरकारी स्कूल में काम करने वाला आदिवासी पीउन तीजूराम की अचानक से मौत हो गई। उसका शरीर तब भी स्याह पड़ गया, जबकि उसमें किसी भी प्रकार की खराब आदतें नहीं थी। वह सवेरे उठता था और खाली पेट में जमकर स्कूल के आगे लगी हैंड पंप से पानी पीता था, नहाता था। लोग कहते हैं जितना वह नहाते जाता था उतना ही उसके शरीर का रंग काला पड़ता गया और एक दिन उसकी मौत हो गई। तीजूराम के बाद केशुराम, कामता प्रसाद, सवाना बाई, देव प्रसाद तारम, डॉ. इन्द्रजीत प्रसाद, जितेंद्र यादव, कामता प्रसाद गुप्ता, सुभाषराम कुंजाम, राम कुंवर सिंह, अवंतिन बाई, सुबहुराम यादव और कृष्णा महाराज की मौत हो गई। गांव वाले बताते हैं कि पिछले 5 सालों के अंदर 40 अधिक लोगों की मौत जहरीला पानी पीने की वजह से हो चुकी है।

जो बच गए हैं उनकी स्थिति बहुत ही खराब है। 55 वर्षीय युवराज के हाथों में घाव है, जो भरता ही नहीं और हाथ का चमड़ी इतनी सख्त हो गई है कि कई बार उंगलियां मुड़ ही नहीं पाती। हेयर ड्रेसर की दुकान चलाने वाले रोहित कौशिक के शरीर पर बने चकेते और पांव में मछली के तरह पड़ते फफोलों को दिखाते हुए कहते हैं कि उनका चमड़ी सूखने लगी है कि कई बार उन्हें ब्लेड से काटकर निकालना पड़ता है, काफी खून आता है, लेकिन अगर वे ऐसा न करें तो चल भी नहीं पाते। इस प्रकार की समस्या पूरे गांव भर में हैं। 

महिलाएं भी इस समस्या से अछूती नहीं है। ज्यादातर लड़कियों में असामान्य महावारी, चक्कर आना, कमजोरी, और त्वचा रोग की शिकार होना, गर्भधारण में दिक्कत आम बात हो गई है। काफी सारी महिलाओं को रक्त की कमी और गर्भवती होने पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गांव की रेखा और जगदीश देवी ( परिवर्तित नाम) जो रायपुर एम्स में ईलाज करवा रही है बताती है कि हमारी पूरी पीढ़ी इस जानलेवा बीमारी की चपेट में है। इस गांव मे कई लोग ऐसे हैं जिन्हें डॉक्टरों ने यहां तक सलाह दे डाली की जीना है तो गांव छोड़ दो। फिलहाल राहत की बात यह है कि मोगरी बैराज से इन्हें अब पानी मिलने लगा है।

अकेला कौदिकसा गांव के पानी में आर्सेनिक का प्रभाव नहीं है, बल्कि आसपास के 25 गांवों में इसका असर है। इनमें कौदीकसा के अलावा कुंदेराटोला, मुलहेटीटोला, बोदल, तारामटोला, गोटुल मुंडा, देरवारसुर, ‌भर्रीटोला, मेटापार, नीचेकाटोला, भगवानटोला, मेरागांव, बिहारीकला, खुर्सीतीकुल, अर्जकुंड, कुम्हाली, पिपरगढ़, गौलिटीटोला, गोपालिन छुआ, परसाटोला, पंडरीतराई, कालकसा, सांगली, सोनसाय टोला, तेली टोला सामिल है। लेकिन जो कहर कौदिकसा, सोनसाय टोला एवं सांगली ग्राम पंचायत के कुछेक गांव में देखने को आज भी मिल रहा है, वैसा दूसरे गांवों से फिलहाल सुनने को नहीं मिला।

पानी की वजह से पैरों की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति। फोटो: अवधेश मलिक

आर्सेनिक की वजह से दुधारू गाय से लेकर मवेसी यहां तक पेड़ पौधे और फसल सभी प्रभावित हो रहे है। माखन तारम बताते हैं कि उनकी खेतों की फसल की उत्पादकता लगातार कम होते जा रही है और भैंस ने दूध देना कम कर दिया है। फसल स्वास्थ नहीं रहने से खेती घाटे का सौदा बन गया है।स्कूल टीचर ने नाम न छापने के शर्त में बताया कि आए खराब स्वास्थ्य के चलते आए दिन कक्षाओं में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति में कटौती होते रहती है। 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक एवं उनकी खोज
आर्सेनिक पॉयजनिंग का केस 1978-80 के मध्य पश्चिम बंगाल में देखने को मिला था। इस पर स्कूल ऑफ ट्रापिकल मेडिसन के प्रोफेसर केसी साहा ने अपने रिपोर्ट में कौदिकसा के बार में जिक्र करते हुए कहा था कि 70 के दशक के पूर्व में ही कौदिकसा नामक जगह पर आर्सेनिक पॉयजनिंग के मामले के बारे में ज्ञात हुआ था। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब मौतों का सिलसिला चालु हुआ तब तक काफी देर हो चुका था । कई वैज्ञानिक कोलकाता, दिल्ली, अमेरिका नाईजेरीया जैसे जगहों से आए और गांव, गली, गोठान, तालाब, कुवां, चापाकल, झरीया सभी जगहों से मिट्टी और पानी के सैंपल इकट्ठा किया और शोध करने के लिए अपने साथ ले गए। वैज्ञानिकों ने 800 से भी ज्यादा के सैंपल इकट्ठा किया और उस पर जो अपनी रिपोर्ट सौंपी, उसमें बंगाल में 0.01-.05 आर्सेनिक मिलीग्राम प्रति लीटर में पाया गया, जबकि कौदिकसा में प्रति लीटर यह 0.52 मिलीग्राम तक पाया गया। कहीं कहीं पर तो .92 मिग्रा प्रति लीटर तक था।

वैज्ञानिकों का मानना है कि राजनांदगांव का चौकी ब्लॉक खासकर कौदीकशा से जुड़े हुए एक लंबा चौड़ा भूभाग आग्नेय चट्टानों से भरा हुआ ईलाका है। जिसमें खनिजों का मिश्रण काफी प्रचुर मात्रा में है। मौसम के मार और वर्षा से लगातार ये चट्टानें घुलती रही है। लेकिन पिछले कुछेक वर्षों में जब यहां पर मानवीय गतिविधियां तेज हुई तो इसके घुलने एवं चट्टानों की टूटने की प्रकियाएं काफी तेज हो गई। 1988-89 में कौदीकसा से करीब 5 किलोमिटर दूरी पर नेशनल एटॉमिक कमीशन के अनुशंसा से बोदल माईन्स से यूरेनियम निकाला जाने लगा। काफी समय से वह बंद है। पर लोगों का मानना है कि जबसे बोदल के यूरेनियम माईन्स चालु हुआ तब से उस इलाके में आर्सेनिक प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ने लगी।

पंडित रवि शंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी के रसायन विभाग के प्रोफेसर के एस पटेल जिन्होंने अपने टीम के साथ कौदीकसा एवं अन्य ग्रामों में जाकर लंबे समय तक रिसर्च किया है, बताते हैं कि गांव की स्थिति बहुत ही भयावह है । आर्सेनिक नामक जहर सिर्फ पानी में ही नहीं, गांव की जमीन, आबोहवा, फल, सब्जी, अनाज सभी में घुल रही है। नदी, नाले, जंगल, सभी प्रदूषित हो रही है। कुछ लोगों के शरीर में 15 मिग्रा तक आर्सेनिक पाया गया है। और इंसान की खात्मे के लिए 1 मिलीग्राम इतना काफी है। उनका कहना था कि उस क्षेत्र में लोग आर्सेनिक से ही नहीं बल्कि फ्लोराईड से भी पीड़ित है वहां के पानी में आर्सेनिक के साथ साथ फ्लोराईड भी जबर्दस्त मात्रा में घुली हुई है। वैज्ञानिकों का यहां तक मानना है कि पानी में आर्सेनिक के प्रभाव को निर्मूल करने के लिए सरकार को विस्तृत शोध करवाना चाहिए।

नेशनस एनवायरामेंटल इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) संस्था ने सरकार से अनुमति लेकर में तीन जगह पानी को आर्सेनिक मुक्त करने के लिए प्रायोगिक तौर पर प्लांट लगाए गए इस पर करोड़ों रूपया फूंका गया। स्थानीय लोगों के मुताबिक उनको इसका फायदा नहीं मिला। आज भी वहां पर बिल्डिंग और कुछ मशीने पड़ी हुई है।  प्राप्त जानकारी के मुताबिक पूर्व के भाजपा सरकार में 28 करोड़ रूपये से अधिक राशि खर्च कर स्वच्छ पानी संयत्र लगाया गया है।

राजनांदगांव के पब्लिक हेल्थ विभाग में पदस्थ एक्जक्यूटिव इंजीनियर जीएन रामटेके बताते हैं – संयंयत्र दो वर्षों से चालू है और सभी प्रभावित गांवों को पीने का पर्याप्त पानी मुहैया करवाई जा रही है। जिन हैंडपंपों से आर्सेनिक निकलने की बात कही गई थी उन्हें बंद करवा दिया गया है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सुदेश टिकाम बताते हैं कि सरकार गांव वालों को शिवनाथ नदी से पानी मुहैया करवा रही है जिसमें फ्लोराईड की मात्रा अधिक है। पर पहुंचने वाला पानी की क्वालिटि टेस्टिंग हो रही है कि नहीं यह अपने आप में सवाल है।

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