सिमोन उरांव के जल संरक्षण को मॉडल को 50 से अधिक गांवों ने अपना लिया है
रांची के बेरो खंड में रहने वाले सिमोन उरांव ने अपने आसपास के कई गांवों को पानीदार बना दिया है। स्थानीय लोगों के बीच सिमोन उरांव पानी बाबा के नाम से मशहूर हैं। उन्हें झारखंड का जलपुरुष भी कहा जाने लगा है। उरांव ने अपने प्रयासों से सैकड़ों हेक्टेयर भूमि को सूखे से बचा लिया है। और यह संभव हुआ है जल संरक्षण के उपायों से।
उरांव के प्रयास झारखंड जैसे राज्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य तेजी से मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ रहा है। भारत के मरुस्थलीकरण एवं भू-क्षरण एटलस के अनुसार, यहां की करीब 68 प्रतिशत से अधिक भूमि इसकी चपेट में है। राज्य में मरुस्थलीकरण की सबसे बड़ी वजह जल क्षरण (जल अपरदन) है।
जलस्रोतों का क्षरण मरुस्थलीकरण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। वनस्पति को पहुंचा नुकसान दूसरा बड़ा कारण है। यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टु कॉम्बैट डेजर्टीफिकेशन के मुताबिक, मरुस्थलीकरण के कारण दुनियाभर में दो तिहाई आबादी 2025 तक पानी के संकट का सामना करेगी।
उरांव बताते हैं कि पहले मेरे गांव के सभी लोग काम की तलाश में पलायन कर जाते थे। लेकिन जब हमने चेकडैम बनाने शुरू किए तो पलायन थम गया। पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए साल 2016 में पद्मश्री से नवाजा गया था।
गर्मियों में जब राज्य का अधिकांश हिस्सा पानी के लिए तरस रहा था, बेरो में लोग उरांव के जल संरक्षण उपायों की बदौलत पर्याप्त मात्रा में पानी पा रहे थे। झारखंड में अधिकांश छोटे और सीमांत किसान हैं। यहां की कृषि मुख्य रूप से वर्षा के जल पर निर्भर है। बेरो में रहने वाले सुधीर उरांव बताते हैं, “सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होने पर हम जैसे छोटे किसान भी अच्छा कर रहे हैं। मैं अपने दो एकड़ के खेत में साल में तीन फसलें उगा पा रहा हूं। खेती से हमें अच्छी आमदनी हो रही है।”
उरांव ने सबसे बड़ा चेकडैम बेरो के नजदीक जामतोली गांव में बनवाया है। यह 12 एकड़ में बना है और इसमें साल भर पानी रहता है। उरांव ने जल संरक्षण का काम 1960 के दशक में शुरू किया था। उनमें अपने समुदाय के लोगों को प्रेरित किया और परंपरागत जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया। बड़ी संख्या में तालाब और चेकडैम का निर्माण कराया। चेकडैम और तालाबों के लिए जमीन उन्होंने अपने समुदाय के लोगों से दान कराई। उन्होंने सामान्य जमीन पर भी धान की खेती करके दिखाई है। दो साल में उन्होंने 25 टन धान उपजाया है। इसे बेचने से मिली रकम से उन्होंने निर्माण कार्यों में लगे मजदूरों को भुगतान किया। जरूरत पड़ने पर उन्होंने अपनी जमा-पूंजी भी लगा दी।
बेरो ब्लॉक में 50 से अधिक गांवों उरांव के जल संरक्षण मॉडल को अपना लिया है। 500 हेक्टेयर से अधिक भूमि चेकडैम और तालाबों से सिंचित की जा रही है। इस साल जून में जब गर्मी चरम पर थी, तब भी यहां के जलस्रोतों में पर्याप्त पानी था। लोग उस वक्त सब्जियां उगा रहे थे।
जल संरक्षण के उपायों के अलावा उरांव ने लकड़ी माफिया से भी लोहा लिया। अपने गांव के चारों ओर लगे साल के वनों को उन्होंने लकड़ी माफिया से बचाया। इस सिलसिले में हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण उन्हें जेल तक जाना पड़ा। उन्होंने 250 हेक्टेयर में फैले साल के वनों को संरक्षित किया है। हर गांव में वनों की सुरक्षा के लिए गार्ड की तैनाती की गई है।
करीब 90 वर्षीय सिमोन उरांव अब भी सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वह बताते हैं कि हाल के वर्षों में अंधाधुंध बोरवेल और कम बारिश होने के कारण भूजल की स्तर काफी गिर गया है। झारखंड में अनियमित बारिश हो रही है। रांची में 2008 में 1,475 एमएम बारिश हुई थी जबकि 2018 में 896.6 एमएम बारिश ही हुई।
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