आवरण कथा: जल प्रदूषण से निपटने के लिए आर्थिक ही नहीं, सामाजिक निवेश की भी जरूरत

सुरक्षित पेयजल का अर्थ है गुणवत्तापूर्ण पानी, जो सूक्ष्मजीवों और रासायनिक पदार्थोें से मुक्त हो 

On: Saturday 18 June 2022
 

हिमांशु कुलकर्णी व उमा असलेकर

सुरक्षित पेयजल हर इंसान का अधिकार है। सुरक्षित पेयजल का अर्थ है गुणवत्तापूर्ण पानी जो सूक्ष्मजीवों और रासायनिक पदार्थों से मुक्त हो और जिससे मानव जीवन के लिए कोई खतरा न हो।

नीति आयोग की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्तमान में जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर है। देश के सतही जल स्रोत का 70 प्रतिशत और भूजल स्रोत का 50 प्रतिशत पानी विभिन्न स्तरों पर प्रदूषित है।

सीजीडब्ल्यूबी (2017) के आकलन के अनुसार, भारत में 191 जिले फ्लोराइड, 84 जिले आर्सेनिक और 166 जिले भूजल में उच्च ईसी से प्रभावित हैं। भूजल की गुणवत्ता लाखों भारतीयों की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि 85 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण पेयजल, भूजल से ही प्राप्त करते हैं।

प्राकृतिक जल में अकार्बनिक घटकों की मात्रा भी घट रही है। पानी में प्रमुख घटक (>5 मिलीग्राम/ली), मामूली घटक (इन घटकों के बिना भी पानी सुरक्षित नहीं होता है। झरने के पानी में प्राकृतिक रूप से ये तत्व घुले होते हैं और उसे सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला जल माना जाता है।

प्राकृतिक और मानवजनित वजहों से पानी की गुणवत्ता बिगड़ती है। आसपास के चट्टान का प्रकार, जलभृत में पानी का निवास-समय और आस-पास का भौगोलिक वातावरण, भूजल की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कुछ भूगर्भीय कारक होते हैं।

आयरन, आर्सेनिक, फ्लोराइड के कारण होने वाला जल प्रदूषण भी भूगर्भीय प्रदूषण का एक उदाहरण है। इसके बाद मानवजनित प्रदूषण आता है। उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग, अपशिष्टों और खराब स्वच्छता विधियों के कारण पानी की गुणवत्ता बिगड़ती है। तटीय क्षेत्रों में भूजल का अत्यधिक दोहन भी जल प्रदूषण का एक कारण होता है। शहरों और गांवों में पैदा होने वाला अपशिष्ट और उनका अनुचित निपटान भी जल प्रदूषण का एक अन्य कारण है।

तो इस प्रदूषण का अंत कहां हैं? कोई जलभृत (एक्वीफर) एक स्रोत और एक सिंक, एक प्राप्तकर्ता और एक प्रकार का दाता सब कुछ होता है। जहरीले रसायन, भारी धातुएं, उर्वरक अवशेष और रोगजनक व खतरनाक अपशिष्ट, जलभृतों में प्रवेश कर जल स्रोतों को प्रदूषित करने का रास्ता खोज लेते हैं। एक बार दूषित हो जाने के बाद किसी एक्वीफर को बहाल करना और उसकी गुणवत्ता को वापस लाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

भूजल की गुणवत्ता को फिर से बहाल करने के लिए कई प्रकार के निवेश की जरूरत होती है। यह निवेश सामाजिक और आर्थिक किसी भी तरह का हो सकता है। पूरे भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां भूजल प्रदूषण ने लोगों के जीवन और जीविका को प्रभावित किया है।

इसके परिणामस्वरूप उपलब्ध भूजल का एक बड़ा हिस्सा उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है और उपलब्ध होने पर भी जल संकट बढ़ जाता है। भारत सरकार के महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक सभी नागरिकों को पीने योग्य पानी के लिए घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करना है। उससे पहले निरंतर जल आपूर्ति के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल मिले।

इसे जल स्रोतों की नियमित निगरानी और सामुदायिक भागीदारी के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

(लेखकद्वय एडवांस्ड सेंटर फॉर वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट में कार्यरत हैं)

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