जल संकट का समाधान: इस गांव ने पेश की मिसाल, कर रहा है बोरवेल का विरोध

ग्रामीणों ने अपने गांव में बोरवेल करवाने से इंकार कर सरकार और प्रशासन को हैरान कर दिया 

On: Tuesday 11 June 2019
 
बिहार के जमुई जिले के केडिया गांव में कुएं खोदते ग्रामीण। फोटो: पुष्यमित्र

पुष्यमित्र

बिहार के जमुई जिले के केडिया गांव में इन दिनों उत्सव का माहौल है। धड़ाधड़ कुओं की खुदाई चल रही है। बिहार के इस इकलौते जैविक ग्राम में 16 कुओं की खुदाई होनी है। अब तक दो कुएं पूरी तरह तैयार हो चुके हैं, शेष कुओं की खुदाई जारी है। गांव वालों ने ये कुएं सरकार से लड़ कर हासिल किये हैं। सरकार इन्हें दो स्टेट बोरिंग की सुविधा देना चाहती थी, मगर इन्होंने कहा कि हमें कुएं ही चाहिए। बोरिंग से भूमिगत जल का स्तर गिरेगा, इससे कुछ लोगों को तो तात्कालिक लाभ हो जायेगा, शेष लोग वंचित रह जायेंगे। गांव वालों की जिद के आगे बिहार सरकार को झुकना पड़ा और इस गांव में सोलह कुओं की खुदाई की स्वीकृति देनी पड़ी।

गांव के किसान आनंदी यादव कहते हैं, यह सब तीन साल पहले शुरू हुआ जब कृषि विभाग के प्रधान सचिव सुधीर कुमार इस गांव का दौरा करने आये थे। गांव उस वक्त तक पूरी तरह जैविक कृषि को अपना चुका था और इस बात प्रधान सचिव काफी खुश हुए थे। उन्होंने उस वक्त कहा था कि जब आप लोग इतना काम कर रहे हैं तो क्यों न आपको सरकार की तरफ से सिंचाई के लिए दो स्टेट बोरिंग दे दिया जाये। मगर प्रधान सचिव उस वक्त चकित रह गये, जब गांव के लोगों ने एक सुर में स्टेट बोरिंग का विरोध कर दिया और कहा कि अगर हमें कुछ देना ही है तो कुएं दे दें।

इसके बाद गांव के किसानों का सर्वेक्षण हुआ और ज्यादातर किसानों ने कुओं के पक्ष में सहमति जताई, हालांकि सर्वेक्षण के दौरान कुछ किसानों ने स्टेट बोरिंग के लिए हां कह दी और जिला प्रशासन उन किसानों की राय मान कर केडिया गांव में स्टेट बोरिंग लगवाने की तैयारी करने लगा। जब गांव वालों को इस बात का पता चला तो उन्होंने इस योजना का विरोध कर दिया और जिला प्रशासन और राज्य के कृषि विभाग को लिखित आवेदन दिया कि गांव में स्टेट बोरिंग नहीं कुआं ही खुदवाया जाये।

इसके बाद राज्य के कृषि मंत्री प्रेम कुमार भी जब इस गांव में आये तो लोगों ने यह बात उनसे कही। हालांकि इसके बाद भी काम आसानी से नहीं हुआ। उन्हें लगातार राज्य सरकार और जिला प्रशासन से अनुरोध करते रहना पड़ा। तब जाकर गांव के लिए 16 कुओं की स्वीकृति मिली।

आज जब गांव में कुओं की खुदाई हो रही है तो ग्रामीण काफी खुश हैं। किसान सुमंत कुमार कहते हैं कि जब से गांव में जैविक खेती की शुरुआत हुई है, खेती को लेकर हमारा नजरिया ही बदल गया है। जीवित माटी किसान समिति नामक संगठन बनाकर हम लगातार खेती को लेकर नये प्रयोग करते हैं ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बची रहे और हमारी खेती स्थायी बन सके। वे कहते हैं कि सबसे रोचक बात है, जमुई को बिहार में जल संकट वाला इलाका माना जाता है और यहां का जलस्तर सबसे नीचे है। मगर जब हम कुओं की खुदाई कर रहे हैं तब 17 से 22 फीट की गहराई में ही पानी निकल जा रहा है। हमें पानी को समेटना मुश्किल हो रहा है।

13 जून को गुरुवार के दिन राज्य के कृषि मंत्री प्रेम कुमार इन कुओं का शिलान्यास करने केडिया गांव पहुंचने वाले हैं। दिलचस्प बात यह है कि गांव के किसानों ने इन कुओं के लिए राज्य सरकार को 5 डिसमिल जमीन प्रति कुएं की दर से 80 डिसमिल जमीन का दान भी दिया है।

जैविक खेती अभियान से जुड़े इश्तियाक अहमद कहते हैं, जल संरक्षण के लिए मिट्टी का संरक्षण और उसमें जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाना बेहद जरूरी है। इस लिहाज से इस प्रयोग का अपना महत्व है और उम्मीद है कि पूरे राज्य में किसान इसे अपनायेंगे। इससे मिट्टी और पानी का संरक्षण बेहतर ढंग से हो सकेगा।

मेघ पाइन अभियान के जरिये बिहार में जल आत्मनिर्भरता विकसित करने में जुटे एकलव्य प्रसाद कहते हैं कि केडिया में जिस तरह किसान समुदाय की बात मानी गयी है, वह अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि कुआं स्व-प्रबंधन और नियमन वाला सिंचाई का आदर्श साधन है, कल कुएं को कुछ भी हुआ तो किसान किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे, वे खुद उसकी मरम्मत कर सकते हैं। इस बहाने वहां के किसानों की अच्छी सोच भी सामने आ रही है। अगर सरकार तीन-चार के बदले 16 कुएं खुदवा रही है, तो वह विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने की पहल भी है, इस लिहाज से सरकार का यह फैसला भी बेहतरीन है। अगर वहां पानी 17 से 22 फीट पर पानी उपलब्ध है, तो जाहिर है कि कुओं के बारे में हमें फिर से सोचने और इसे अपनाने की जरूरत है। यह सिर्फ केडिया के लिए नहीं, पूरे बिहार के लिए सकारात्मक खबर है। अगर इस अभियान को ठोस तरीके से आगे बढ़ाया जाये तो इसका नतीजा बेहतरीन होगा

राज्य के कृषि विभाग के प्लानिंग एंड साइल कंजर्वेशन, डिप्टी डायरेक्टर संजय कुमार इस प्रयोग को काफी महत्वपूर्ण बताते हैं और कहते हैं कि भले आज किसानों को बोरिंग के जरिये सिंचाई करना पड़ रहा है, मगर देर सवेर राज्य के किसान इस मॉडल को अपनायेंगे।

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