वर्षा के बूंद-बूंद को सहेजने में मदद कर सकता है देवास रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

देशभर में साल भर के 8760 घंटो मे से केवल 100 घंटे ही वर्षा होती है, इसलिए वर्षाजल का संरक्षण बेहद जरूरी है। 

On: Thursday 21 July 2022
 

डॉ पीसी जैन

देश भर मानसून आ गया है तो हमें जन-जन तक वर्षा जल सरंक्षण की विभिन्न तकनीक लोगो तक पहुंचानी चाहिए। ताकि वे उनमे से सस्ती,सरल,सहज तकनीक चुन सकें और जटिल और महंगी तकनीक को छोड़ सके एवं वर्षा जल को भूजल में पहुचाएं क्योंकि भूमिगत जल दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है। देशभर में साल भर के 8760 घंटो मे से केवल 100 घंटे ही वर्षा होती है। वर्षा के जल को हम नालियों में न बहाकर अपने कुएं,बावड़ी, हैण्ड पंप ,बोरवेल में डाले तो हम जल संकट से बच सकते हैं | इसके लिए देवास फिल्टर एक अहम उपकरण हो सकता है। जिससे न सिर्फ वर्षा जल को भूजल के रूप में संरक्षित कर सकते हैं बल्कि 8 महीने तक दोहन और 4 महीने दान किया जा सकता है। 

मानसून जारी है और अगर हम भूमिजल ट्यूबवेल,हैंड पंप,कुएं से भूमि जल निकाल रहे है, तो सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा मान्य यह देवास वाटर फ़िल्टर सबसे तीव्र गति से भूमि जल में वर्षा जल पहुंचाता है यह सबसे सरल सस्ता और सहज तकनीक है। आपर देवास वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को ऐसे समझ सकते हैं। 

इस सिस्टम में छत पर जो बारिश का पानी गिर रहा है जिसे आउटलेट (नाल्दे) (जो छत का पानी नीचे लाता है) के माध्यम से अपने बोरवेल,हैंडपुम्प,कुंआ आदि के पास लाकर इन्हें इस देवास वाटर फ़िल्टर से जोड़ देते है। इसमें आप देख रहे है एक ड्रेन वाल्व है जिसके द्वारा छत की गंदगी के साथ पहली और दूसरी वर्षा को बाहर निकल  जाने देते है ताकि छत की गंदगी फ़िल्टर में न जाये। जब इसमे साफ पानी आने लगता है तब इस वाल्व को बंद कर देते है ताकि अब आने वाले वर्षा का जल फ़िल्टर के माध्यम से बोरिंग में जा सके। आप देख सकते हैं की एक छोटा सा फ़िल्टर जिसमें रेती के छोटे बड़े कण है, जो फ़िल्टर मीडिया है जिसमे होकर पानी जाता है। फ़िल्टर के वर्षा जल को ट्यूबवेल की केसिंग में जोड़ देते है जिस तरह हम मरीज की नस में ग्लूकोस चढ़ा देते हे उसी तरह बोर वेल की केसिंग में इसे जोड़ देते हे ताकि वर्षा जल सीधा ट्यूबवेल के पानी मे मिल जाये।

 

यह बहुत सबसे तीव्र,सस्ती,सरल,सहज तकनीक है जिसे हम पिछले बीस वर्षों में 1500 भवनों में सफलता पूर्वक लगा चुके है।

लाभ

  1. यह वर्षा जल को तुरंत भूजल में पहुंचाता है।
  2. भूजल का स्तर बढ़ाता है
  3. भूजल की गुणवत्ता में भी सुधार होता है जिससे जल जनित बीमारियां कम हो जाती है।
  4. यह विधि सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  5. एक हजार वर्ग फीट की छत पर अगर एक सेंटीमीटर वर्षा हो तो एक हजार लीटर पानी हमारे भूमिजल में जायेगा।
  6. जल स्तर बढ़ने से बिजली भी पानी निकालने में कम खर्च होगी |

सामान्यतया राजस्थान की औसत वर्षा 50 सेंटीमीटर होती है और उदयपुर में औसत छत 2000 वर्ग फीट हो तो एक वर्षा काल में 1 लाख लीटर वर्षा जल भूमिजल में जायेगा। अगर बाजार मूल्य से एक लाख शुद्द जल (1 लीटर पानी की बोतल 20 रूपये) तो यह 20 लाख रूपये का पानी होता हे जो हम भूजल के रूप में संरक्षित कर सकते हैं। रामायण में कहा गया है सत संग की आधी घड़ी सुमिरन वर्षा पचास, बरखा बरसे एक घड़ी रहट फिरे बारह मास.. अर्थात सत संग की आधी घड़ी में जीवन बदल सकता है और एक घंटे की वर्षा साल भर का पानी दे सकती है ।

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