मसूरी झील के आसपास होते निर्माण और पानी के अवैध दोहन पर एनजीटी सख्त

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Monday 24 April 2023
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अधिकारियों को मसूरी झील के आसपास चल रहे व्यावसायिक कार्यों और निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित और नियमित करने का निर्देश दिया है। मामला उत्तराखंड में प्रसिद्ध मसूरी झील से जुड़ा है।

कोर्ट का कहना है कि व्यावसायिक प्रतिष्ठानों द्वारा पानी के अवैध दोहन और कचरे का उचित प्रबंध न किए जाने को रोकने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही अब तक जो नियमों को तोड़ा गया है उसकी जिम्मेवारी तय करने और भविष्य में ऐसा न हो इसकी लिए जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है। 21 अप्रैल, 2023 को दिए अपने आदेश में एनजीटी ने कहा है कि अन्य सभी संबंधित विभागों के साथ उत्तराखंड के मुख्य सचिव द्वारा इसकी समीक्षा की जानी चाहिए और दो महीने के भीतर इसके सुधार के लिए कार्रवाई की योजना तैयार होनी चाहिए।

साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों की विफलता पर भी खेद जताया है जो क्षेत्र में पर्यावरण को बचाने और ऐसी घटनाओं को रोकने और नियमित करने में विफल रहे हैं जो पर्यावरण अनुकूल नहीं हैं। साथ ही कोर्ट ने पिछले मामले में भी कार्रवाई न किए जाने पर रोष जताया है। यह तब है जब इस मामले में 18 मई, 2022, 2 सितंबर, 2022 और 12 जनवरी, 2023 को बार-बार कह चुका है।

कोर्ट का कहना है कि "पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है, व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पानी का दोहन किया गया है इन बातों को स्वीकारा गया है इसके बावजूद इसकी रोकथाम और सुधार के लिए जरूरी कार्रवाई नहीं की गई है। गौरतलब है कि संयुक्त समिति ने अपनी 20 अगस्त, 2022 को जारी रिपोर्ट में कहा था कि इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में होटल झील के जलग्रहण क्षेत्रों जैसे कि झील के पास मौजूद झरने से बिना किसी रोकटोक और नियमों को ध्यान में रखे टैंकरों के जरिए पानी ले रहे हैं।

वहीं एनजीटी ने  2 सितंबर, 2022 को राष्ट्रीय आर्द्रभूमि प्राधिकरण, राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट के साथ उत्तराखंड पेय जल संस्थान के अध्यक्ष की एक संयुक्त समिति की देखरेख में जरूरी उपायों को करने का निर्देश दिया था। हालांकि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 19 अप्रैल, 2023 को सौंपी रिपोर्ट में कहा था कि वहां निजी विक्रेताओं और होटलों द्वारा टैंकरों के जरिए नदी से लिए जा रहे पानी को रोक दिया गया था।

हालांकि जो पानी पहले ही अवैध रूप से निकाला जा चुका है उसके खिलाफ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मापदंडों के अभाव में कोई कार्रवाई नहीं कर सका है। वहीं 282 होटलों में से 176 को मिली सहमति की फिर से जांच की गई है। पता चला है इनमें से 130 होटल ऐसे हैं जिन्हें जल संस्थान द्वारा जो पानी दिया जा रहा है वो इनके लिए काफी है। वहीं 46 ऐसे हैं जिन्हें स्वीकृत से ज्यादा पानी की आवश्यकता है। 

शीशमबाडा प्रोसेसिंग प्लांट से पैदा हो रहे आरडीएफ का नहीं हो रहा उचित निपटान, रिपोर्ट में सामने आई जानकारी

शीशमबाडा प्रोसेसिंग प्लांट की लैंडफिल साइट पर पैदा हो रहे आरडीएफ का निपटान नहीं किया गया था, ऐसे में मैसर्स रामकी एनवायरो एसपीवी और मैसर्स देहरादून वेस्ट मैनेजमेंट प्रा. लिमिटेड के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनके कॉन्ट्रैक्ट को खत्म करने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है।

संयंत्र स्थल पर जमा हुए आरडीएफ का निपटान नहीं करने का मामला अभी भी लंबित है और उनके खिलाफ जुर्माना भी लगाया गया है। यह बातें उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 21 अप्रैल 2023 को अपनी रिपोर्ट में कहीं हैं।

इसके अलावा, संयंत्र के प्रबंधन के लिए एनएसीओएफ को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है जो पैदा हो रहे आरडीएफ को मध्य प्रदेश में बिड़ला सीमेंट के साथ राजस्थान में जे के सीमेंट लिमिटेड और श्री सीमेंट लिमिटेड के पास भेज रहा है। पूरा मामला शीशमबाड़ा, विकास नगर, देहरादून में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रसंस्करण संयंत्र में वैज्ञानिक पद्धति से आरडीएफ का निपटान न किए जाने के साथ-साथ लीचेट के उचित निपटान से जुड़ा है। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट एनजीटी द्वारा  2 अगस्त, 2022 को दिए आदेश पर कोर्ट को सौंपी गई है।

स्नो बाइक के चलते गुलमर्ग में पर्यावरण को हो रहा नुकसान, एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुलमर्ग में वन्यजीव अभयारण्य और इको सेंसिटिव जोन और उसके आसपास स्नो बाइक के उपयोग के मामले की जांच के  निर्देश दिए हैं। मामला जम्मू और कश्मीर के गुलमर्ग का है। इस बारे में 20 अप्रैल 2023 को एनजीटी ने जांच के लिए एसीएस (वन और पर्यावरण) को निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि शिकायतकर्ता मुश्ताक अहमद मलिक ने कोर्ट को बताया था कि स्नो बाइक में पेट्रोल का इस्तेमाल होता है, जिसका पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा है। इतना ही नहीं बाइक का वजन मिट्टी और बर्फ के नीचे की वनस्पति को भी प्रभावित करता है। उनका कहना है कि इस तरह की गतिविधियों के चलते अतिक्रमण और घास के मैदानों को भी नुकसान होता है।

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