जल शक्ति अभियान की हकीकत: सांगारेड्डी से लें सबक

काकातिया मिशन से जल शक्ति अभियान तक, पेडा चेरुवु तालाब के डी-सिल्टिंग से भूजल स्तर बेहतर हुआ है

By Akshit Sangomla

On: Saturday 21 March 2020
 

भारत के जल-संकट क्षेत्र के लिए तेलंगाना के सांगारेड्डी जिले के पास कई समाधान मौजूद है। केंद्र और राज्य सरकार समेत कई सामुदायिक प्रयासों ने वहां भूजल स्तर को बेहतर बनाया है. इसमें पेडा चेरुवु तालाब की डी-सिल्टिंग (नदी तल में जमे मिट्टी-बालू के गाद निकालना) एक महत्वपूर्ण प्रयास था। ये गांव तेजी से शहरीकृत हो रहे और जल-संकट से जूझ रहे पाटनचेरू ब्लॉक में स्थित है. इस क्षेत्र में मिशन काकातिया के तहत चौदह ऐसे तालाब पुनर्जीवित किए गए।

जिले के लकडाराम गांव के एक पशुपालक अनिल कुमार ने कहा, "पेडा चेरुवु तलाब के डी-सिल्टिंग से गांव के बोरवेल से पानी का दबाव बढ़ गया है और अब तो ग्रामीणों ने तालाब में मछली पालना शुरू कर दिया हैं, जिससे उनकी आजीविका के अवसर बढ़ गए।”

राज्य के भूजल विभाग के आंकड़ों के अनुसार, केंद्र सरकार के जल शक्ति अभियान के पहले चरण में इस गांव में भूजल-स्तर बढ गया है. जुलाई 2019 में भूजल-स्तर जहां 19.4 मीटर था, वहीं सितंबर 2019 में 17.53 मीटर तक आ गया. 70 साल पुराने पेडा चेरुवु तलाब को 2016 में राज्य के मिशन काकातिया के तहत डी-सिल्ट किया गया था. इस मिशन को 2019 में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए जेएसए कार्यक्रम में भी शामिल किया गया।

तलाब को डी-सिल्ट करने के लिए, एक कृषि अधिकारी गाद की गुणवत्ता का आकलन करते हैं. यदि गाद कृषि उपयोग लायक हुआ तो इसे आधिकारिक तौर पर कृषि उपयोग के लिए प्रमाणित कर दिया जाता है और फिर किसानों को गाद निकाल कर अपने खेत तक ले जाने के लिए सरकारी सुविधा दी जाती है।

सिंचाई विभाग के उप कार्यकारी अभियंता जी उधय भास्कर राव ने कहा, "जेएसए के तहत जीर्णोद्धार कार्य शुरू करने से पहले ही हम 40 प्रतिशत पेडा चेरुवु तालाब को डी-सिल्ट कर चुके थे.”

2016 में, काकातिया मिशन के तहत तालाब को उसकी पूर्ण क्षमता, 63,000 क्यूबिक मीटर तक विकसित कर दिया गया. कम बरसात के कारण जल स्तर में गिरावट के बावजूद तालाब की क्षमता बढ गई. 2019 में इसकी क्षमता 50,000 क्यूबिक मीटर थी।

लेकिन, जल विशेषज्ञों ने मिशन काकातिया के तहत डी-सिल्टिंग की 'अवैज्ञानिकता' के लिए इसकी आलोचना भी की। हैदराबाद के जल विशेषज्ञ नरसिम्हा रेड्डी दोंथी ने कहा,” "केवल डे-सिल्टिंग और बंड स्ट्रेंथिंग (तालाब के दोनों किनारे मिट्टी की दीवारें) पर्याप्त नहीं है. तालाब जलधारण क्षेत्र के 'तश्तरी' आकार को बनाए रखे बिना, जेसीबी के जरिये ये काम बेतरतीब तरीके से किया जा रहा है।" उचित जलग्रहण क्षेत्र उपचार और कमांड क्षेत्र प्रबंधन की कमी भी एक समस्या है।

जल ही जल 

लकदाराम गांव में जल संरक्षण के कई अन्य उपाय भी आजमाए गए थे. गैर-लाभकारी संस्था अयान फाउंडेशन ने पेड़ लगाए और भूमिगत जल पुनर्भरण के लिए सामुदायिक सोक पिट (सोख्ता) का निर्माण किया। इससे एक सूखा बोरवेल पुनर्जीवित हो गया, जिसका जल-स्तर कभी 250 फीट था।

मनरेगा  फंड का उपयोग गांव में चार चेक डैम बनाने के लिए किया गया. इससे चावल, मक्का और प्याज की खेती का क्षेत्र बढ़ा. मानसून की शुरुआत से लेकर फरवरी के अंत तक इन चेक डैमों में पानी उपलब्ध रहता है।

राज्य सरकार के हरिथाहरम परियोजना के तहत जिला प्रशासन ने वनीकरण के लिए मनरेगा फंड का इस्तेमाल किया है. योजना के तहत 647 ग्राम पंचायतों को 5,000 से 50,000 पौधे दिए जाएंगे. जहां फंड की कमी थी, वहां कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी फंड का इस्तेमाल हुआ।

लेकिन इन सरकारी दावों में कितना दम है? उदाहरण के लिए, जिले में 59 करोड़ से अधिक वनीकरण गतिविधियों का दावा किया गया है. लेकिन, 647 ग्राम पंचायतों में यदि अधिकतम 50,000 पौधे भी लगाए गए हों तो यह संख्या 3.23 करोड़ के आसपास ही होगी।

जुलाई से सितंबर 2019 के बीच, जिले के सभी आठ मंडलों में औसत भूजल स्तर में सुधार हुआ है. हालांकि, ऐसा जेएसए के तहत सूचीबद्ध कार्यों की वजह से हुआ या इस दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून के कारण हुआ, कहना मुश्किल है।

Subscribe to our daily hindi newsletter