एकता के सूत्र में पिरोता सूखा

मानसून के दौरान बारिश की हर बूंद को सहेजने के लिए महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित 1300 गांवों में लोगों ने खुद बनाई वाटरशेड संरचनाएं

By Nidhi Jamwal

On: Thursday 15 June 2017
 
किराकसल गांव में श्रमदान कर जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करते ग्रामीण (निधि जामवाल)

महाराष्ट्र के किराकसल गांव के 400 से भी ज्यादा ग्रामीण हर दिन सुबह 6 बजे ट्रैक्टर-ट्राॅलियों में भरकर आस-पास की पहाड़ियों की ओर निकल पड़ते हैं। पहाड़ी के नजदीक पहुंचकर वे कठोर मिट्टी की खुदाई के काम में जुट जाते हैं। सतारा जिले के सूखा प्रभावित तालुका के अंतर्गत आने वाले किर्कसल गांव के 28 वर्षीय सरपंच अमोल काटकर कहते हैं, “इस वर्ष मानसून के दौरान बारिश की एक बूंद भी जाया नहीं होनी चाहिए, ताकि हम अपने गांव को सूखे से बचा सकें।” जल संग्रहण कार्य के लिए सिर्फ एक माह का समय बचा है। पिछले साल चुने गए सरपंच अमोल का कहना है कि मानसून के दौरान गांव के आस-पास पहाड़ियों से कई नालियां बहती हैं, इसलिए हमने स्वेच्छा से प्रतिदिन तीन घंटे श्रमदान कर जल संग्रह करने के लिए संरचनाओं के निर्माण का फैसला लिया है। इससे न सिर्फ वर्षाजल का संग्रह होगा, कुंओं का जलस्तर बढ़ेगा, भूजल स्तर की भरपाई होगी, मिट्टी का कटाव भी रुकेगा, इसकी नमी बढेगी, बल्कि हमें गर्मी के महीनों में सूखे से निपटने में मदद भी मिलेगी। इस स्वैच्छिक पहल का दिलचस्प पहलू यह है कि इस अवधारणा को लोगों द्वारा बिना किसी सरकारी मदद के योजनाबद्ध तरीके से मूर्त रूप दिया जा रहा है।

किराकसल के ग्राम सभा ने इसी वर्ष जल विभाजन या वाटरशेड प्रबंधन की कार्यप्रणाली अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया है। अमोल ने मार्च महीने में दो महिलाओं सहित चार अन्य ग्रामीणों के साथ नाॅन प्राफिट “पैनी फाउंडेशन” और “स्पर्श सेन्टर फाॅर पार्टिसिपेटरी लर्निंग” के वाटरशेड आर्गनाइजेशन ट्रस्ट द्वारा आयोजित चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया था। प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेनेवाले पंकज काटकर कहते हैं, “हमने समोच्च मानचित्र पढ़ना, वर्षाजल संग्रहण के लिए तैयार की जाने वाली विभिन्न संरचनाओं के निर्माण और इन संरचनाओं में कितना जल संग्रह कर सकते हैं, इसके बारे में सीख लिया है। उदाहरण के तौर पर खड़ी ढ़लान पर पानी की गति और मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए गहरी सीसीटी गड्डे खोदे जाने चाहिए। इसी प्रकार कच्चे बोल्डर या चट्टानों की श्रृंखला का निर्माण फायदेमंद होता है।”

प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले समूह का नेतृत्व करने वाली सविता जाधव कहती हैं कि हम पांचों ने 88 ग्रामीणों के साथ जल प्रबंधन की एक नाॅन प्राॅफिट योजना तैयार की है। इसके लिए हमने 10-15  लोगों के 25 समूहों का गठन किया, जो जल संग्रहण के लिए कार्यों को विभाजित कर चुके हैं। सविता जाधव ने बताया कि खराब काम सिर्फ एक बारिश में संरचनाओं को बर्बाद कर सकती है। इसलिए हर दिन शाम के वक्त युवाओं द्वारा तैयार की गई संरचनाओं की जांच के लिए तीन और समूहों का भी गठन किया गया है।

योजना के अनुसार ग्रामीणों ने दक्षिण-पश्चिमी मानसून के आने से पहले 300 ढ़ीली चट्टानी संरचनाएं, 2,000 घनमीटर समोच्च बांध, 3,000 घनमीटर कम्पार्टमेंट बंडिंग, पांच सीमेंट बांध, 10,000 घनमीटर गहरी सीसीटी और आठ बड़े खेतों में तालाब का निर्माण किया। 22 अप्रैल को जब डाउन टू अर्थ रिपार्टर ने किर्कसल का दौरा किया, तब तक ग्रामीण समोच्च बांध के 500 घनमीटर, कम्पार्टमेंट बंडिंग के 100 धनमीटर और सीसीटी के 50 धनमीटर की 100 ढ़ीली चट्टानी संरचनाओं का निर्माण पूरा कर चुके थे।


किराकसल के उद्धव काटकर ने बताया “दस हजार लीटर पानी के टैंकर की सरकारी कीमत 2,000 रुपए है। हमने श्रमदान कर जहां इसमें आने वाली लागत के 20-25 लाख रुपए बचाए हैं, वहीं एक साल में पानी पर खर्च होने वाले 90 लाख रुपए की भी बचत हुई है। हमें पूरा भरोसा है कि अगले साल से हमें गर्मियों में पानी के टैंकरों के लिए तहसीलदार की मनुहार नहीं करनी पड़ेगी।”

ऐसा नहीं है कि किराकसल प्रदेश का इकलौता गांव हो जिसने वर्षा जल संचयन और वाटरशेड के विकास माॅडल को अपनाया हो। इस वर्ष महाराष्ट्र के 13 जिलों में 1,300 से अधिक गांवों ने सूखे से निपटने के लिए वाटरशेड प्रबंधन को अपनाया है। प्रदेश के जिन पांच हजार से ज्यादा ग्रामीणों ने फरवरी व मार्च में आयोजित जल संचयन और वाटरशेड प्रबंधन के चार दिवसीय प्रशिक्षण में भाग लिया था, उसमें अमोल भी शामिल थे। अमोल ने कहा कि हम सभी गांवों को पानीदार बनाना चाहते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे उन 116 गांवों से प्रेरणा ले रहे हैं जो पिछले साल 1368 करोड़ लीटर जल भण्डारण की विकेन्द्रीकृत क्षमता हासिल कर चुके हैं, जो 272 करोड़ रुपए मूल्य के पानी के 14 लाख टैैंकरों के बराबर है।

सतारा के किराकसल से तकरीबन 50 किलोमीटर दूरी पर बसे कोरेगांव तालुका का वेलू गांव उन गांवों में से एक है जिसने पिछले साल श्रमदान माॅडल के साथ इसका प्रयोग किया था। पिछली गर्मियों तक गांव के 341 परिवार गंभीर जल संकट का सामना कर रहे थे। गांव में सभी कुएं आमतौर पर हर साल जनवरी तक सूखने लगते थे और गांव का जीवन टैंकरों के पानी पर निर्भर हो जाता था। इसलिए ग्रामीणों ने 2016 में अप्रैल और मई के बीच जल संचय करने के लिए संरचनाओं का निर्माण किया और इससे पिछले साल 282 करोड़ लीटर पानी बचाने में मदद मिली। वेलू के ग्रामीण नवनाथ भोंसले कहते हैं कि गर्मियों में पहली बार हमने पानी के टैंकर नहीं मंगाए हैं।

योजना को भी मात
जल संचयन के लिए लोगों द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन पिछले कुछ वर्षो से गंभीर रूप् से सूखे की मार झेल रहे प्रदेश के कई गांवों के लोगों के बीच आशा की किरण लेकर आया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार महाराष्ट्र में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या का ग्राफ देश में सबसे ऊपर है। इसने कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अपंग कर दिया है।  2015 में राज्य में 3,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की जो उस वर्ष भारत में कुल किसान आत्महत्याओं का 37.8 प्रतिशत था। 2019 तक राज्य के सभी गांवों को सूखे से निजात दिलाने के लिए चलाया जा रहा जलयुक्त शिविर अभियान कछुआ चाल से आगे बढ़ रहा है। उदाहरण के तौर पर कुल 186,107 योजनाबद्ध कार्याें में से इस साल 25 मार्च तक केवल 39 प्रतिशत काम ही पूरा हो पाया है। 2014 में शुरू की गई योजना कई अन्य समस्याओं से ग्रस्त है। महाराष्ट्र के राज्य योजाना बोर्ड के अर्थशास्त्री और पूर्व सदस्य एचएम देशारदा कहते हैं, “गांवों में किए गए कार्य ‘रिज टू वैली’ दृष्टिकोण का पालन नहीं करते और वे तात्कालिक एवं अवैज्ञानिक हैं।”

सतारा के कोरेगांव तालुका के एक किसान आबा लाड का कहना है कि सरकारी कार्यक्रम महज वार्षिक लक्ष्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और ठेकेदारों के पक्ष में है। इसलिए गांव में अब तक किसी भी संरचना का निर्माण नहीं हुआ है। साथ ही ग्रामीणों को वाटरशेड प्रबंधन में प्रशिक्षित भी नहीं किया जाता है, इसलिए वे ठेकेदार द्वारा किए गए खराब काम पर सवाल उठाने में असमर्थ हैं। सतारा के डिप्टी कलेक्टर हिम्मत राव खराडे का कहना है, “एक वर्ष में फंडिंग और गांवों की संख्या को कवर करने की सीमाएं हैं। वर्ष 2016-17 में जलयुक्त शिविर अभियान के अंतर्गत कोरेगांव तालुका के 25 गांवों का हमने चयन किया था। इस वित्तीय वर्ष में इसकी संख्या 30 कर दी गई है। इस तरह से एक तालुका को सूखे से निजात दिलाने में पांच से छः साल का समय लगेगा।” उनका मानना है कि जन आंदोलन से ग्रामीण परिदृश्य को तेजी से बदला जा सकता है।

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