पाली की पत्थर खदानों में 80 करोड़ लीटर पानी‌, टीडीएस कम करके होगी सप्लाई

पाली की प्यास पत्थर की खदानों से निकलने वाला पानी बुझाएगा, अकेले पाली के आसपास की खदानों से वर्तमान में 60 लाख लीटर पानी निकाला जा रहा है।

By Anil Ashwani Sharma

On: Wednesday 15 June 2022
 
फोटो-  राजस्थान के पाली जिले के सोवनिया गांव स्थित पत्थर की खदानों में संग्रहित पानी को पाली जिले के विभिन्न इलाकों तक पहुंचाने के लिए प्रशासनिक कर्मचारी मुआयना करते हुए, रुद्रप्रताप

पिछले दो दशक के दौरान राजस्थान का पाली जिला यानी पानी संकट का पर्याववाची बनते जा रहा है। कुएं, ट्यूबवेल, नहर, बांध यहां तक पिछले बीस सालों में पाली देश का एक मात्र ऐसा जिला है, जहां कुल पांच-पांच बार पानी ट्रेन से पहुंचाने की नौबत आई है। वर्तमान में यह ट्रेन चल रही है। लेकिन इन तमाम जल संसाधनों ने अब तक पालीवासियों का हलक पूरी तरह से तर कर पाने में सफल नहीं हो पाए। अब पाली निवासियों का हलक तर करने के लिए पत्थर की खदानों से निकलने वाले पानी को जिले के ग्रामीण और शहरी इलाकों में पहुंचाने की कवायद प्रशासन ने पहली बार शुरू की है। जिले के न्यायिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह कहते हैं कि प्रशासन हो या सरकार प्सासे इलाकों में पानी पहुंचाने की अपनी ओर से हर प्रकार की कोशिश करती है लेकिन प्सासे इलाकों में पहुंचाने वाला पानी अधिकत शहरियों के हिस्से में ही जाता है। वह कहते हैं कि यह बहुत बड़ी विडंबना है कि पानी की किल्लत सबसे अधिक शहर के मुकाबले गांव में अधिक है लेकिन जो भी सरकारी योजनाओं को तैयार किया जाता है कि उसमें शहरी पहले नंबर पर आ जाते हैं। पानी के बटवारे से अधिक महत्वपूर्ण है कि उसका समान मात्रा में वितरण हो, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो रहा है।

यदि इसे आंकड़ों में समझने की कोशिश करें तो पाली की तीन पत्थर खदानों से निकलने वाले की क्षमता इतनी है जितनी रेल के माध्यम से पानी प्रतिदिन पाली वर्तमान में पहुंच रहा है यानी छह एमएलडी। हालांकि ट्रेन कभी-कभार ही छह एमएलडी पानी ढोती है, नहीं तो वह दो ही चक्कर लगाकर इतिश्री कर लेती है और इसका मतलब है कि चार एमएलडी पानी।

प्रशासन का दावा है कि इन खदानों में इतना पानी है कि अगले दो माह तक पाली की प्यास बुझाई जा सकती है। प्रशासन का कहना है कि इन खदानों में लगभग 80 करोड़ लीटर पानी मौजूद है। और वर्तमान में लगभग 60 लाख लीटर पानी निकाला भी जा रहा है। इस पानी की सबसे बड़ी मुसीबत है कि इसका टीडीएस बहुत अधिक है। इसलिए इस पानी को वर्तमान में टैंकर से निकाल कर ट्रीटमेंट प्लांट ले जाना होता है और इसके बाद इसकी सप्लाई होती है। हालांकि जिले के कलेक्टर नमित मेहता ने डाउन टू अर्थ का बताया कि फिलहाल ये खदानें हमारे लिए एक बड़ा जल स्त्रोत के रूप में सामने आई हैं। और हम इसका पूरी तरह से दोहन करने की योजना को अंतिम रूप दे रहे हैं।

उनका कहना है कि वर्तमान में हम इन खदानों से 60 ये 100 लाख लीटर पानी निकाल रहे हैं। उनका कहना है कि खदानों से लेकर ट्रीटमेंट प्लांट तक के लिए पाइप लाइन भी बिछाई जा रही है। क्षेत्र के भूगर्भ विज्ञानी प्रोफेसर अरुण कुमार बताते हैं कि पत्थर की खदानों से पानी लेना तो ठीक है लेकिन इसका टीडीएस देखना ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस पानी का ट्रीट किए बिना उपयोग करना संभव नहीं है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि पाली के आसपास करोड़ों रुपए का पत्थर, मार्बल, लिग्नाइट व अन्य खनिज देने वाली खदानें अब पेयजल की समस्या को भी दूर करेंगी। हालांकि इसकी शुरुआत पाली के जलदाय विभाग ने 15 दिन पहले से ही शुरू कर दी थी लेकिन नियमिततौर पर पानी की सप्लाई शीघ्र ही शुरू होगी।  पाली शहर से दस किलोमीटर दूर सुवानियां व मानपुर की नाडी खदानों में लगभग 100 फीट तक गहराई तक भरे बारिश के करोड़ों लीटर पानी को पाइपों के जरिए पाली शहर स्थित फिल्टर प्लांट तक लाकर पानी को पेयजल बनाया जाएगा। वर्तमान में दोनों खदानों से प्रतिदिन 3 एमएलडी यानी 30 लाख लीटर पानी निकाले जाने की बात कही गई है। विज्ञानियों का कहना है कि दोनों खदानों में इतना पानी है कि जून माह के अंत तक आसानी से प्रतिदिन तीन एमएलडी निकाला जा सकता है। दो दिन बाद जयपुर-पाली हाइवे के पास स्थित जाड़न गांव की खदान से भी तीन एमएलडी पानी लेना शुरू कर दिया जाएगा। 

पत्थर की खदानों से पानी लेना पाली में पहली बार नहीं हुआ है। पूर्व में इस पानी को ग्रामीण अपनी क्षमताओं के अनुसार उपयोग किया करते थे हालांकि तब वे बिना ट्रीट किया हुआ पानी ही उपयोग करते थे। अब सरकारी तौर पर इस पानी का उपयोग शुरू हुआ है। अकेले राजस्थान में ही पत्थर की खदानों से पानी का उपयोग नहीं किया गया है। इसके पहले झारखंड के आदिवासी बहुल पाकुड़ जिले में भी पत्थर की खदानों में जमा पानी को किसानों के खेतों तक ले जाने की सफल कोशिश हुई है। 

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