दुनिया भर में 80 फीसदी से अधिक खेती की जमीन को होगी पानी की कमी

पानी की आपूर्ति में कमी के कारण लगभग 60 फीसदी कृषि भूमि में नहीं हो पाएगी खेती

By Dayanidhi

On: Friday 06 May 2022
 

जलवायु में हो रहे बदलावों के कारण पानी की उपलब्धता पर इसके बुरे प्रभाव पड़े हैं, परिणामस्वरूप दुनिया के कई क्षेत्रों में फसल उत्पादन में समस्या उत्पन्न हुई है।

पिछले 100 वर्षों में दुनिया भर में पानी की मांग लोगों की आबादी की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ी है। कृषि के साथ हर महाद्वीप पर पानी की कमी पहले से ही एक गंभीर मुद्दा है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है।

अब एक नए अध्ययन में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया के 80 फीसदी से अधिक खेती की जाने वाले इलाकों में पानी की भारी कमी होने के आसार हैं। यह नया अध्ययन वैश्विक कृषि के लिए वर्तमान और भविष्य के पानी की आवश्यकताओं के बारे में पता लगता है। अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया है कि बारिश से सिंचाई के लिए उपलब्ध पानी का स्तर जलवायु परिवर्तन के तहत उन जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा या नहीं।

ऐसा करने के लिए शोधकर्ताओं ने कृषि के दो प्रमुख स्रोतों में पानी की कमी को मापने और अनुमान लगाने के लिए एक नया सूचकांक बनाया है। मिट्टी में पानी जो बारिश से आता है, जिसे ग्रीन या हरा पानी कहा जाता है, नदियों, झीलों और भूजल से सिंचाई में उपयोग होने वाले को नीला पानी कहा जाता है।

दुनिया भर में इस व्यापक सूचकांक को लागू करने और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप दुनिया भर में नीले और हरे पानी की कमी के बारे में जांच पड़ताल करने वाला यह पहला अध्ययन है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता जिंगकाई लियू ने कहा कि नीले और हरे दोनों जल संसाधनों के सबसे बड़े उपयोगकर्ता के रूप में, कृषि उत्पादन को अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लियू, चीनी विज्ञान अकादमी के भौगोलिक विज्ञान और प्राकृतिक संसाधन अनुसंधान संस्थान के एक सहयोगी प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा यह सूचकांक एक सुसंगत तरीके से वर्षा आधारित और सिंचित दोनों फसलों में कृषि जल की कमी का आकलन करने में सक्षम है।

कृषि के साथ हर महाद्वीप पर पानी की कमी पहले से ही एक गंभीर मुद्दा है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पेश कर रहा है। इसके बावजूद, अधिकांश पानी की कमी वाले मॉडल नीले और हरे दोनों तरह के पानी पर व्यापक नजर डालने में अभी तक विफल रहे हैं।

हरा पानी या ग्रीन वाटर वर्षा जल का वह भाग है जो मिट्टी में पौधों के लिए उपलब्ध होता है। अधिकांश वर्षा हरे पानी के रूप में मिट्टी में मिल जाता है, लेकिन इसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है क्योंकि यह मिट्टी में दिखता नहीं है। इस पानी को अन्य उपयोगों के लिए भी नहीं निकाला जा सकता है।

फसलों के लिए उपलब्ध हरे पानी की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि उस क्षेत्र में कितनी वर्षा होती है और पानी के बहने और वाष्पीकरण के कारण कितना पानी नष्ट होता है। खेती के तरीके, क्षेत्र को कवर करने वाली वनस्पति, मिट्टी के प्रकार और इलाके की ढलान का भी प्रभाव हो सकता है।

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के तहत तापमान और वर्षा के पैटर्न में बदलाव होता है और बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए खेती करने के तरीके भी बढ़ रहे हैं, फसलों के लिए उपलब्ध हरे पानी में भी बदलाव आने के आसार हैं।

अलबामा विश्वविद्यालय में सिविल, निर्माण और पर्यावरण इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर मेसफिन मेकोनेन ने कहा कि खेती की जाने वाले इलाकों में पानी की उपलब्धता किस समय में कितनी होगी इस पर जलवायु का असर भी पड़ेगा।

उन्होंने कहा जो बात इस अध्ययन को दिलचस्प बनाती है, वह नीले पानी और हरे पानी दोनों को ध्यान में रखते हुए पानी की कमी का सूचकांक विकसित करना है। अधिकांश अध्ययन अकेले नीले पानी वाले संसाधनों पर गौर करते हैं, हरे पानी पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक कृषि में पानी की कमी 84 फीसदी तक खेती की भूमि को बर्बाद कर सकती है, पानी की आपूर्ति में कमी के कारण लगभग 60 फीसदी खेती की भूमि में कमी हो जाएगी।

क्या हैं समाधान?

उपलब्ध हरे पानी में परिवर्तन, बदलता वर्षा पैटर्न और उच्च तापमान के कारण होने वाला वाष्पीकरण, अब वैश्विक खेती की जाने वाली भूमि के लगभग 16 फीसदी  को प्रभावित करने का अनुमान है। पानी की कमी के बारे में महत्वपूर्ण आयाम को जोड़ने से कृषि जल प्रबंधन पर प्रभाव पड़ सकता है।

उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर चीन और अफ्रीका के साहेल में अधिक बारिश होने का अनुमान है, जिससे कृषि जल की कमी को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, मध्य-पश्चिमी अमेरिका और उत्तर-पश्चिम भारत में कम वर्षा के चलते खेती करने के लिए सिंचाई में वृद्धि हो सकती है

नया सूचकांक देशों को कृषि जल की कमी के खतरे और कारणों का आकलन करने और भविष्य के सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए रणनीति विकसित करने में मदद कर सकता है।

कई प्रथाएं कृषि जल के संरक्षण में मदद करती हैं। मल्चिंग या मिट्टी को घास-पात से ढकने से वाष्पीकरण को कम किया जा सकता है। खेती में उपयोग होने वाले पानी को सही समय के अनुसार दिया जाना चाहिए।

फसल की रोपाई  के समय को समायोजित करने से बारिश के बदलते पैटर्न के साथ फसल की वृद्धि को बेहतर ढंग से संरेखित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, समोच्च खेती, जहां किसान समान ऊंचाई वाली पंक्तियों में ढलान वाली भूमि पर मिट्टी तक पानी के बहाव और मिट्टी के कटाव को रोकते हैं।

लियू ने कहा भविष्य को देखते हुए सिंचाई के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना चाहिए, उदाहरण के लिए अफ्रीका में बढ़ती भोजन की मांग को पूरा करने तथा इस पर पड़ने वाले भविष्य के जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए बेहतर सिंचाई प्रणालियों को लागू किया जाना चाहिए। यह अध्ययन एजीयू जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुआ है।

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