पाली में पानी का संकट : तीन लाख शहरियों के लिए ट्रेन से और 20 लाख ग्रामीणों के लिए ‌‌टैंकर से हो रही आपूर्ति

राजस्थान के पाली जिले के 1033 गांवों के ग्रामीणों का हलक सूख गया है। उनके गांवों में दो दशक का सबसे बड़ा संकट जारी है। 

By Anil Ashwani Sharma

On: Wednesday 08 June 2022
 
फोटो: राजस्थान के पाली जिले के एक गांव में जल स्त्रोत के पास पानी लेने के लिए जुटे ग्रामीण, द्वारा - रुद्र प्रताप

तीन लाख शहरियों के लिए ट्रेन से पानी पिछले दो दशक में पांचवीं बार पिछले सवा माह से पहुंचाया जा रहा है जबकि जिले के 1033 गांव के 20 लाख ग्रामीणों के लिए पानी पिछले दो दशक से टैंकरों से पहुंचाया जाता है। और ऊपर से यह नियमित रूप से नहीं पहुंच पा रहा है। यही नहीं यह पानी मीठा न होकर अधिकतर खारा होता है। हालांकि जिलाधिकारी का कहना हैं कि पूरे जिले में पानी का संकट नहीं है, केवल पाली शहर और रोहट तहसील के 79 गांवों में ही है।

सरकारी इश्तहारों में छपे पानी के आंकड़ों को देखें तो राज्य में कहीं पानी का संकट नहीं है। जल ही जीवन है और पानी की एक-एक बूंद एक-एक जिंदगी है। यह बात राजस्थान के पाली जिले के 1033 गांवों पर पिछले दो दशकों से सच साबित होते आ रहा है। जी हां यह पाली वही शहर जहां पिछले दो दशक में एक बार नहीं बल्कि कुल पांच बार ट्रेनों से पानी पहुंचाकर लोगों की प्यास बुझाने की कोशिश की गई है। और वर्तमान में भी पिछले 21 अप्रैल, 2022 से यहां पानी ट्रेन के माध्यम से लगातार पहुंचाया जा रहा है लेकिन इसके बावजूद हालात सुधरने की जगह और बद से बदतर होते जा रहे हैं। क्योंकि ट्रेन की सप्लाई के बावजूद पाली के शहरी इलाकों में पानी सात दिन में या कहें कि सवा दो सो घंटे में केवल एक घंटे ही मिल पा रहा है। और दूसरी ओर जिले के 1033 गांवों के लगभग 20 लाख ग्रामीणों को तो इस ट्रेन के पानी का एक बूंद भी पिछले दो दशक से नसीब नहीं हुआ। ट्रेन से पानी की सप्लाई केवल पाली शहर के तीन लाख निवासियों लिए है। इस संबंध में वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र कुमार बताते हैं कि इस बार पानी का संकट जिले में पिछले दो दशक का सबसे भयावह है।

कैसे पहुंचता है पानी गांवों में

ऐसे में यह एक यक्ष प्रश्न है कि जिले के 1033 गांवों में पीने का पानी कैसे पहुंचता है। जहां तक प्रशासन की बात है, उसका दावा है कि वह रोहट के 79 गांवों में प्रतिदिन लगभग 150 टैंकरों से पानी की सप्लाई कर रहा है। लेकिन बचे गांवों में गैर सरकारी संगठन और निजी क्षेत्र के टैंकरों का ही आसरा है। हालांकि गांव में टैंकर जा कर खड़ा नहीं होता है बल्कि गांवों में बनी पानी की टंकी में पानी डाला जाता है। इसके बाद पूरा गांव इस पानी को पाने लिए उमड़ पड़ता है। टैंकर से पहुंचने वाला पानी भी बहुत खारा होता है। पाली के ग्रामीण इलाकों पानी पहुंचाने के लिए 2002 में कुडी-रोहट के बीच बिछी करीब 40 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन से पानी पहुंचता था लेकिन पाइप लाइन का रख-रखाव ठीक से नहीं होने के कारण यह काफी जगह से सड़-गल चुकी है और इसकी मरम्मत का काम चल रहा है। पाली जिले में पानी का संकट इस बार इतना अधिक है कि जिले के आसपास की पत्थर की खदानों से भी पानी लिया जा रहा है। इस संबंध में जिलाधिकारी नमित मेहता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इन पत्थर की खदानों की गहराई लगभग डेढ़ सौ फीट होती है, ऐसे में इन खदानों में निकलने वाले पानी का भी हम इस बार बड़ी मात्रा में उपयोग कर रहे हैं।   

पाली की किल्लत से हालात इतने खराब हो रहे हैं कि पानी के लिए कई गांवों में ग्रामीणों ने तालाब के बीच गड्डा खोदकर कुएं का रूप देकर उससे पानी निकालकर अपनी व मवेशियों की प्यास बुझा रहे हैं। इसके अलावा गांव के आसपास जहां कहीं भी छोटे गड्डे में जहां-तहां मटमैला पानी दिख जाए, महिलाएं इसकी जुगत में जुट जाती हैं। खुटानी गांव निवासी ओमप्रकाश वैष्णव बताते हैं कि दूसरी जगह पानी नहीं है और सरकारी टैंकर पर हमें भरोसा नहीं है कि कब आएगा। ऐसे में हम ग्रामीण सभी प्रकार की परवाह छोड़ इसी पानी को पीने व जुटाने में जुट जाते हैं। इस पानी के पीने से शरीर में क्या दुष्परिणाम होंगे, यह पता नहीं है, लेकिन ऐसा पानी पीना अब हमारी मजबूरी बनती जा रही है। जिले के गिरादड़ा, रूपावास, राऊ नगर, भाटो की ढाणी, मुलियावास, दयालपुरा, गुरड़ाई, भांवरी सहित आसपास के गांवों में पानी की भारी किल्लत है। टैंकर के पानी को लेकर यहां आए दिन ग्रामीणों के बीच झगड़े हो रहे हैं।

प्रशासन का कहना है कि जिले के पाली शहर और रोहट तहसील के 79 गावों में पीने के पानी का भारी संकट है। हालात ये हो गए हैं कि मवेशियों के लिए बनाए गए पानी के हौद के बाहर लोग पहरेदारी कर रहे हैं। जिले के चौरई इलाके में लोग मजदूरी छोड़कर पानी के टैंकरों का इंतजार करते हैं। रोहट क्षेत्र के इन गांवों में लोगों के हलक तर करने के लिए घंटों तक टैंकर के इंतजार में बिताना पड़ रहा है। क्योंकि क्षेत्र में निजी टैंकरों के भाव भी आसमान छू रहे हैं। वे हर किसी के बजट में नहीं हैं। निजी टैंकर चालक मीठे पानी के एक टैंकर का 700 से 800 रुपये लेता है। इसके चलते लोगों को सरकारी टैंकर का इंतजार रहता है। महिलाओं का कहना है दिन भर घर के लिए पानी का जुगाड़ करना अब रोहट के ग्रामीण महिलाओं की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। पानी चाहे कितना भी खारा और गंदा क्यों ना हो काम उसी से चलाना पड़ता है। बड़े बर्तन और केन में पानी भर लिया जाए तो उसको घर तक लेकर जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं तो ऐसे में महंगा पेट्रोल खर्च करके  दुपहिया वाहनों से भारी बर्तनों को लेकर जाने के लिए मजबूर हैं।

रोहट के 79 गांव पूरी तरह से सरकारी टैंकर से मिलने वाले पानी पर निर्भर हैं। पाली के समाजिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह बताते हैं कि मानसून मेहरबान होता है तो वर्ष के चार महीनों में पानी की इतनी मारामारी नहीं होती। लेकिन शेष आठ माह में पेयजल संकट से ग्रस्त गांवों में रहने वाले लोगों को पानी खरीद कर ही पीना पड़ता है। अमीर हो या गरीब, पश्चिमी रेगिस्तान के पेयजल संकटग्रस्त गांवों में पानी सभी को खरीदना पड़ता है। तीन से चार हजार भराव क्षमता वाले एक ट्रैक्टर टेंकर की कीमत पानी उपलब्धता वाले स्त्रोत से दूरी, पानी के संकट की गंभीरता तथा पानी की गुणवत्ता के आधार पर 300 रुपये से लेकर अधिकतम 800 रुपये तक होती है। वह बताते हैं कि गर्मी के मौसम यह कीमत प्रति टैंकर 100 रुपए से 300 तक बढ़ जाती है। पानी के उपभोग की कंजूसी के बाद भी एक सामान्य पांच-छ: सदस्यों एवं एक-दो पशु रखने वाले परिवार को प्रति माह एक टेंकर पानी खरीदना पड़ता है। प्रति माह पानी की उपलब्धता के लिये 300 से 800 रुपये प्रति परिवार खर्च की जाने वाली यह राशि शहरों में सरकारी पेयजल योजनाओं से पानी उपभोग करने वाले परिवारों से कई गुना अधिक है जबकि पानी कई गुना कम मिलता है। तीन से चार हजार लीटर पानी की कीमत 300 से 800 रुपये खर्च करने वाले परिवार के प्रति सदस्य को प्रतिदिन 20 लीटर पानी उपभोग के लिये हिस्से में आता है। दूसरी तरफ इसी रेगिस्तानी शहर जोधपुर में 100 से 150 रुपये प्रतिमाह खर्च करने पर शहरी लोगों को सरकारी योजनाओं से असीमित पानी उपलब्ध होता है।

जिले के गांव ढाबर के ग्रामीणों का कहना है कि मानसून के 4 महीनों में हम अपने टांकों में बरसात का पानी एकत्रित कर काम चलाते हैं। गांव के ही विक्रम सिंह बताते हैं कि इसके अतिरिक्त 8 महीने में प्रतिमाह एक टेंकर पानी खरीदना ही पड़ता है। प्रतिमाह 300 से 400 रुपये यानी वर्ष में लगभग चार हजार रुपये का पानी खरीदना पड़ता है। गैर सरकारी संगठन सेवा समिति के अध्यक्ष प्रमोद जेठलिया कहते हैं कि गांव में पेयजल वितरण में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। ग्रामीणों को अपनी आय का बहुत बड़ा हिस्सा पानी के लिये खर्च करना पड़ता है। वह बताते हैं ग्रामीण इलाकों में पशुओं की हालात बहुत अधिक खराब है इसलिए हम अपने टैंकर का पानी का ग्रामीण को देने अलावा पशुओं के लिए भी अलग से दे रहे हैं। हमने रोहट क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में पानी पहुंचा रहे हैं और मैं तो यह कहना चाहूंगा कि इन ग्रामीण इलाकों प्रशासन के मुकाबले गैर सरकारी संगठन की भूमिका अधिक असरकारक है। वहीं जिले के भीषण जल संकट के लिए जिलाधीश जवई बांध में पानी के खत्म होने को सबसे बड़ा कारण मानते हैं। उनका कहना है कि बांध का पानी 2020 से अब तक चला। यह पाली का सबसे बड़ा जल स्त्रोत है और इसमें पानी नहीं होने से ही यह संकट पैदा हुआ है।

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