उत्तराखंड में हिमपात का 25 साल का रिकाॅर्ड टूटा, ग्लेशियर हुए रिचार्ज

पश्चमी विक्षोभ हिंदू कुश की पहाड़ियों के ऊपर से कई बार मध्य एशिया की ओर भी मूवमेंट कर देता है। लेकिन इस बार इसका मूवमेंट ज्यादा हिमालय की ओर है

By Manmeet Singh

On: Thursday 09 January 2020
 
उत्तराखंड के टिहरी इलाके में गिरी बर्फ से ढकी कार। फोटो: मनमीत सिंह

उत्तराखंड की पहाडियों में इस बार रिकाॅर्ड बर्फबारी हुई है। ग्लेशियरों में इस बार अभी तक लगभग 54 फीट तक बर्फ की मोटी चादर बिछ चुकी है। आगे भी 13 और 14 जनवरी को फिर से भारी हिमपात होने की संभावना जताई गई है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, 25 साल पूर्व 1995 में 1000 मीटर की उंचाई तक हिमपात हुआ था। उसके बाद सन 2000 में 1200 मीटर तक हिमपात हुआ। वहीं इस बार फिर से 1000 मीटर तक हिमपात हुआ है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमपात मेें हुई बढोतरी का मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बेंस) का सर्दियों में उत्तराखंड की तरफ ज्यादा मूवमेंट है।
 
पिछले एक दशक से उत्तराखंड में ग्लेशियरों के पिघलने की रफ़तार तेजी से बढ रही थी। लेकिन पिछले और इस साल मौसमी चक्र ने इस रफ्तार को थाम लिया है। बर्फबारी का सामान्य अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केदारनाथ में अमूमन हर साल लगभग 30 से 35 फीट तक बर्फबारी होती थी। लेकिन 2019 में 54 फीट हिमपात हुआ। वहीं इस बार ये आकंड़ा और ऊपर जाने का संभावना है। क्योंकि जनवरी में ही केदारनाथ में कुल 40 फीट से ज्यादा हिमपात हो चुका है।
 
वाडिया हिमालय भू-वैज्ञानिक संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक व ग्लेशियर विषेशज्ञ डा डीपी डोभाल बताते हैं कि हम पिछले साल से हिमालय में पड़ रही ज्यादा बर्फबारी को मानिटरिंग कर रहे हैं। ये एक नया तरह का पैटेर्न है। मौसम ने इस बार भी इसका दोहराया है। अगर अगले पांच सालों तक हिमपात ऐसा ही होता रहा तो ये हिमालय के ग्लेशियरों में नई जान फूंक देगी। जो पूरे भारत के जलवायू और मौसम के लिये अच्छा संकेत साबित होगा।
 
मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं मौसम का चक्र पिछले साल से बदला है। पिछले साल को अगर छोड़ दिया जाये तो उत्तराखंड में हिमपात 1800 मीटर तक ही सिमट गया था। लेकिन पिछले साल और इस साल हिमपात 1100 मीटर तक हुआ है। उत्तरकाशी में बड़कोट, पुरौला, त्यूणी, नई टिहरी में भागीरथी पुरम और देहरादून में ही मसूरी के काफी नीचे तक हिमपात हुआ है। पिछले साल मार्च तक हिमपात हुआ था। लेकिन इस साल जनवरी सात और आठ के हिमपात में ही भारी हिमपात हुआ है।
 
अभी कुछ दिन धूप रहेगी और 13 और 14 जनवरी को फिर से हिमपात होने की संभावना है। इस साल पिछले साल का भी रिकाॅर्ड टूट सकता है। क्योंकि मार्च तक कई बार हिमपात होने की संभावना है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि उत्तराखंड में नब्बे प्रतिशत तक बारिश और हिमपात पश्चिमी विक्षोभ के कारण होता है। पश्चिमी विक्षोभ भू-मध्य सागर से उठता है और बादल बनकर हिमालच की पहाडियों से टकराता है। जिसके बाद उच्च हिमाचल और मध्य हिमालय को अच्छी बारिष और हिमपात मिलता है। पश्चमी विक्षोभ हिंदू कुश की पहाड़ियों के ऊपर से कई बार मध्य एशिया की ओर भी मूवमेंट कर देता है। लेकिन इस बार इसका मूवमेंट ज्यादा हिमालय की ओर है।
 
उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के निदेशक प्रो एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि उत्तराखंड में पिछले साल से मौसमी चक्र में हुए बदलाव के कारण जो हिमपात हुआ। उससे राज्य में हिमपात का कैचमेंट एरिया बढा है। हमने इस पर सैटेलाइट मैपिंग के जरिये रिसर्च किया है। धौलीगंगा बेसिन, गंगा बेसिन, यमुना बेसिन, गौरीगंगा बेसिन और अलकनंदा बेसिन में 20 प्रतिषत तक बर्फ का कैचमेंट एरिया बढा है।

कई इलाकों में 25 साल बाद हिमपात
राज्य के कई इलाकों में 25 साल बाद हिमपात हुआ है। इसमें मुख्य रूप से टिहरी और उत्तरकाशी के गांव है। टिहरी में मुसान गांव में 25 साल बाद हिमपात हुआ। जबकि उत्तरकाशी के बडकोट में भी आखिर बार हिमपात 1998 में हुआ था। मसूरी में इस बार डेढ फीट तक हिमपात हुआ। आखिरी बार सन 2000 में मसूरी में इतनी बर्फबारी हुई थी। 2014 में एक फीट हिमपात हुआ था। नैनीताल में भी 15 साल पूर्व ऐसा हिमपात हुआ था। मुक्तेस्वर और धानाचुली में भी रिकाॅर्ड हिमपात हुआ है।

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