प्रचंड गर्मी सतह से चुरा लेती है करीब 2 लाख लोगों के साल भर का साफ पानी

संकट बहुत गहरा हो चुका है। हमारे देश में इतना ही भू-जल बचा है कि  दिल्ली जैसे मेट्रो शहर की 27 लाख आबादी एक दिन में उसे खत्म कर सकती है।  

By Vivek Mishra

On: Thursday 30 May 2019
 

प्रचंड गर्मी और भीषण लू का यह मौसम सिर्फ जानलेवा नहीं है बल्कि यह स्वच्छ जल की उपलब्धता के लिए भी संकट है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण न सिर्फ वातावरण का ताप बढ़ रहा है बल्कि सतह भी अत्यधिक गर्म हो रही है। इसके चलते देेश में सालाना वर्षा से हासिल होने वाले औसत 4000 अरब घन मीटर साफ पानी का बड़ा हिस्सा भाप बनकर उड़ जाता है। यदि इसे आंकड़ों में समझें तो करीब 1.91 लाख लोग जितना पानी साल भर में पीते हैं (2131 अरब घन मीटर ) उतना ही पानी इस वक्त भाप बनकर उड़ रहा है। वैपोरेशन लॉस यानी मीठे पानी के भाप बनकर उड़ने की प्रक्रिया में काफी वृद्धि हुई है। यह कुल साल भर के बरसात के पानी का पचास से भी ज्यादा फीसदी है। अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या और वर्षा जल की बर्बादी के कारण भविष्य में स्वच्छ जल का संकट और गहरा हो सकता है।

डाउन टू अर्थ की ओर से 23 मार्च, 2018 को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक देश के भीतर 16.3 करोड़ से अधिक लोग स्वच्छ जल से महरूम हैं। स्वच्छ जल के लिए लोगों की निर्भरता वर्षा और भूमिगत जल पर ही है। देश में प्रत्येक वर्ष करीब 4000 अरब घन मीटर वर्षा जल हमे मिलता है। पहले इस बारिश का वितरण समान था, अब यह असमान हो गया है। कभी रेगिस्तान में बाढ़ तो कभी बाढ़ग्रस्त इलाके में सूखा इसका ही परिणाम है। ऐसी स्थिति में (वैपोरेशन लॉस) यानी तेजी से स्वच्छ जल का भाप बनकर उड़ना बेहद चिंताजनक है। 

20 जुलाई, 2017 को सरकार की ओर से नेशनल कमीशन ऑन इंटीग्रटेड वाटर रिसोर्स डेवलपमेंट (एनसीआईडब्लयूआरडी) रिपोर्ट के आधार पर भारत में पानी की उपलब्धता का आंकड़ा जारी किया गया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्षा से हासिल होने वाले 4000 अरब घन मीटर सालाना पानी में करीब 2131 अरब घन मीटर पानी भाप बन जाता है। वहीं,  इसके बाद शेष 1869 अरब घन मीटर पानी मेंं सिर्फ 1123 अरब घन मीटर पानी सालाना हमारे पीने के लिए बचता है। इस 1123 अरब घन मीटर पेयजल में 699 अरब घन मीटर पानी सतह पर और 433 घन मीटर पानी भूमि जल के रूप में रहता है। 

वैपोरेशन लॉस यानी साफ पानी के भाप बनने की प्रक्रिया में तेजी आई है इसका संकेत इससे भी मिल सकता है कि पुणे स्थित बीएआईएफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन के एनजी हेगड़े ने अपने शोध पत्र वाटर स्कैरिटी एंड सिक्यूरिटी इन इंडिया (2006) में बताया  था कि भारत में 4000 अरब घन मीटर में करीब 1100 अरब घन मीटर पानी भाप बन कर उड़ता है। यदि सरकार के 2017 के आंकड़े पर गौर करें तो इस वक्त 4000 अरब घन मीटर में 2131 अरब घन मीटर पानी भाप बन कर उड़ जाता है। वर्षाजल का 50 फीसदी से भी ज्यादा। 

सिर्फ सतह पर मौजूद साफ पानी का संकट नहीं है बल्कि भू-जल की स्थिति अत्यंत दयनीय है। एनजीटी में बीते वर्ष (2018 में) केंद्र की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में सरकार ने बताया था कि देश के भीतर 2009 में जहां 2700 अरब घन मीटर भूमिगत जल था वहीं अब 411 अरब घन मीटर भूमिगत जल ही धरती के नीचे बचा है। यह गिरावट की बेहद ही भयावह तस्वीर है। तय मानकों के तहत मेट्रो शहर में प्रति व्यक्ति 150 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति जल की आपूर्ति होती है। यदि इसी मानक पर बचे हुए भूमिगत जल को इस्तेमाल करें तो दिल्ली जैसे मेट्रो शहर की 27 लाख आबादी एक दिन में यह जल खत्म कर देगी।  

(करेंट साइंस, वाल्यूम.90, 12-25 जून, 2006) आरके मल्ल, अखिलेश गुप्ता, रणजीत सिंह, आरएस सिंह, एलएस राठौर के जरिए संकलित और लिखे गए शोध पत्र वाटर रिसोर्सेज एंड क्लाइमेट चेंड : एन इंडियन प्रसपेक्टिव के मुताबिक एक गर्म जलवायु वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेजी से बढ़ा देगी। वर्षा चक्र को तितर-बितर कर देगी। गर्म हवाओं को अधिक नमी की जरूरत होती है। ऐसे में गर्म हवा सतह से नमी को चुराती है और इसी दौरान सतह पर मौजूद पानी के भाप बनने की प्रक्रिया भी तेजी से बढ़ जाती है।

वातावरण में जितनी नमी होगी वर्षा, बर्फबारी जैसी घटनाएं काफी तीव्र हो जाएंगी। यह बाढ़ को भी बढ़ा देंगी। यदि सतह यानी मिट्टी पर नमी न के बराबर होगी तो तापमान भी तेजी से बढ़ेगा। इसके कारण हम लोगों को एक लंबे और भीषण सूखा का सामना करना पड़ेगा। इतना ही नहीं जलवायु का यह परिवर्तन न सिर्फ मिट्टी की नमी पर जोर डालेगा बल्कि भू-जल रीचार्ज की कमी और बाढ़ की तीव्रता व सूखे की घटनाओं को बढ़ा देगा। तापमान में वृद्धि और वर्षा जल में कमी इसके दुष्परिणाम होंगे। वहीं शोध पत्र के मुताबिक 2010 में भारत में जहां गर्मी के कारण भाप बनने वाले साफ पानी का फीसद एक था वहीं 2025 तक यह एक फीसदी से बढ़कर 6 फीसदी पहुंच जाएगा।

गायब होता सतह का जल और भूमिजल का संकट हमारी पीढ़ियों के अस्तित्व पर खतरा पैदा कर सकता है। पुणे के बीएआईएफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन एनजी हेगड़े के शोध पत्र वाटर स्कैरिटी एंड सिक्यूरिटी इन इंडिया में भारत सरकार के 2009 के आंकड़ों का हवाला देकर कहा गया है कि 1951 में जहां 3.61 करोड़ की आबादी पर सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 घन मीटर यानी 5,177,000 लीटर थी वहीं 2001 में 102.7 करोड़ की आबादी पर सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,820 घन मीटर यानी 1,820,000 लीटर ही बची। सरकार की ही अनुमान है कि अगले छह वर्षों बाद 2025 में 139.4 करोड़ की आबादी पर सालाना प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,341 घन मीटर यानी 1,341,000 लीटर ही बचेगी। 

एशियन रिसर्च डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (आद्री) के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से ऐसे देश जहां सालाना प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1700 घन मीटर है वे जल संकट वाले देश हैं। ऐसे में 2025 में प्रति व्यक्ति 1,341 घन मीटर  जल उपलब्धता का अनुमान यह दर्शाता है कि भारत भीषण जलसंकट से गुजरने वाला है। आद्री के मुताबिक 2011 में भारत में सालाना प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 1545 घन मीटर थी। इससे स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत निश्चित तौर पर जलसंकट वाला देश है। ऐसे में भाप बनकर उड़ रहे जल को बचाया न गया तो यह संकट काफी खतरनाक होगा।

जलपुरुष राजेंद्र सिंह की ओर से अलवर जिले में एक ऐसी ही पारंपरिक जल संरचना दस वर्षों के जनसहयोग से बनाई गई है जो वर्षा जल का संचय कर भूमिजल को रीचार्ज करता है। जल संरचना को गर्मी और धूप से भी बचाने की पूरी कोशिश की गई है ताकि पानी भाप बनकर न उड़े।

 

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