पूर्वोत्तर में बिगड़ा मौसम का मिजाज: कहीं बाढ़, तो कहीं सूखा

असम के कुछ जिलों मसलन धेमाजी और डिब्रूगढ़ में काफी बारिश हुई है, जबकि मणिपुर और मिजोरम में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई है

By Akshit Sangomla

On: Thursday 25 June 2020
 
आसाम के मजुली में ब्रह्मपुत्रा नदी में आई बाढ़ की वजह से जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया। Photo: Istock

पूर्वोत्तर भारत में बारिश का चिंताजनक ट्रेंड देखने को मिल रहा है। कभी कई दिनों तक बारिश नहीं हो रही है, तो किसी रोज अचानक भारी बारिश हो जा रही है और कभी औसत बारिश सामान्य से कम हो रही है।

ताजा उदाहरण असम का है, जहां 23 जून को लगातार हुई बारिश के कारण दूसरी बार बाढ़ गई है। असम में इस साल मई के आखिर में ही पहली बाढ़ आई थी। 23 जून को हुई लगातार बारिश के बाद हालात बिगड़ने लगे हैं। असम आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक, 24 जून तक बाढ़ के चलते एक व्यक्ति की मौत हो गई और 37,675 लोग प्रभावित हुए हैं।

गौरतलब हो कि पूर्वोत्तर के राज्यों में पिछले कुछ सालों से सामान्य से कम बारिश हो रही है और इसका वितरण भी बदलता रहा है।  पिछले साल की ही बात करें, तो पूरे भारत में मॉनसून की बारिश सामान्य से 10 प्रतिशत अधिक हुई थी, जो पिछले 25 सालों में सबसे ज्यादा थी, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में सामान्य से 12 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई थी।

बताया जाता है कि इस बार असम में बाढ़ की मुख्य वजह तीव्र दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून है। मॉनसून की ये गतिविधियां अगले कुछ दिनों तक यूं ही बरकरार रहेंगी, जिसके चलते पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी बाढ़ की स्थिति बन सकती है।

भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के मुताबिक, इस बार मॉनसून के प्रभावशाली होने के पीछे मुख्य रूप से दो कारण हैं। पहला कारण, मॉनसून ट्रफ (लो प्रेशर बेल्ट) का उत्तर की तरफ शिफ्ट हो जाना है। ये ट्रफ उत्तरी पंजाब से उत्तरी-पश्चिमी बंगाल की खाड़ी की तरफ जाता है। मॉनसून की बारिश इसी ट्रफ के नीचे हुआ करती है। वहीं, दूसरी वजह दक्षिणी दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से मजबूत हवा का आना है। इस हवा में बंगाल की खाड़ी की आर्द्रता होती है।

भारी बारिश ने अपर असम के पांच जिलों धेमाजी, जोरहाट, मजुली, शिवासागर और डिब्रूगढ़ को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। इनमें से धेमाजी में हालत संगीन है। जिले के 61 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और 3474 हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद हो गई है। बाढ़ से यहां अब तक 15000 लोग प्रभावित हुए हैं और कम से कम 12 सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई हैं।

धेमाजी में 23 जून को सामान्य से 86% अधिक बारिश हुई, जो 24 जून को बढ़कर 163% हो गई। पहली जून से 24 जून तक असम में बारिश सामान्य से 150% ज्यादा हुई है।

धेमाजी के बाद डिब्रूगढ़ सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। यहां 23 जून को सामान्य से 129% अधिक बारिश हुई थी, जो 24 जून को बढ़कर 273% हो गई। यहां 10000 लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। धेमाजी और डिब्रूगढ़ के अलावा बक्सा और तिनसुकिया में भी सामान्य से अधिक बारिश हुई है। तिनसुकिया में बारिश सामान्य से 646% अधिक और बक्सा में 487 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई है।

अरुणाचल प्रदेश के कई जिलों में भी सामान्य से अधिक बारिश हुई है और आने वाले दिनों में यहां बाढ़ के हालात बन सकते हैं। दिबांग घाटी के निचले हिस्से में 23 जून को बारिश सामान्य से 233 प्रतिशत अधिक हुई थी, जो 24 को बढ़कर 528 प्रतिशत हो गई।

पूरे जिले में हुई बारिश के आंकड़े देखें, तो 1 जून से 24 जून तक सामान्य से 133% अधिक बारिश हुई है। सिर्फ 24 जून को हुई बारिश को लें, तो ये सामान्य से 18 फीसद अधिक रही। वहीं, अरुणाचल प्रदेश के अन्य 6 जिलों में बारिश सामान्य से 100 प्रतिशत से अधिक हुई है।

दूसरी तरफ, पूर्वोत्तर भारत के अन्य जिलों में बारिश सामान्य से काफी कम हुई है। मिजोरम में हालात बेहद खराब नजर रहे हैं। यहां सामान्य से 55 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इसी तरह मणिपुर में सामान्य से 44 प्रतिशत कम और मेघालय में 11 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है।

पूर्वोत्तर के जिलों में बारिश का वितरण भी बेहद असामान्य है। कुछ जिलों में सामान्य के बहुत ज्यादा बारिश हुई, तो कहीं काफी कम। 

असम के 5 जिलों में बाढ़ का कहर बरप रहा है, लेकिन अन्य 12 जिलों में बारिश सामान्य से 10 प्रतिशत और उससे ज्यादा कम हुई है। असम के दरांग में सबसे कम बारिश हुई है। यहां 1 जून से 24 जून तक सामान्य से 83 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है।

भारतीय मौसमविज्ञान विभाग की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2019 तक 19 में से 18 सालों में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में मौसमी बारिश सामान्य से कम हुई है। हालांकि, साल 2007 अपवाद था। उस साल सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी। भारतीय मौसमविज्ञान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “पूर्वोत्तर भारत में इस तरह की बारिश से संकेत मिल रहा है कि यहां बारिश का पैटर्न साल 1950 से मध्य 1980 की अवधि में पहुंच गया है।

वर्ष 2011 में करेंट साइंस नामक जर्नल में छपे एक शोधपत्र में विज्ञानियों ने अनुमान लगाया था कि जलवायु परिवर्तन पूर्वोत्तर भारत में कृषि, पानी की उपलब्धता और वनों को प्रभावित करेगा। शोधपत्र में ये भी कहा गया था कि अरुणाचल प्रदेश, असम के कुछ हिस्सों, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुर में मॉनसून के मौसम में बारिश रहित हफ्तो में भविष्य में 25 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

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