जलवायु परिवर्तन के दौर में मानसून से प्रभावित जीवन और आजीविका
देश की 40% से अधिक कृषि भूमि अभी भी वर्षा पर निर्भर है और ऐसे में भारतीय किसानों को अपनी आजीविका बचाने के लिए आने वाले दशकों में होने वाली मानसूनी वर्षा में किसी भी बदलाव के लिए खुद को तैयार करना च
On: Wednesday 27 July 2022
सच्चिदानंद त्रिपाठी
भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) का मौसम बहुत प्रासंगिक ही है क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए गति निर्धारित का काम करता है। सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से लेकर कृषि तक, शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जो चार महीने लंबे इस बारिश के मौसम के प्रभाव से अछूता रहता हो। हालांकि, गर्म होती दुनिया में, ऐसा लगता है कि बारिश का पैटर्न बदल गया है, जिससे मानसून का व्यवहार भी खराब हो गया है। मानसून के अनिश्चित होने के कारण, वैज्ञानिकों को मौसम की भविष्यवाणी करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय मानसून क्या है
भूमि और समुद्र के तापमान में अंतर को अभी भी मानसून के लिए बुनियादी तंत्र माना जाता है। मानसून की तीव्रता का सीधा संबंध भूमि - सागर के तापमान के अंतर से है। इस प्रकार, मानसून को भूमि-महासागर-वायुमंडल प्रणाली के मिले जिले रूप में परिभाषित किया जा सकता है। भारतीय मानसून दुनिया में सबसे उल्लेखनीय मानसून प्रणाली है जो , मुख्य रूप से भारत और आसपास के जल क्षेत्र को प्रभावित करता है। सर्दियों के महीनों के दौरान, मानसून की धारा उत्तर पूर्व से चलती है और इसे पूर्वोत्तर मानसून कहा जाता है। हालाँकि वर्ष के सबसे गर्म महीनों के दौरान इसकी दिशा बदल जाती है और इसे दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में जाना जाता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप जुलाई और अगस्त के दौरान अधिकतम वर्षा दर्ज की जाती है।
शायद मानसून की सबसे महत्वपूर्ण उप-मौसमी घटना मानसूनी बारिश की शुरुआत है। दरअसल प्रशांत महासागर में सभी अल नीनो वर्षों के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में सूखा पड़ा, जबकि ला नीना की घटनाएं हमेशा भरपूर मानसून वर्षा से संबंधित होती हैं। मानसून और अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन्ज़ (ENSO) के बीच संबंध स्पष्ट है, और ENSO SST विसंगतियाँ (साथ ही अन्य बाउंडरी वेरिएबल जैसे बर्फ का आवरण, आदि) का मौसमी माध्य मानसून परिसंचरण और वर्षा पर प्रभाव पड़ सकता है। जैसे-जैसे मानसून की ट्रफ उत्तर की ओर बढ़ती है, मध्य भारत के ऊपर 2-3 mbar के सतही दबाव में वृद्धि होती है, जो वर्षा के इस पैटर्न के साथ सम्बंधित है। तिब्बती पठार की ऊंची सतह की मौसमी हीटिंग के कारण पूर्वी एशिया में सामान्य परिसंचरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है। इसके फलस्वरूप पठार के दक्षिण में मेरिडियन तापमान और प्रेशर ग्रेडिएंट इन्वर्ट हो जाते हैं और मानसून के साथ मिलकर भारतीय उपमहाद्वीप में पदार्पण करते हैं।
मानसून और कृषि एवं अर्थव्यवस्था के बीच संबंध
भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, और हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद में 16% हिस्सा कृषि का है। अतः जलवायु परिवर्तन के परिणामों से किसान मुख्य रूप से प्रभावित होंगे क्योंकि वर्षा की अवधि और तीव्रता दोनों लगातार बदल रहे हं।
देश की 40% से अधिक कृषि भूमि अभी भी वर्षा पर निर्भर है और ऐसे में भारतीय किसानों को अपनी आजीविका बचाने के लिए आने वाले दशकों में होने वाली मानसूनी वर्षा में किसी भी बदलाव के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। सबसे ज़्यादा असर कम समय में हुई रेनफॉल वैरिएबिलिटी से होता है। कभी तेज़, भारी वर्षा से अचानक बाढ़ आ जाती है, तो कभी एक सप्ताह या उससे अधिक समय तक चलने वाले मानसून ब्रेक के फलस्वरूप पानी की कमी से खेती में मुश्किल होती है। भारत में बाढ़ और सूखा दोनों ही आम हैं। उदाहरण के लिए, 2002 में जुलाई के दौरान लंबे समय तक मानसून ब्रेक की स्थिति देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा में 50% की भारी कमी आयी। इससे न केवल कृषि उत्पादन में कमी आई बल्कि जीडीपी में भी गिरावट दर्ज की गई।
मानसून के कमज़ोर रहने पर फसल की पैदावार आमतौर पर कम होती है, जबकि सामान्य या उससे अधिक बारिश के परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है। हालांकि, भले ही देश में सामान्य औसत वर्षा दर्ज की गई हो लेकिन मानसून की शुरुआत का समय या बारिश में असामयिक ठहराव कृषि उत्पादन पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है।
फसल उत्पादन को नुकसान पहुंचाने के अलावा, वर्षा की मात्रा और समय में थोड़े से बदलाव के भी अन्य गंभीर सामाजिक परिणाम भी हो सकते हैं। 1999 और 2000 में लगातार सूखे की स्थिति के कारण उत्तर पश्चिम भारत के भूजल स्तर में भारी गिरावट आई थी। इस बीच, 2000-2002 के दौरान फसल बर्बाद होने के कारण उड़ीसा में 1.1 करोड़ लोगों को भयानक अकाल का सामना करना पड़ा । इसके अलावा , 2005 में आयी मुंबई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन एवं बारिश के दुष्परिणामों का एक स्पष्ट उदहारण थी। इसलिए, हफ्तों से लेकर वर्षों तक के टाइम स्केल पर मानसून परिवर्तनशीलता का पूर्वानुमान लगाना बहुत अत्यावश्यक बात है।
हिंदू धर्म और भारतीय इतिहास के विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोण हैं। जब पानी की कमी होती है, तो देवताओं का आह्वान किया जाता है और मानसून की कहानियां तो सदियों पुरानी हैं ही । मानसून का मौसम न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से भारतीय संस्कृति में मजबूती से शामिल है, बल्कि भारतीय भोजन से भी संबंधित है। हमारे उपमहाद्वीप में वर्षों से खाए जाने वाले व्यंजनों की किस्में भारत के मानसून और जलवायु से प्रभावित हैं। मानसून का असर हर भारतीय के जीवन पर पड़ता है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, मानसून ने हमारे दैनिक जीवन को नियंत्रित किया है।
भारत में मानसून केवल मौसम नहीं बल्कि एक उत्सव है। मानसून से जुड़े कई नाम, परंपराएं और त्यौहार हैं। पुरी रथ यात्रा हर साल बारिश के मौसम में ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में आयोजित की जाती है। प्रत्येक मानसून, पूरे महाराष्ट्र भर में में नौ दिनों के लिए भगवान गणेश की पूजा होती है। उत्तरी, उत्तर-पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों की विवाहित महिलाएं मानसून के दौरान तीज का त्यौहार मनाती हैं। यहाँ हम रक्षा बंधन को नहीं भूल सकते हैं जो भाई बहन के प्रेम का सम्मान करने का त्यौहार है। यह त्यौहार श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) की पूर्णिमा की रात को मनाया जाता है। दक्षिण की ओर बढ़ने पर केरल में ओणम बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। किसान अपनी फसलों को बारिश का उपहार मिलने की खुशी मनाते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाने वाला जन्माष्टमी का त्योहार भी हर साल श्रावण महीने (अगस्त-सितंबर) में पड़ता है। ये कुछ त्यौहार उल्लेख करने के लिए थे लेकिन मानसून के कई अन्य सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध हैं।
मानसून और अनुकूलन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
आने वाले समय में, सीज़नल मीन , क्षेत्र-औसत मानसून वर्षा में वृद्धि होने की उम्मीद। है। यह भूमि-समुद्र के थर्मल कंट्रास्ट में वृद्धि और, अधिक महत्वपूर्ण रूप से, हिंद महासागर के गर्म होने (जिसके फलस्वरूप भारत में नमी का प्रवाह बढ़ेगा )के कारण होगा। जलवायु सिमुलेशन परिवर्तन के विभिन्न पैटर्न दिखा रहे हैं अतः ऐसे में यह भविष्यवाणी करना काफी चुनौतीपूर्ण है कि भारत के भीतर वर्षा का रूप कैसे बदल सकता है। भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (आईएसएमआर) की प्रवृत्तियों ने भी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता का प्रदर्शन किया है, कुछ क्षेत्रों में वर्षा में वृद्धि हुई है जबकि अन्य में कमी देखी जा रही है।
भारत मानसून पर बहुत अधिक निर्भर करता है। आर्थिक प्रभावों के अलावा, मानसून के सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। इसलिए, यह कहना सही होगा कि मानसून का प्रभाव केवल फसलों पर ही नहीं, बल्कि देश के सभी उद्योगों पर पड़ता है। इसे देखते हुए, मानसून पर निर्भर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बजट को जलवायु के प्रति संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। किसान और अन्य अंतिम उपयोगकर्ता इस बात पर विचार करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि ये चरम घटनाएं उनके उत्पादन को कैसे बदल देंगी। बदलते मानसून पैटर्न के साथ, किसानों को सूखे के लिए तैयार रहना चाहिए। पूरे साल जल संरक्षण के अलावा सिंचाई दौरान पानी की बर्बादी से बचना चाहिए।
हम कह ले सकते हैं कि आने वाले वर्षों में मानसून की अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता बढ़ेगी, चाहे इसके मुख्य चालक अल नीनो, ट्रोपोस्फेरिक बायेनियल ऑसिलेशेन्ज़ आदि में कैसा भी परिवर्तन आये । हालाँकि, हम इस महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव के अपने अनुमानों में तब तक अधिक आश्वस्त नहीं होंगे जब तक कि हम अपने जलवायु मॉडल में मानसून की दैनिक और अंतर-मौसमी परिवर्तनशीलता का बेहतर अनुमान करने में सक्षम नहीं होते हैं। देश की बढ़ती आबादी और खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता को देखते हुए इन क्षेत्रों में वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
(लेखक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में प्रोफेसर हैं)