क्या होता है पूर्वोत्तर मॉनसून, यह किस तरह अलग है दक्षिण पश्चिम मॉनसून से? यहां जानें

पूर्वोत्तर मॉनसून भारत में पूर्वोत्तर दिशा से प्रवेश करता है और इसे शीत मॉनसून भी कहा जाता है।

By Dayanidhi

On: Monday 25 October 2021
 
फोटो : एमएसएसआरएफ

आजकल आप दक्षिण, पश्चिम मॉनसून की विदाई होने तथा पूर्वोत्तर मॉनसून (एनईएम) के सक्रिय होने के बारे में सुन रहे होंगे, क्या आप जानते हैं कि पूर्वोत्तर मॉनसून (एनईएम) क्या होता है? अब आपके लिए डाउन टू अर्थ इस पर विस्तृत जानकारी लेकर आया है।

क्या है पूर्वोत्तर मॉनसून?
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक पूर्वोत्तर मॉनसून भारत में पूर्वोत्तर दिशा से प्रवेश करता है और इसे शीत मॉनसून भी कहा जाता है। इस प्रकार के मॉनसून में हवा समुद्र से जमीन की ओर चलती है। ये मॉनसूनी हवाएं हिंद महासागर से नमी ले जाती हैं, हवाएं भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं।

पूर्वोत्तर मॉनसून का देश के किन हिस्सों में असर पड़ता है?
भारतीय पूर्वोत्तर मॉनसून (एनईएम) भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों तक सीमित रहता है। अक्टूबर से दिसंबर के महीने तक रहने वाले इस  मॉनसून का असर तमिलनाडु, पुडुचेरी, कराईकल, केरल और माहे, तटीय आंध्र प्रदेश और यनम, रायलसीमा (आरवायएस) और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक (एसआईके) पर पड़ता है।

पूर्वोत्तर मॉनसून का समय उत्तर हिंद महासागर (एनआईओ) क्षेत्र के लिए मुख्य चक्रवात का मौसम भी है। एनआईओ क्षेत्र के ऊपर चक्रवातों का निकलना पूर्वोत्तर मॉनसून को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। जैसे, कृषि की दृष्टि से अलग नियोजन, आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी इस मौसम का महत्व है।

पूर्वोत्तर मॉनसून और दक्षिण, पश्चिम मॉनसून एक दूसरे से किस तरह अलग है?
भारत में जून से सितंबर तक दक्षिण,पश्चिम मॉनसून (एसडब्ल्यूएम) का मौसम माना जाता है, यह भारत के लिए प्रमुख वर्षा ऋतु है। इस दौरान देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 75 फीसदी बारिश होती है। दक्षिण, पश्चिम मॉनसून की वापसी के बाद, पूर्वोत्तर मॉनसून (एनईएम) भारत के दक्षिणी प्रायद्वीप के कुछ हिस्सों तक सीमित रहता है।

दक्षिण, पश्चिम मॉनसून पूर्वोत्तर मॉनसून
गर्मियों में मॉनसून दक्षिण-पश्चिम दिशा से भारत में प्रवेश करता है। पूर्वोत्तर मॉनसून भारत में पूर्वोत्तर दिशा से प्रवेश करता है और इसे शीत मॉनसून भी कहा जाता है।
इस प्रकार के मॉनसून में हवा समुद्र से जमीन की ओर चलती है। ये मॉनसूनी हवाएं हिंद महासागर से नमी ले जाती हैं। इस प्रकार के मॉनसून में हवाएं भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं।
ट्रेड हवाएं दक्षिण,पश्चिम मानसून के रूप में भारत के प्रायद्वीपीय भाग में प्रवेश करती हैं। भारत में सर्दियां शुष्क होती हैं। ये मॉनसूनी हवाएं उत्तर-पूर्व से नमी लेकर चलती हैं।
लगभग पूरे देश में जून से लेकर सितंबर महीने के बीच भारी वर्षा होती है। इस अवधि के दौरान मुख्य रूप से केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु आदि भारत के दक्षिणी भाग में बारिश होती है।
दक्षिण,पश्चिम मॉनसून जिसे ग्रीष्म मॉनसून भी कहा जाता है, इस दौरान काफी नुकसान होने के आसार भी होते हैं। लेकिन भारत में किसानों द्वारा इसका स्वागत किया जाता है क्योंकि वे सिंचाई के लिए इस मॉनसूनी बारिश पर निर्भर रहते हैं। जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पूर्वोत्तर मानसून के दौरान बारिश से लेकर बर्फबारी हो सकती है।

 

पूर्वोत्तर मॉनसून की अवधि कब से कब तक होती है तथा कृषि के लिए कौन से भाग इस पर निर्भर करते हैं?
पूर्वोत्तर मॉनसून की अवधि अक्टूबर से दिसंबर की होती है, इस मौसम के दौरान वार्षिक वर्षा का 48 फीसदी (447.4 मिमी) तक बारिश होती है, इसलिए इसका प्रदर्शन क्षेत्रीय कृषि गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां यह भी बताते चलें कि यह तमिलनाडु के कुछ हिस्सों के लिए मुख्य वर्षा ऋतु की तरह है और इस क्षेत्र की कृषि गतिविधियां पूर्वोत्तर मॉनसून (एनईएम) में होने वाली बारिश पर निर्भर करती हैं।

क्या पूर्वोत्तर मॉनसून भी प्रभावित हो सकता है?
पूर्वोत्तर मॉनसून की वर्षा वैश्विक जलवायु मापदंडों जैसे अल नीनो/ला नीना और दक्षिणी दोलन सूचकांक, हिंद महासागर डिपोल और मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन से प्रभावित होती है। 

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