क्यों नहीं थम रहा हरियाणा में पराली जलाने का सिलसिला, दोषी कौन?
पराली जलाने को लेकर 10 से 15 दिन ही हलचल होती है, उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। साथ ही, इसे थामने के प्रयास भी थम जाते हैं
On: Wednesday 06 November 2019
हरियाणा सरकार ने पराली नहीं जलाने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मशीन की खरीद पर पचास प्रतिशत सब्सिडी और पराली जलाने वाले की गुप्त सूचना मुहैया कराने वाले को एक हजार रूपये इनाम देने का ऐलान किया है, लेकिन यह इंतजाम समस्या खड़ी होने से पहले क्यों नहीं किए गए? इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं।
साथ ही यह भी पूछा जा रहा है कि किसानों पर मुकदमा ठोंकने के साथ अब तक पराली जलाने की रोक-थाम में लगे कितने पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों पर इसकी विफलता को लेकर कार्रवाई की गई है। इस पूरे सीजन में कैथल जिले के उप कृषि निदेशक डॉक्टर पवन शर्मा को सस्पेंड किया गया है, जबकि प्रदेश के नियंत्रण बोर्ड ने सर्वाधिक पराली जलाने वाले तकरीबन पंद्रह जिलों को चिन्हित किया है। फिर वहां के अधिकारी ऐसी कार्रवाई से कैसे बच गए?
एक नवंबर को हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सर्वाधिक पराली जलाने वाले 464 गांवों की एक सूची जारी की थी। इनमें पिछले साल 5453 जगह पराली जलाई गई थी। इस सूची में अंबाला के 30, भिवानी के 10, फतेहाबाद के 30, हिसार के 30, झज्जर के 17, जींद के 30, कैथल के 30, मुख्यमंत्री के जिला करनाल में 30, पलवल में 30, पंचकूला के 12 और फरीदाबाद, गुरूग्राम, नूंह और महेंद्रगढ़ के दस-दस गांव शामिल हैं, जहां अब तक 2350 पराली जलाने के मामले सामने आए हैं। इनके अलावा बाकी जिलों में भी पराली जलाने की छिट-पुट घटनाएं जारी हैं। इस के लिए अभी तक 218 किसानों पर मुदमा दर्ज किया जा चुका है।
हरियाणा के कृषि एवं कल्याण विभाग के निदेशक अजीत बाला जोशी कहते हैं कि पराली जलाने वाले किसानों पर मुकदमा उन्हें परेशान करने के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए दर्ज कराए गए हैं। सवाल है, प्रदूषण रोकने का क्या यह सही तरीका है ? मात्र किसानों पर मुकदमा दर्ज करने से पराली जलाने की घटना थम जाएगा ? प्रत्येक वर्ष हरियाण सरकार यही करती रही है। धान के अवशेष जलने से उत्पन्न प्रदूषण की समस्या से निपटने के नाम पर कुछ किसानों पर मुकदमा दर्ज कर इतिश्री कर लिया जाता है।
मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का दावा है कि ऐसे प्रयासों से पिछले साल की तुलना में इस बार 6.5 प्रतिशत पराली कम जलाई गई है। सरकार ने अखबारों में विज्ञापन जारी कर दावा किया है कि 22 अक्तूबर तक राज्य में फसल अवशेष जलाने के क्षेत्र में 34 प्रतिशत की कमी आई है।
सरकार इसे बड़ी उपलब्धि मान रही है। जबकि चार साल पहले एनजीटी द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों पर अमल करने की उसे आज भी फिक्र नहीं। एनजीटी ने भविष्य में प्रदूषण की गहराती समस्या के मददेनजर 5 नवंबर 2015 को किसानों को जागरूक करने और पराली जलाने पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे। फिर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 10 दिसंबर 2015 को हरियाणा को ‘हैप्पी सीडर’ सहित दूसरी मशीनरी के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। हैप्पी सीडर मशीन से धान की कटाई के साथ पराली के बारीक अवशेष गेहूं के दाने पर गिरते हैं, जिससे नमी में कमी आती है और पैदावार बेहतर होता है।
इसके विपरीत पराली जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति प्रभावित होती है। खेतों में आग लगने का खतरा बढ़ता है। धरती के सूक्ष्म पोषक तत्व नष्ट होते हैं। नाइट्रोजन की कमी से उत्पादकता कमजोर पड़ती और हवा प्रदूषित होने से लोगों में बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए एनजीटी ने प्रदेश सरकार को दो एकड़ से कम खेत वाले किसानों को मुफ्त में मशीन देने, दो से पांच एकड़ वाले किसानों को 5000 रुपए में और पांच एकड़ से अधिक के खेतों के कृषकों को 15000 रुपए में मशीन उपलब्ध कराने की हिदायत दी थी। अभी मशीन की लागत करीब 70 से 75 हजार रुपए है, जबकि बाजार में यह तकरीबन पौने दो लाख रुपए में बिक रही है। प्रदेश सरकार इस मशीन पर अधिकतम सब्सिडी 30 फीसदी देती थी, जिसे बढ़ा कर 50 प्रतिशत का ऐलान किया गया है। मगर किसान सरकार की इस घोषणा से खुश नहीं हैं।
अंबाला के किसान सुखबीर सिंह तथा कुरूक्षेत्र के किसान जसबीर सिंह ढुल कहते हैं कि पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण की प्रदेश सरकार को फिक्र है तो कारगार ढंग से जागरूकता अभियान चलाए तथा मशीन खरीद पर एनजीटी के निर्देशों का पालन किया जाए।
अखिल भारतीय किसान सभा के सिरसा ईकाई के प्रधान सुरजीत कहते हैं कि एनजीटी के निर्देशों का पालन करते हुए मुफ्त में या 5 से 15 हजार रुपए में मशीनें उपलब्ध कराने की तो छोड़िए , तीस प्रतिशत की सब्सिडी लेने में पसीने छूट जाते हैं। बैंकों और मशीन की एजेसियों, विभागों के इतने चक्कर लगाने पड़ते हैं तथा कागजों की इतनी खानापूर्ति की जाती है कि जरूरत के समय मशीन मिलती ही नहीं। इसके अलावा केवल एक सीजन के लिए कीमती मशीन घर पर रखे रहना, आमतौर से किसान बुद्धिमानी नहीं मानते।
कुछ साल पहले पहले हरियाणा के कृषि व किसान कल्याणा विभाग ने लाखों रूपये खर्च कर कई जागरूकता रथ तैयार कराया था। इसका उद्देश्य गांव-गांव घूमकर प्रदूषण से होने वाले नुकसान और पराली के सदुपयोग के बारे में किसानों को बताना था। अफसोसजनक पहलू यह है कि इनमें से अधिकांश जागरूकता रथ इस समय विभाग के पंचकूला स्थित मुख्यलय में खड़े धूल फांक रहे हैं।