क्यों आसमान छूने लगते हैं प्याज के दाम?

प्याज के बढ़ते दाम सरकारों को बेचैन तो कर देते हैं लेकिन जब दाम गिरते हैं और 7 प्रतिशत किसानों की आबादी प्रभावित होने लगती है तो सरकार उसे नजरअंदाज कर देती है। 

By Bhagirath Srivas

On: Monday 25 November 2019
 
इलेस्ट्रेशन: रितिका वाेहरा

प्याज के दाम ने एक बार फिर उपभोक्ताओं के आंसू निकालने शुरू दिए गए हैं। खुदरा बाजार में प्याज का भाव 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया है। महाराष्ट्र के नासिक में स्थित प्याज की सबसे बड़ी मंडी लासलगांव में 22 नवंबर को प्याज 5,401 रुपए प्रति क्विंटल के मॉडल भाव पर बेच गया। इस दिन प्याज 1,801 रुपए के न्यूनतम और 7,012 रुपए प्रति क्विंटल के अधिकतम भाव पर बेचा गया। एक महीने पहले 24 अक्टूबर को लासलगांव में प्याज 1,200 रुपए के न्यूनतम और 3,600 रुपए के अधिकतम भाव पर बिका था। यानी एक महीने में प्याज का अधिकतम भाव लगभग दोगुना हो गया है। उधर, पंजाब के जलंधर में स्थित आदमपुर की मंडी में इस वक्त प्याज न्यूनतम 4,500 और अधिकतम 5,000 प्रति क्विंटल के भाव पर बेचा जा रहा है। मंडी का यह थोक भाव उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंच रहा है। यानी लगभग दोगुना हो रहा है।  

फिलहाल किसानों को प्याज का लाभकारी मूल्य मिल रहा है लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। कई बार किसानों को प्याज 40 पैसे से 1 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भी बेचनी पड़ती है। नासिक में प्याज उत्पादक धनंजय पाटिल कहते हैं कि एक किलो प्याज उगाने की लागत 10-11 रुपए बैठती है। कुछ जमीन पर यह लागत 15 रुपए तक हो जाती है। किसान का प्याज को बेचने तक फायदा तब तक नहीं होता, जब तक उसका न्यूनतम भाव 1,500 न हो।  

क्यों बढ़ता है भाव

वर्तमान में प्याज के दाम में उछाल की वजह उसके उत्पादन में 26 प्रतिशत गिरावट है। केंद्र सरकार ने प्याज की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए 1.2 टन प्याज के आयात को मंजूरी दी है। आने वाले दिनों में आयातित प्याज के कारण दाम घटेंगे और उत्पादकों को वर्तमान में मिल रहा लाभ कम हो जाएगा।

प्याज एक ऐसी कृषि उपज है जिसके दाम में उछाल आने पर सरकारें सक्रिय हो जाती हैं। इस तरह की सक्रियता वर्तमान में देखी जा रही हैं लेकिन सरकारें तब कुछ नहीं करतीं, जब इसके दाम में इतनी गिरावट आ जाती है कि किसानों को प्याज फेंकनी पड़ती है। कई बार प्याज के भाव इसलिए भी बढ़ जाते हैं क्योंकि उसका कृत्रिम अभाव पैदा कर दिया है। किसान को प्याज को मंडी में बेच आते हैं लेकिन बिचौलिए उसका भंडारण कर कृत्रिम अभाव पैदा कर देते हैं। इससे प्याज का भाव बढ़ जाता है और इसका पूरा फायदा बिचौलिए उठा लेते हैं। बिचौलिए सीमित मात्रा में प्याज निकालकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। इस तरह जो फायदा किसानों को मिलना चाहिए, वह उन्हें नहीं मिल पाता। भ्रष्टाचार और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से यह कृत्रिम अभाव पैदा किया जाता है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में प्याज के ब्रीडर अजेमर सिंह का मानना है कि प्याज भाव बाजार के कुप्रबंधन के चलते गिरता और चढ़ता है। व्यापारी और बिचौलिए बाजार में प्याज कमी की अफवाह फैला देते हैं जिससे भाव बढ़ जाते हैं।

सरकार प्याज के किसानों पर ध्यान नहीं देती क्योंकि उनकी आबादी बहुत कम (करीब 7 प्रतिशत) है। इनमें भी करीब 3 प्रतिशत मतदाता हैं। इतनी कम आबादी के लिए वह मध्यम वर्ग या कहें उपभोक्ता वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती। इसीलिए प्याज के बढ़ते दाम उसे बेचैन तो कर देते हैं लेकिन जब दाम गिरते हैं और यह 7 प्रतिशत की आबादी प्रभावित होने लगती है तो सरकार उसे नजरअंदाज कर देती है। उपभोक्ता वर्ग की ताकत ज्यादा है जबकि किसान बंटा हुआ है। इस तरह प्याज उपजाने वाले किसानों की तकलीफ उन्हीं तक सीमित होकर रह जाती है।

सीसीआई की पड़ताल

प्याज अकेली उपज है जिसका व्यापार अन्य फसलों से काफी अलग है। कई बार बाजार के नियम उसके आगे बौने साबित हुए हैं। 2012 में प्याज की इसी प्रकृति को समझने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) को पड़ताल करनी पड़ी। आमतौर पर सीसीआई मानता है कि प्रतिस्पर्धा के जरिए ही आम आदमी को वस्तुओं और सेवाओं का बेहतर मूल्य मिल पाता है। सीसीआई ने यह पता लगाने के लिए प्याज का अध्ययन किया कि आखिर उत्पादन और रकबा बढ़ने के बाद भी प्याज का दाम क्यों बढ़ जाता है।

कर्नाटक और महाराष्ट्र के महत्वपूर्ण बाजारों का अध्ययन करने के बाद सीसीआई के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्याज के उत्पादक, आवक और भाव के बीच कोई संबंध नहीं है। उन्होंने पाया कि कुछ महीनों में प्याज की आवक सर्वाधिक होने के बाद भी उसके भाव अधिकतम रहते हैं। नीति निर्माताओं के लिए यही बात सिरदर्दी वाली है जिसे सीसीआई पैराडॉक्सीकल कहता है।

सीसीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, “यह स्पष्ट है कि मंडी में प्याज की प्रतिदिन की आवक का सभी मंडियों में उसकी कीमत से कोई संबंध नहीं है। अर्थात इन बाजारों में प्याज के भाव का साप्ताहिक आवक से कोई संबंध नहीं है।” सीसीआई के शोधकर्ताओं ने पाया कि प्याज अपने व्यापारियों की शिकार है जो अधिकतम लाभ की लालसा में किसानों को भारी नुकसान और उपभोक्ताओं को बढ़ी कीमतों के बोझ तले दबा देते हैं।  

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