Wildlife & Biodiversity

पूरी दुनिया में मूल आबादी झेल रही है गरीबी और उपेक्षा का दंश : यूएन रिपोर्ट

यूएन ने पहली बार मूल आबादी पर रिपोर्ट जारी की है। भयंकर गरीबी और उच्च बेरोजगारी के मामले में भारत की तुलना उप-सहारा अफ्रीकी देशों से की गई है।

 
By Vivek Mishra
Published: Monday 23 September 2019

Photo : GettyImage

दुनिया की एक-तिहाई देशी यानी मूल आबादी (इंडीजीनस पॉपुलेशन) इस वक्त सभी तरह की क्रूर अमानवीय यातनाएं झेल रही है। भयंकर गरीबी, उच्च बेरोजगारी और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं ने इन्हें घेर लिया है। पूरी दुनिया की मूल आबादी के 50 फीसदी से अधिक युवा और व्यस्क आबादी टाइप – 2 डायबिटीज से ग्रसित हैं। इतना ही नहीं विश्व के हर देश में इनकी स्थिति बदतर है। गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, मानवाधिकार, पर्यावरण और अन्य ऐसे ही पैमाने हैं जिन पर देशज यानी मूल आबादी की स्थिति खराब बतायी गई है।   

यह बात संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की ओर से पहली बार जारी की गई मूल आबादी की स्थिति रिपोर्ट में कही गई है। यूएन ने कहा है कि यह उनकी ओर से प्राथमिक आकलन है, बाद में टाइप-2 डायबिटीज से ग्रसित लोगों की संख्या और ज्यादा बढ़ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक देशज लोग पूरी दुनिया में विषमता के शिकार हैं। वह स्वास्थ्य समस्याओं, अपराध, मानावाधिकार हनन जैसी समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं।

यूएन रिपोर्ट के मुताबिक भारत की भी मूल आबादी भयंकर गरीबी और उच्च बेरोजगारी दर के कुचक्र में फंसी है। यूएनडीपी के मानव गरीबी सूचकांक की रैकिंग के हवाले से गरीबी और बेरोजगारी के मामले में भारत के मूल आबादी की तुलना उप-सहारा अफ्रीकी देशों से की गई है जो कि 25वें रैंक पर मौजूद हैं।  

जबकि 2006 में ऑस्ट्रेलिया में मूल आबादी की बेरोजगारी दर 15.6 फीसदी थी जो कि गैर मूल आबादी की तुलना में तीन गुना ज्यादा बढ़ चुकी है। वहीं आय के मामले में भी मूल आबादी गैर मूल आबादी की तुलना में आधे पर है। यही हाल न्यूजीलैंड का भी है।

रिपोर्ट में टीबी, कुपोषण और आत्महत्या के मामले में भी कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। मसलन कुपोषण के मामले में नॉर्थ अमेरिका की मूल आबादी मोटापा, डायबिटीज और हृदयरोग से ग्रसित है। वहीं, एरिजोना में रहने वाली पिमा इंडियन ट्राइब्स में सबसे ज्यादा डायबिटीज है। 30 से 34 वर्ष उम्र के 50 फीसदी युवा डायबिटीज के शिकार हैं।

संयुक्त राज्य के भीतर सामान्य आबादी की तुलना में मूल अमेरिकियों में 600 गुना ज्यादा ट्यूबरक्यूलोसिस (टीबी) और 62 फीसदी ज्यादा तयशुदा आत्महत्या के मामले हैं। ऑस्ट्रेलिया में मूल आबादी का बच्चा सामान्य आबादी की तुलना में 20 वर्ष पहले ही मर सकता है। जीवन प्रत्याशा की यह खाई नेपाल में भी यही है। वहां भी मूल आबादी के 20 वर्ष कम जीने की स्थिति है। जबकि ग्वांतेमाला में 13 वर्ष और न्यूजीलैंड में यह 11 वर्ष है।  इक्वेडॉर में राष्ट्रीय औसत से 30 फीसदी ज्यादा जोखिम है कि वहां के मूल आबादी में किसी को गले का कैंसर हो जाए।

दुनिया की कुल आबादी में करीब पांच फीसदी यानी 37 करोड़ लोग मूल यानी देशी (इंडीजीनस पॉपुलेशन) आबादी में हैं। वहीं, दुनिया के 90 करोड़ अत्यंत गरीबों में इनकी हिस्सेदारी एक-तिहाई है। प्रत्येक दिन इनको कहीं न कहीं क्रूर हिंसा का सामना करना पड़ता है। नीतियों और जमीन की असमानता, जबरन स्थानांतरण, जमीनों के अधिकार से वंचित रखना और मिलिट्री बल के जोर से डराना और धमकाना आदि झेलना होता है। यूएन ने कहा है कि विकसित देश हों या विकासशील देश दोनों जगहों पर स्थिति बेहद खराब है।

देशी लोगों की स्थिति पर आधारित यूएन रिपोर्ट के चार हिस्से किए गए हैं : पहले हिस्से में गरीबी और कल्याण शामिल है। दूसरे अध्याय में संस्कृति और तीसरे अध्याय में पर्यावरण व चौथे पाठ में समानांतर शिक्षा की बात की गई है।

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