दुनिया भर में घट रहे हैं कीट, 1990 के बाद से आयी है 25% की कमी

कीट केवल नुकसान ही नहीं करते, वे पर्यावरण के लिए अत्यंत जरुरी भी होते हैं। लेकिन आज दुनिया भर में कई कीटों की आबादी बड़ी तेजी से कम हो रही है

By Lalit Maurya

On: Friday 24 April 2020
 
कैंटिगस्टर सिकाडा

कीटों का अपना अलग ही संसार होता है। इनमें से कुछ हमारे आसपास तो कुछ दूर दराज के निर्जन स्थानों पर वास करते हैं। आमतौर पर हम अपने आसपास मधुमक्खी, मकड़ी, चींटी, मच्छर, तितली जैसे कीटों को रोज ही देखते हैं। इन कीड़ों ने भी इंसान के साथ रहने की आदत डाल ली है। पर ज्यादातर लोगों के मन में इनके प्रति ऐसी भावना बन गयी है कि कीट नुकसान पहुंचाते हैं। पर यह सही नहीं है। यह छोटे जीव हमारे लिए ही नहीं प्रकृति के लिए भी बड़े महत्वपूर्ण होते हैं।

हाल ही में जर्नल साइंस में छपे अध्ययन से पता चला है कि 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की गिरावट आ गई है। यह अध्ययन दुनिया भर की करीब 1676 स्थानों पर किये गए करीब 166 सर्वेक्षणों पर आधारित है। जिसमें साफ तौर पर पता चला है कि दुनिया भर में हर दस साल के अंदर करीब 9 फीसदी की दर से कीट कम हो रहे हैं। हालांकि दुनिया भर में जिस तरह नदियों और साफ जल स्रोतों को बचने की कवायद चल रहे है, उसके चलते मीठे पानी में रहने वाले कीटों में 11 फीसदी प्रति दशक की दर से वृद्धि देखी गई है।

कीटनाशक, बढ़ता शरीकरण और जलवायु परिवर्तन है कीटों के विनाश की मुख्य वजह

शोधकर्ताओं के अनुसार दक्षिण एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बारे में कोई डाटा उपलब्ध नहीं है, और जो है वो भी बहुत सीमित है। यही वजह है कि वहां पर कीटों में आ रही कमी का ठीक से आंकलन नहीं हो सका है। लेकिन इन क्षेत्रों में शहरीकरण तेजी से पैर पसार रहा है। साथ ही बड़े पैमाने पर खेती के लिए जंगलों और प्राकृतिक आवासों का विनाश हुआ है।

कीट इंसानों के लिए भी बड़े जरुरी होते हैं यह फसलों और पेड़ पौधों को फैलने फूलने में सहायक होते हैं। साथ ही कई कीट तो प्रकृति में मौजूद वेस्ट को साफ भी करते हैं। 

इससे पहले जर्नल बायोलॉजिकल कंजर्वेशन में छपे अध्ययन में भी कीटों के तेजी से घटने की बात को माना था। इस शोध में अनुमान लगाया गया था कि अगले कुछ दशकों में दुनिया के करीब 40 फीसदी कीट ख़त्म हो जायेंगे। जिनके लिए मुख्य रूप से सघन कृषि जिम्मेदार है। वहीँ भारी मात्रा में प्रयोग किये जा रहे कीटनाशक इन कीटों को तेजी से ख़त्म कर रहे हैं। इस अध्ययन में बढ़ते शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन को भी कीटों के विनाश की एक वजह माना था।

इस अध्ययन के प्रमुख और सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव बायोडायवर्सिटी रिसर्च जर्मनी में शोधकर्ता रोएल वॉन किलिंक ने बताया कि "हालांकि इस शोध में कीटों के विनाश की जो दर आंकी गई है वो पहले के शोधों की तुलना में कम है। पर 24 फीसदी कुछ कम नहीं होता। जब मैं बच्चा था तब की तुलना में अब करीब एक चौथाई कीट कम हो गए हैं। लोगों को याद रखना चाहिए कि हम अपने भोजन के लिए इन्ही कीटों पर निर्भर हैं।"

उनके अनुसार इस शोध में यह भी सामने आया है कि समय के साथ कीटों के विनाश की दर भी बदल रही है। सबसे ज्यादा चौंका देने वाली बात यह रही कि यूरोप में कीट तेजी से ख़त्म हो रहे है। पश्चिमी और मध्य अमेरिका में भी इनमें तेजी से कमी आ रही है| वही उत्तरी अमेरिका में धीरे-धीरे इनके विनाश की गति में कमी आ रही है। जबकि पूर्वी एशिया और अफ्रीका में जहां तेजी से शहरीकरण हो रहा है, और प्राकृतिक आवास कम हो रहे हैं। वहां इन कीटों का तेज गति से विनाश हो रहा है। अमेजन के जंगल तेजी से नष्ट हो रहें हैं जो ने केवल कीटों बल्कि वहां रहने वाले हर जीव के लिए खतरनाक है। हालांकि एक अच्छी बात यह रही की मीठे पानी के कीटों में 11 फीसदी प्रति दशक की दर से वृद्धि हो रही है पर इन कीटों की संख्या जमीनी कीटों की तुलना में कोई बहुत ज्यादा नहीं है।

यह धरती उसपर रहने वाले हर जीव की है। पर जिस तरह से मनुष्य अपनी अभिलाषा के लिए इसका दोहन कर रहा है उसके कारण अन्य जीवों पर भी असर पड़ रहा है। हमें समझना होगा कि धरती पर केवल हम अकेले नहीं है। हमें दूसरे जीवों का भी सम्मान करना होगा। आपसी निर्भरता प्रकृति के संतुलन का मूल है। यदि यह संतुलन बदला तो इसके विनाश का असर हर जीव पर पड़ेगा। ऐसे में मनुष्य भी उससे नहीं बचेगा। कीट भले ही बहुत छोटे होते हैं पर वो भी इस प्रकृति का हिस्सा हैं। अभी भी बहुत देर नहीं हुई है। दुनिया भर में एक महीने और उससे अधिक चले लॉकडाउन से जिस तरह पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ा है। वो इस बात का सबूत है कि यदि हम आज से पहल करें तो अब भी अपनी धरती को बचा सकते हैं। जिससे हमारा वजूद भी बचा रहे। वर्ना बाढ़, सूखा, तूफान और महामरियों के रूप में जो आपदाएं आ रही हैं वो समय के साथ और बढ़ती जाएंगी।

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