जानवरों के लिए सुरक्षित नहीं दुनिया की 73 फीसदी भूमि, शिकार और पकड़े जाने का है खतरा

दुनिया की करीब 44 फीसदी भूमि, कृषि के चलते उभयचर जीवों के लिए सुरक्षित नहीं है। वहीं 50 फीसदी भूमि पर पक्षियों और 73 फीसदी पर जानवरों के शिकार और पकड़े जाने का खतरा है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 01 September 2021
 

दुनिया की करीब 73 फीसदी भूमि जानवरों के लिए सुरक्षित नहीं हैं, वहां उनके शिकार और पकड़े जाने का खतरा है। वहीं यदि पक्षियों की बात करें तो करीब 50 फीसदी भूमि उनके लिए सुरक्षित नहीं है, जहां उनके शिकार और पकड़े जाने का खतरा है। यह जानकारी हाल ही में जर्नल नेचर इकोलॉजी एंड एवोल्यूशन में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर उन स्थानों की पहचान की है, जहां जैव विविधता को सबसे ज्यादा खतरा है। साथ ही यह भी जानकारी दी है कि उन्हें किस चीज से सबसे ज्यादा खतरा है। अपने इस शोध में उन्होंने जमीन पर पाए जाने वाले जानवरों, पक्षियों और उभयचरों को शामिल किया है और यह दर्शाया है कि किस जीव को दुनिया के किस स्थान पर 6 प्रमुख खतरों में से किसका सबसे ज्यादा सामना करना पड़ रहा है।

जैवविवधता के लिए इन प्रमुख खतरों में कृषि, शिकार, जंगलों की कटाई, प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन को शामिल किया गया है। यही नहीं इसे स्पष्ट करने के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया भर में उन स्थानों का मानचित्रण भी किया है जहां जीवों के वर्ग विशेष पर किसी एक से सबसे ज्यादा खतरा है। 

यह शोध कितना व्यापक है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस शोध में आईसीयूएन द्वारा खतरे में पड़ी 23,271 प्रजातियों को शामिल किया गया है, जोकि सभी स्थलीय उभयचरों, पक्षियों और स्तनधारियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। 

देखा जाए जैसे-जैसे इंसानी महत्वाकांक्षा बढ़ रही है वैसे-वैसे जैवविविधता सिकुड़ती जा रही है। वो अपनी बढ़ती जरुरत को लिए अंधाधुंध तरीके से जंगलों का विनाश कर रहा है। अपने खेतों का विस्तार कर रहा है उसमें कीटनाशकों जैसे प्रदूषकों का प्रयोग कर रहा है, जो अन्य जीवों के लिए संकट बनता जा रहा है।  यही नहीं कभी अपना पेट भरने के लिए शिकार करने वाला आदिम मानव आज इस कदर विकसित हो गया है कि शिकार और जंगली जीवों को पकड़ना उसकी जरुरत नहीं शौक बन गया है।

जिस तरह से वो इधर से उधर नई प्रजातियों को फैला रहा है उससे आक्रामक प्रजातियों के खतरे की सम्भावना भी बढ़ती जा रही है। आज बढ़ते वाहन, उद्योग और ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जा रहा है जो वैश्विक स्तर पर जलवायु में बदलावों का कारण बन रहा है। आज यह बदलती जलवायु दुनिया भर में सभी जीवों के लिए एक बड़ा संकट बन चुकी है।     

मनुष्य की बढ़ती महत्वाकांक्षा है सारी समस्याओं की जड़

हालांकि ऐसा नहीं है कि हमें इन खतरों का पता नहीं है पर इस शोध में उन स्थानों की पहचान की है, जहां किस खतरे से जीवों के वर्ग विशेष पर सबसे ज्यादा खतरा है। निष्कर्ष बताते हैं कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कृषि और जंगलों को जिस तेजी से काटा जा रहा है वो जैवविविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसी तरह पक्षियों और जानवरों के लिए शिकार और उन्हें पकड़ना पूरी दुनिया में सबसे बड़ा खतरा है।

दुनिया के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जिनके 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सों पर जानवरों, पक्षियों और उभयचर जीवों की किसी विशेष प्रजाति पर कृषि, शिकार, वनों के विनाश, आक्रामक प्रजातियों और जलवायु परिवर्तन से खतरा है।

शोध के अनुसार कृषि, उभयचर जीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया की करीब 44 फीसदी भूमि कृषि के चलते उभयचरों के लिए सुरक्षित नहीं है। वहीं यदि जानवरों और पक्षियों को देखें तो उन्हें सबसे ज्यादा खतरा शिकार और पकड़े जाने का है। जहां दुनिया की करीब 50 फीसदी भूमि इसके कारण पक्षियों के लिए सुरक्षित नहीं है वहीं करीब 73 फीसदी जमीन पर जानवरों के शिकार और पकड़े जाने का खतरा है। वहीं यदि पक्षियों, जानवरों और उभयचरों की सम्मिलित बात करें तो इन सभी के लिए कृषि सबसे बड़ा खतरा है। 

वहीं यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो दक्षिण पूर्व एशिया में विशेष रूप से सुमात्रा और बोर्नियो के द्वीपों के साथ-साथ मेडागास्कर में उभयचर, पक्षियों और स्तनधारी जीवों पर इन सभी छह जोखिमों का खतरा सबसे ज्यादा है। प्रदूषण, कृषि और आक्रामक प्रजातियों के चलते यूरोप में उभयचरों जीवों पर सबसे ज्यादा खतरा है। वहीं ध्रुवीय क्षेत्रों, ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट और दक्षिण अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे ज्यादा है जो पक्षियों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकता है। 

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि हिमालय, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया का पूर्वी तट, मेडागास्कर के शुष्क वनों, पूर्वी अफ्रीका में अल्बर्टिन रिफ्ट और पूर्वी आर्क पर्वत, पश्चिम अफ्रीका के गिनी वन, अटलांटिक वन, अमेज़ॅन बेसिन, दक्षिण और मध्य अमेरिका में उत्तरी एंडीज, पनामा और कोस्टा रिका में जैव विविधता के संरक्षण को लेकर विशेष रूप से ध्यान देने की जरुरत है।

इंसान को बदलना होगा अपना व्यवहार और रहन-सहन

इस शोध के प्रमुख शोधकर्ताओं में से एक डॉ माइक हार्फूट का कहना है कि आज प्रकृति पर वैश्विक संकट मंडरा रहा है। ऐसे में जैव विविधता के नुकसान से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई करने के लिए अगले 10 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस शोध में प्रकृति पर मंडरा रहे उन प्रमुख खतरों के बारे में बताया है जिनके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। साथ ही इसमें उन स्थानों की भी पहचान की है जहां जैवविविधता पर इन खतरों का सबसे ज्यादा खतरा है। यह जानकारी महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद कर सकती है। यह वो क्षेत्र हैं जहां जैवविविधता को बचाने के लिए की गई कार्रवाई बेहतर परिणाम दे सकती है। 

देखा जाए तो धरती हम सब जीवों का एक साझा घर है, जिसे बचाना हमारी जिम्मेवारी है। आज प्रकृति के साथ जो कुछ गलत हो रहा है उसके लिए काफी हद तक हम मनुष्य ही जिम्मेवार हैं। यह हमारी महत्वाकांक्षा का ही नतीजा है कि हम दूसरे जीवों को नजरअंदाज कर इस घर को पूरी तरह सिर्फ अपने हिसाब से ढालने में लगे हुए हैं जोकि असंतुलन पैदा कर रहा है। यदि इस पर आज ध्यान न दिया गया तो आने वाले कल में हमारे पास सिर्फ अफसोस करने के सिवा कुछ नहीं बचेगा। 

गौरतलब है कि इसी को ध्यान में रखते अप्रैल 2022 में, चीन के कुनमिंग में संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन आयोजित किया जाना है, जिसे कॉप15 के नाम से भी जाना जाता है। इसमें 190 देशों के प्रतिनिधि भाग लेंगे। इसको लेकर जुलाई में जारी समझौता प्रारूप में भी जैव विविधता, इंसानों के रहन-सहन और पृथ्वी पर जीवन के भविष्य के लिये मौजूद जोखिमों से निपटने की जरुरत पर जोर दिया गया है। साथ ही, वर्ष 2050 तक एक ऐसी दुनिया बनाने की इच्छा जाहिर की गई है जो प्रकृति के साथ सदभाव बनाकर मौजूद रह सके।  

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