साहित्य में पर्यावरण: साहसिक यथार्थ का सृजन

नई पीढ़ी में जागरुकता के लिए साहस फूंकना भी साहित्य का एक अनूठा काम है 

On: Tuesday 19 October 2021
 
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा

- अरूप कुमार दत्ता -

युवा वयस्कों के लिए लिखा गया मेरा एडवेंचर नॉवेल ‘द काजीरंगा ट्रेल ’ शीर्षक से चार दशक पहले 1979 में प्रकाशित हुआ था। समीक्षकों के अनुसार यह कई मायनों में अपनी तरह की पहली किताब है। इसे भारतीय विषय, पृष्ठभूमि और चरित्रों वाला अंग्रेजी में लिखा गया पहला किशोर उपन्यास माना जाता है। मुझे अच्छी तरह याद है कि बचपन में वैकल्पिक बाल साहित्य के अभाव में, मुझे पश्चिमी पात्रों, विषयों और पृष्ठभूमि वाली अंग्रेजी पुस्तकों से काम चलाना पड़ता था। क्षेत्रीय भाषाओं में भी बच्चों के लिए अच्छी किताबें उपलब्ध नहीं थीं।

इस वजह से हमारी पीढ़ी एनिड ब्लाइटन जैसे लेखकों की किताबों पर पली-बढ़ी थी और हार्डी बॉयज जैसे पात्रों से परिचित हो गई थी। इस समस्या ने मुझे और अन्य लोगों को अंग्रेजी में बाल साहित्य का एक पूर्णतः भारतीय बनावट वाला संग्रह बनाने की दिशा में दृढ़ प्रयास करने के लिए प्रेरित किया। ‘द काजीरंगा ट्रेल ’उस दिशा में मेरा पहला प्रयास था । आलोचकों ने इसे पर्यावरण संरक्षण पर आधारित भारत का पहला अंग्रेजी किशोर उपन्यास भी कहा है। इस किताब के मुख्य पात्र असम में स्थित काजीरंगा वन्यजीव अभ्यारण्य से सटे एक गांव के तीन बच्चे, धनई, बुबुल और जोंटी हैं। इस अभ्यारण्य में अन्य जानवरों के अलावा भारतीय एक सींग वाले गैंडे की वैश्विक आबादी का करीब आधा हिस्सा पाया जाता है । इससे जुड़ी झूठी मान्यताओं के कारण, एशिया के कई क्षेत्रों में गैंडे के सींग की बहुत मांग है, जहां इसका उपयोग पारंपरिक दवाएँ बनाने के लिए किया जाता है। गैंडे के सींग बहुमूल्य होते हैं और इस वजह से इसका अवैध शिकार भी किया जाता है।

‘द काजीरंगा ट्रेल ’ की कहानी गांव के तीन लड़कों पर केंद्रित है जिन्हें वन्यजीव अभ्यारण्य में एक मृत गैंडा मिलता है। गैंडे का सींग गायब देखकर लड़के समझ जाते हैं कि उसकी हत्या शिकारियों ने की है और वे फॉरेस्ट रेंजर नियोग को यह बात बताते हैं। नियोग भांप लेता है कि शिकारी स्थानीय ग्रामीणों में से ही कोई है और उनकी पहचान करने में वह बच्चों की मदद माँगता है । कई रोमांचक कारनामों के बाद वे तीनों न केवल शिकारियों की पहचान करने में कामयाब होते हैं बल्कि वे उन्हें गिरफ्तार करवाने में भी अधिकारियों की मदद करते हैं ।

यह उपन्यास बहुत नैतिकता बघारे बिना वन्यजीव संरक्षण के मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता है। एक उदाहरण लें :

“कितने कुरूप हैं ये गिद्ध,” बुबुल ने घृणा से कहा। “मुझे पक्षी पसंद हैं, लेकिन ये गिद्ध नहीं। शायद इसलिए कि वे मरे हुए जानवरों का मांस खाते हैं।”“वे शायद बदसूरत हों लेकिन होते बहुत उपयोगी हैं ,” श्री नियोग ने उत्तर दिया। “वे भला किस काम आ सकते हैं ?” बुबुल ने पूछा।

“ओह, वे मरे हुए जानवरों को खाते हैं और उन्हें सड़ने और क्षेत्र को दूषित करने से रोकते हैं। यह अजीब है, लेकिन पक्षी जितना कुरूप होता है, उतना ही वह हमारी पृथ्वी को सुंदर बनाए रखने में मदद करता है। तुम जानते हो कौवे सुंदर नहीं होते हैं। लेकिन कचरा-निपटान करने के मामले में उनका कोई मुकाबला नहीं । ” यह संरक्षण का लेटमोटिफ ही था जिससे प्रभावित होकर 1001 चिल्ड्रेनस बुक्स यू मस्ट रीड बिफोर यू ग्रो अप के संपादक ने टिप्पणी कि - “ यह (‘द काजीरंगा ट्रेल ’) पर्यावरणीय मुद्दों पर केंद्रित होने की वजह से अपने समय से आगे की चीज था।”

यह सच है कि आजकल पर्यावरण के मुद्दों को जैसा महत्व दिया जा रहा है वैसे हालात चार दशक पहले नहीं थे और मैं आशा करता हूं कि द काजीरंगा ट्रेल जैसा उपन्यास कुछ हद तक जागरूकता पैदा करने में सहायक था। शायद यह विषयगत नवीनता थी जिसके कारण इस पुस्तक ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की, एक बेस्टसेलर बनी और कई भारतीय और विदेशी भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया। इस उपन्यास पर आधारित एक फिल्म (राइनो) भी बनी थी जिसने इसके संदेश को एक बड़े वर्ग तक पहुंचाया ।

मनोवैज्ञानिक मानते हैं, किसी व्यक्ति का बचपन उसके जीवन की सबसे प्रभावशाली अवधि है, जब विचार बनते हैं और दृष्टिकोण आकार लेते हैं। यही कारण है कि मैंने किशोर साहसिक उपन्यास लिखे। उदाहरण के लिए ‘द काजीरंगा ट्रेल ’ के बाद मैंने एक के बाद एक चार उपन्यास लिखे । इनकी पृष्ठभूमि काजीरंगा वन्यजीव अभयारण्य ही थी ( जिसे अब एक राष्ट्रीय उद्यान में अपग्रेड किया गया है) और इनके बाल नायक, धनई, बुबुल और जोंटी ही थे । इनमें से पहला उपन्यास ‘सेव द पूल ’ है जिसकी थीम जल संरक्षण है। कई जगहों पर मछलियाँ पकड़ने के लिए तालाबों में जहर मिल दिया जाता है या बारूदी विस्फोट भी किए जाते हैं और उपन्यास में इन्ही कुप्रथाओं पर ध्यान खींचा गया है । काजीरंगा की बील दरअसल पानी के बड़े तालाब हैं जो इसके आर्द्रभूमि चरित्र के रखरखाव के लिए आवश्यक हैं और वे पहले भी पर्यावरणीय क्षति का शिकार हो चुके हैं।

इस कहानी में तीनों लड़के एक बील में जहर मिलानेवाले शिकारियों के एक गिरोह का सफलतापूर्वक पता लगा लेते हैं जिससे उसके सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। पूरा उपन्यास इसी मुख्य थीम पर आधारित है : “उनके द्वारा अपनाई गई विधि सरल थी,” नियोग मामा ने जारी रखा। “उन्होंने पानी में काफी सारा रसायन डाला और फिर इंतजार किया। जैसे-जैसे रसायन फैलता गया, मछलियों को सांस लेने में तकलीफ हुई और वे सामूहिक रूप से सतह पर आ गयीं जिससे उन्हें पकड़ना आसान हो गया । इस तरह से वे हजारों के मूल्य की मछलियाँ पकड़ सकते थे । बुबुल ने कहा, “हमने सुना है कि लोग विस्फोटकों का उपयोग करके पहाड़ी नदियों में मछलियों को मार रहे हैं, लेकिन यह और भी बुरा है। इस तरह तो न केवल ये मछलियाँ मरती हैं बल्कि उन लोगों को भी नुकसान पहुंचता है जो अनजाने में जहरीली मछली खाते हैं।”

“शिकारियों ने पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया है और यह ध्यान देने वाली बात है” ,वन अधिकारी ने कहा । “बीलें काजीरंगा के जानवरों के लिए जीवनदायिनी हैं। उदाहरण के लिए यह बील बहुत लंबे समय तक किसी के काम नहीं आएगी ।” इसके अलावा ‘द बेबी एलीफेंट ’ नामक एक दूसरा उपन्यास , मानव-पशु संघर्ष पर आधारित है। वन्यजीव अभयारण्य से सटे एक गांव में जंगली हाथियों का एक झुंड किसानों द्वारा उगाई गई फसलों पर रात में हमला करता है। ग्रामीण उन्हें आग की लपटों, ढोल और पटाखों की मदद से भगा देते हैं।

इस अफरा तफरी में एक हाथी का बच्चा गड्ढे में गिर जाता है और पीछे छूट जाता है । नलिया नाम का एक गांव का बदमाश उस बच्चे को देख लेता है और एक कुमकी या प्रशिक्षित हाथी की मदद से गड्ढे से बाहर निकाल लेता है । नलिया उस बच्चे को बेचने की मंशा से अपनी गोशाला में बांध देता है । धनई, बुबुल और जोंटी कैसे बच्चे को बचाते हैं और उसे उसकी माँ से कैसे मिलाते हैं यह एक रोमांचक कहानी है। मुझे संरक्षण और पर्यावरण के पहलुओं को मिलाकर यथार्थवादी सहसिक उपन्यास लिखने में कहीं ज्यादा खुशी मिली है। मेरा मानना है कि इन्होंने जरूरी मुद्दों को लेकर बच्चों के बीच में जागरूकता बढ़ायी है ।

(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं)

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