साहित्य में पर्यावरण: अस्तित्व-विलुप्ति की चित्रकला

कलात्मक अभिव्यक्तियां पर्यावरण-संरक्षण के लिए सशक्त औजार हैं

On: Friday 29 October 2021
 
इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा

- नोबीना गुप्ता - 

कला की गहराई और मर्म ने हमेशा मुझे पारिस्थितिकी के अस्तित्व और विलुप्ति वाले प्रतिबिंबों के आसपास केंद्रित किया है। मेरी कला का केंद्रबिंदु सतह के नीचे हो रहे अनंत परिवर्तनों पर टिका है, जिसमें मानव और गैर-मानव के आंतरिक संबंधों और उसकी व्यावहारिक प्रवृत्ति का अध्ययन है। कला और संवाद न सिर्फ पर्यावरण के संरक्षण का प्रमुख साधन है बल्कि यह पर्यावरण सेवाओं पर आश्रित समुदायों की आजीविका से भी जुड़ा है। कलाकार इन संबंधों और मुद्दों को कला और संवाद के माध्यम से सहजता से उकेरता है, जिनकी मन पर गहरी छाप पड़ती है।

यही कारण है कि पर्यावरण और उसके महत्व व संरक्षण के कामों में कलात्मक अभिव्यक्तियां बेहद सशक्त भूमिका निभाती हैं। मैंने पूर्वी दर्शन के सार को आत्मसात करते हुए हमेशा इस ब्रह्मांड के तत्वों को जीवित अनुभवों के साथ बुनने की कोशिश की है। मेरी कला यात्रा ने मुझे सदैव एक व्यक्तिवादी पथ के बजाए सहयोगी और समावेशी रास्ते की तरफ भीतर से बाहर की ओर बढ़ने का आग्रह किया है। इसलिए कला के बहु-विषयक दृष्टिकोण के जरिए मैंने मानव युग (एंथ्रोपोसीन), जलवायु आपातकाल और सतत अवधारणा पर टिप्पणी करने के लिए चित्र, दृश्य-श्रव्य और स्पर्श माध्यमों के साथ काम किया। मेरी कलात्मक दृष्टि में रिश्तों की फिर से कल्पना करना, सह-निर्माण की शुरुआत करना और समुदाय-आधारित पारिस्थितिक शिक्षाओं के प्रसार के लिए मानदंडों को तोड़ना ही रचा और बसा है।

अपने 25 वर्षों की अनुभव-यात्रा में मैंने डिसअपीयरिंग डॉयलाग्स (डीडी) संस्था के जरिए अंतः विषय संवाद (इंटरडिसिप्लिनरी इंटरैक्शन) भी शुरू किया है, जो पूरे भारत में विभिन्न समुदायों, संस्थानों और सामाजिक समूहों को जुड़ाव वाले कलात्मक कामों, नक्शों, शोध और दस्तावेजों के माध्यम से जोड़ता है। इन सहयोगी गतिविधियों ने लद्दाख की चांगथांग घाटी, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड और बघेलखंड क्षेत्र और अब पूर्वी कोलकाता वेटलैंड्स की नाजुक सामाजिक स्थानिक परिदृश्यों में हो रहे पर्यावरण और सांस्कृतिक नुकसान के साथ सुंदर स्मृतियों को संरक्षित करने की मांग उठाई है। कला के इन पर्यावरण संवेदी कामों को दुनियाभर में सराहा गया है।

कला और प्रदर्शनी के साथ संवाद गतिविधियां पर्यावरण के गंभीर मुद्दों को रेखांकित करती रही हैं। मिसाल के तौर पर मैंने विकास परियोजनाओं के चलते खत्म होती हरियाली पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक कलात्मक स्थापना “कल्पतरू-मनोकामना पूर्ति पेड़” के विचारों की तरह एक संवाद श्रृंखला नई दिल्ली में आयोजित की। इस संवाद गतिविधि के इतर कला और प्रदर्शनी के जरिए मध्य प्रदेश के कोल और भील आदिवासियों समुदायों पर मंडरा रहे खतरों, परंपराओं की विलुप्ति, ग्लेशियर्स के पिघलने, स्पेन की आतंरिक प्रकृति, हिमालयी ब्लैक नेक क्रेन पर विलुप्ति का संकट, लद्दाख के खानाबदोश बच्चों के गंभीर मुद्दों को रेखांकित किया।

लेकिन अब भी यह सारे अनुभव, प्रचार और प्रसिद्धि मेरे भीतर के कलाकार की शून्यता को नहीं भर पाई। एक जिम्मेदार कलाकार को लेकर मेरे मन में कई सवाल जीवित थे। मेरा मन कला दीर्घाओं, संग्रहालयों और उनकी अंदरुनी सफेद तिकोनों की सजावट से बाहर कुछ और देखना चाहता था।

पिछले 20 वर्षों से कोलकाता में रहते हुए ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स (ईकेडब्ल्यू) का एक नाजुक सामाजिक-स्थानिक परिदृश्य वाला किनारा मेरे कलात्मक हस्तक्षेप, अनुसंधान और सह-निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है। पिछले पांच वर्षों में रोजमर्रा की जिंदगी और बड़े पैमाने पर कोलकाता शहर के निर्वाह में ईस्ट कोलकाता वेटलैंडस की पारिस्थितिक महत्व को लेकर चिंतित हूं। इसने मुझे कला, पर्यावरण और संस्कृति के पर काम करते हुए इन वर्षों के दौरान उस आर्द्रभूमि के समुदाय और बच्चों के साथ जुड़ने में सक्रिय होने के लिए संवाद शुरू करने के लिए प्रेरित किया है।

करीब 12,500 हेक्टेयर आर्द्रभूमि में फैला ईकेडब्ल्यू पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने के लिए शहर के अपशिष्ट जल के प्राकृतिक उपचार की एक अनूठी प्रणाली है। यह दुनिया में सीवेज से भरे आर्द्रभूमि का सबसे बड़ा खंड है, जो एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध रामसर साइट भी है और ग्रामीण-शहरी आर्द्रभूमि समुदाय की सामूहिक प्रथाओं द्वारा कायम है। यह समुदाय अपशिष्ट जल को एक पोषक तत्व के रूप में देखते हैं, जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि यह उनकी आजीविका के अवसरों को बढ़ाता है।

इस लोकाचार के साथ वे अपनी आजीविका सुरक्षा को बनाए रखने के लिए प्रबंधन प्रथाओं के एक विस्तृत सेट के माध्यम से अपशिष्ट जल का सावधानीपूर्वक उपयोग करने के लिए काम करते हैं। वे मछली पालन, सब्जियां उगाने, धान की खेती और पशुपालन के माध्यम से शहर के सीवेज का उपचार करते हैं। इस प्रकार, वे भोजन के उत्पादन, सीवेज के उपचार और इसके समृद्ध होने के साथ-साथ जल निकासी में मदद करने के तीन गुना कार्य करते हैं।

वर्तमान परिस्थितियों में विकास और पर्यावरणीय खतरे इस सामाजिक-स्थानिक परिदृश्य को नाजुक, संवेदनशील और कमजोर बना रहे हैं। आर्द्रभूमि संकट से गुजर रही है और उसके साथ समुदाय भी संकट में है। यह आर्द्रभूमि का पारिस्थितिकी तंत्र हमारे शहर के स्थायी भविष्य की कुंजी है। लेकिन दुख की बात है कि कोलकाता के नागरिकों को इस जीवित विरासत के मूल्य को समझने के लिए खुद को शिक्षित करना होगा। बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से आर्द्रभूमि पर बसावट, अतिक्रमण और विकास योजनाएं और अपशिष्ट जल नहरों का खराब रखरखाव, नहरों, तालाबों और जल निकायों में स्थानीय अपशिष्ट निपटान, समर्थन प्रणाली की कमी के कारण उत्पादन में गिरावट के चलते न सिर्फ आर्थिक संकट बढ़ रहा बल्कि बेरोजगारी भी बढ़ रही है।

हमने डिसअपीयरिंग डॉयलाग्स (डीडी) के जरिए कला अभ्यास को एक ऐसे रूप में विकसित किया है जो कि समस्या का समाधान पेश कर सके। इसके तहत पारिस्थितिक संपत्तियों और उभरते सामुदायिक कौशल, स्थानीय ज्ञान, सांस्कृतिक प्रथाओं, प्राकृतिक संसाधनों और नेटवर्क के निर्माण के प्रयास किया गया जा रहा है। कला अभ्यास का पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहचतर इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा कई कलाकार कर भी रहे हैं।

आर्द्रभूमि और अपशिष्ट जल नहरों की यात्रा करना, उनके नमूने एकत्र करना, चित्र और लेखन के माध्यम से डेटा और टिप्पणियों को रिकॉर्ड करना।

इस प्रक्रिया ने आर्द्रभूमि जैव विविधता के तत्वों को समझने में मदद की है। इसके अलावा यह बच्चों को ईकेडब्ल्यू की पारिस्थितिक संपदा को भी समझाता है। मिसाल के तौर पर आमदेर कथा (हमारी कहानियाँ) यह चित्रात्मक कहानी कहने का एक अभ्यास था, जिसमें ईकेडब्ल्यू के परिवर्तनों और खतरों का दस्तावेजीकरण किया गया था।

कला का क्षेत्र काफी व्यापक है जो पर्यावरण के विभिन्न स्तरों की समस्याओं को रेखांकित करने और उनका समाधान पेश करने के लिए भी है। मसलन शहरवासियों के उपभोग का कचरा बढ़ रहा है। वहीं, आर्द्रभूमि के भीतर अवैध अपशिष्ट छँटाई के बिंदुओं की संख्या भी बढ़ रही है। एक वर्कशॉप के जरिए हमने ऐसे ही कलात्मक समाधान पेश किए जो काफी उपयोगी रहे।

मिसाल के तौर पर बेकार केले के तने से हस्तनिर्मित कागज। केले के तने के कवर के रूप में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध जैविक कचरे का उपयोग, युवा शिक्षार्थियों के लिए आर्द्रभूमि के आसपास कचरे को रीसायकल करने के अवसरों और संभावनाओं की पहचान करना। जैविक और अकार्बनिक दोनों तरह के कचरे का उपयोग करके प्लास्टिक की बोतलों में हर्बल उद्यान बनाना काफी लाभप्रद है।

स्थानीय अकार्बनिक घरेलू कचरे से संगीत वाद्ययंत्र का निर्माण करना। युवा शिक्षार्थियों को कचरे को समझकर रचनात्मक समाधान के साथ प्रेरित करना और उन्हें फेंकने के लिए पदार्थ के रूप में नहीं बल्कि कला, शिल्प और संगीत के आनंद के साथ इसके पुन: उपयोग को बढ़ाने के लिए प्रेरित करना शामिल है।

डेवलपमेंट डिसअपीयरिंग (डीडी) ने पश्चिम बंगाल के पिंगला गाँव के युवा पटचित्र चित्रकारों ममोनी और समीर चित्रकर के साथ मिलकर एक पाटा पेंटिंग और एक गीत बनाया जो अपशिष्ट जल नहरों के महत्व और समुदाय द्वारा उनका समझदारी के साथ उपयोग करने के लिए प्रेरित और शिक्षित करता है।

इन सभी प्रक्रियाओं में कला-अभ्यास की भूमिका एक केंद्रीय संबल है जो करके सीखने और अवलोकन के माध्यम से सीखने के अलावा संदर्भों व साथियों से सीखने को प्रोत्साहित करती है।

तरीके, विचार, अनुभव पारंपरिक शैक्षिक प्रारूपों और बच्चों के समग्र विकास के बीच की खाई को पाटने के लिए कला-अभ्यास की क्षमता और प्रासंगिकता को स्पष्ट करने में मदद करते हैं।

मैंने महसूस किया है कि ये गतिविधियाँ पारंपरिक शिक्षा के पूरक के लिए कला-अभ्यास का उपयोग करती हैं, पर्यावरण के प्रति जागरूकता और अंतर्निहितता की कमी, सांस्कृतिक बारीकियों के प्रति असंवेदनशीलता और उनके संदर्भ में व्यक्ति के डिस्कनेक्ट जैसे मुद्दों को संबोधित करती हैं।

(लेखिका चित्रकार और कला शिक्षिका हैं)

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