नदियों में जैव विविधता के नुकसान से जैविक प्रक्रिया को हो सकता है खतरा:अध्ययन

नदियों में मृत जीवों और पौधों को खाकर सफाई करने वाले जीवों के विलुप्त होने की दर ऐतिहासिक रिकॉर्ड की तुलना में 1,000 से 10,000 गुना तेज है।

By Dayanidhi

On: Monday 05 July 2021
 
Photo : Wikimedia Commons

नदियों में सभी मृत जीवों और पौधों को खाने वाले (डिट्रिटिवोर्स) जीवों के तेजी से घटने और कई प्रजातियों के विलुप्त होने के काफी गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अब एक नए अध्ययन के माध्यम से वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नदियों की जैव विविधता और इन जीवों के बारे में पता लगाया है।     

शोधकर्ताओं ने नदियों में मृत जीवों और पौधों को खाकर सफाया करने वाले (डिट्रिटिवोर्स) और पौधों के कूड़े के अपघटन या नष्ट होने के बीच घनिष्ठ संबंध की जांच की है। पानी में जितनी संख्या में डिट्रिटिवोर्स होंगे अपघटन या सफाई की प्रक्रिया उतनी ही अधिक तेजी से होती है। सफाई करने वाले जीवों में जलीय कीड़े जैसे स्टोनफ्लाइज़, कैडिसफ्लाइज़, मेफ्लाइज़ और क्रेनफ्लाइज़ और क्रस्टेशियंस और ताजे पानी के झींगे और केकड़े शामिल हैं।  

पारिस्थितिकी तंत्र विज्ञान और प्रबंधन विभाग के सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर ब्रैडली कार्डिनल ने बताया कि अपघटन या सड़ना (डीकम्पोजिशन) एक जैविक प्रक्रिया है जो जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।  

उन्होंने कहा, पौधे का वह भाग जो जानवरों द्वारा नहीं खाया जाता है, अंततः गल जाता है और इसे रीसायकल किया जाना चाहिए ताकि जैविक रूप से आवश्यक पोषक तत्वों को पर्यावरण में पुन: छोड़ा जा सके जहां पौधों द्वारा उनका फिर से उपयोग किया जा सके।

अगर अपघटन की प्रक्रिया नहीं होती है, या धीमी हो जाती है, तो जीवन एक रुके हुए पड़ाव पर आ जाता है। फास्फोरस, नाइट्रोजन और अन्य पोषक तत्व जिनकी हमें मनुष्य के रूप में आवश्यकता होती है, वे जैविक रूप से तब तक उपलब्ध नहीं होते जब तक कि वे विघटित और रीसायकल नहीं हो जाते हैं।

लेकिन पूरी दुनिया में, ऐसे जीवों की आबादी घट रही है और खतरनाक दर से गायब हो रही है जो मृत जानवरों, पौधे के अवशेष, कार्बनिक पदार्थों को खाते है एवं उनका सफाया करते हैं। कार्डिनल ने बताया कि इस बात के अच्छे प्रमाण हैं कि इन जीवों के विलुप्त होने की दर ऐतिहासिक रिकॉर्ड की तुलना में 1,000 से 10,000 गुना तेज है।

कार्डिनल ने कहा इन जलीय कीड़ों और क्रस्टेशियंस की विविधता महत्वपूर्ण है या नहीं, इस बारे में एक बड़ा सवाल है। अगर वे विलुप्त हो जाते हैं, तो क्या गलने या अपघटन की यह जैविक प्रक्रिया धीमी हो जाएगी या नहीं? इस अध्ययन से पहले हमारे पास कोई सटीक जवाब नहीं था। हमें नहीं पता था कि इन जानवरों के विलुप्त होने से पारिस्थितिक तंत्र की जीवन को बनाए रखने की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ेगा, या यदि बैक्टीरिया और कवक जैसे अन्य जीव पारिस्थितिक तंत्र को भर देंगे और समान स्तर के अपघटन को पूरा करेंगे।

इस अध्ययन में 75 वैज्ञानिकों ने 38 नदियों में अपघटन या गलने का विश्लेषण किया है। जो कि आकार, गहराई और प्राकृतिक आवासों में 6 महाद्वीपों पर 23 देशों में हैं। शोधकर्ताओं द्वारा चुनी गई अधिकांश धाराओं में चट्टानी परते और नदियों के किनारे उगने वाली घनी वनस्पति थी।

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के विभिन्न स्थानों पर एकत्र की गई नौ प्रजातियों के एक जैसे पौधों के कूड़े के मिश्रण को एकत्र किया और अध्ययन करने वालों के बीच इसे वितरित किया। कूड़े के मिश्रण को मोटे-जाली और महीन-जाली वाले कूड़ेदानों के भीतर रखा गया।

कार्डिनल ने बताया कि इन दो तरह के कूड़े के थैलों ने हमें हानिकारक जीवों और नदियों में माइक्रोबियल जीवों द्वारा किए गए अपघटन की मात्रा को मापने में मदद मिली। हमने देखा कि महीन जाल वाले बैग के कूड़े में जलीय कीड़ों की पहुंच नहीं हो पाती है वहां बहुत कम अपघटन हुआ।

उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि बैक्टीरिया और कवक अकेले नदी की धाराओं और पारिस्थितिक तंत्र में आवश्यक अपघटन की मात्रा को पूरा नहीं कर सकते हैं।

कार्डिनल ने कहा कि जब हमने इन जीवों को बाहर रखा, तो हमने अपघटन दर में भारी गिरावट देखी, जिसका अर्थ है कि अन्य जीवों ने उनकी भरपाई नहीं की। जब सभी चीजों को खाने वाले (डिट्रिटिवोर्स) को बाहर रखा गया, जैसे कि इनके विलुप्त होने के बाद होगा, हमने नदी की धाराओं में होने वाले अपघटन में 50 फीसदी से अधिक की कमी देखी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि प्रचुर मात्रा में सभी चीजों को खाने वाले (डिट्रिटिवोर्स) के साथ नदी की धाराओं में अपघटन की दर बहुत अधिक थी। उन्होंने बताया कि समशीतोष्ण क्षेत्रों की तुलना में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में और बोरियल क्षेत्रों में अनुपस्थित विविधता और अपघटन के बीच संबंध अधिक मजबूत संबंध थे और समशीतोष्ण और बोरियल क्षेत्रों में बहुतायत और बायोमास महत्वपूर्ण थे, लेकिन उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ऐसा नहीं था।

शोध दल के मुताबिक, अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि नदियों में कूड़े के अपघटन या उसकी सफाई करने वाले जीव विलुप्त होने से सब कुछ बदल रहा है और ये प्रभाव उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में विशेष रूप से अधिक हो रहा है, जहां सभी चीजों को खाने वाले (डिट्रिटिवोर्स) विविधता पहले से ही अपेक्षाकृत कम है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

कार्डिनल ने बताया कि अध्ययन के परिणाम आश्चर्यजनक नहीं हैं। सभी चीजों को खाने वाले (डिट्रिटिवोर्स) की प्रचुरता और आकार का अपघटन पर बहुत बड़े प्रभाव के लिए जाना जाता है। तो नदी की धाराएं जिनमें ये अधिक हैं या जिनमें बड़े अकशेरूकीय हैं, जैसे कि बड़े केकड़े और झींगा वहां बहुत अधिक अपघटन होता है।

शोधकर्ता ने कहा कि हमने यह भी पाया कि विविधता, विभिन्न प्रजातियों की संख्या जो नदी की धाराओं में थी, अपघटन के सबसे प्रमुख पूर्वानुमानों में से एक थी। बहुतायत, अलग-अलग आकार और विविधता के बीच, अपघटन में सभी वैश्विक भिन्नता के 82 फीसदी के बारे में बताते हैं। इसका मतलब है कि जैसे-जैसे ये जानवर विलुप्त होते जाएंगे, हम जैविक रूप से आवश्यक सामग्रियों को विघटित और रीसायकल करने की क्षमता भी खोते जाएंगे इसलिए अन्य जीवों का जीवित रहना और उनके विकास के लिए ये आवश्यक हैं।

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